आखिर क्या संकेत दे रही है बिहार में हुई बम्पर वोटिंग ?
गत 6 नवम्बर, 2025 को बिहार विधानसभा के चुनाव का पहला चरण सम्पन्न हो चुका है। इस चरण में 121 सीटों के लिए 64.46 फीसदी मतदान हुआ। यह पांच साल पहले 2020 में हुए विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से लगभग 9 फीसदी ज्यादा है। इसे देखकर ज्यादातर चुनाव विश्लेषक न सिर्फ उत्साहित हैं और बम्पर वोटिंग करार दे रहे हैं बल्कि ज्यादातर का मानना है कि इस वोटिंग पैटर्न के पीछे स्पष्ट नतीजों की पटकथा छिपी हुई है। ऐसा मानने के पीछे मज़बूत आधार भी है। दरअसल अगर बिहार में आज़ादी के बाद हुए ज्यादातर विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो जब-जब 5 फीसदी या इससे ज्यादा वोटिंग हुई है, तब-तब स्पष्ट बहुमत वाली सरकारें बनीं। दूसरे शब्दों में अगर देखा जाए तो पिछले कम से कम 15 बार के विधानसभा चुनाव में जब भी मतदान 5 फीसदी या इससे ज्यादा हुआ है, तब मौजूदा सत्ता बदली है। ..तो क्या बिहार विधानसभा के मौजूदा चुनावों के पहले चरण में पिछली बार के मुकाबले यह जो बम्पर वोटिंग हुई है, क्या वह नितीश सरकार के लिए खतरे की घंटी है? क्या इससे यह अनुमान लगाया जाए कि सुशासन बाबू 20 साल के शासन के बाद अब वास्तव में जा रहे हैं या फिर इस तरह के अनुमान जल्दबाजी में निकाले गये कयास हों?
हालांकि हर विश्लेषण का कहीं न कहीं आधार अतीत के आंकड़े होते हैं। लेकिन पहली बात तो यह कि कभी न कभी आंकड़ों की परम्परा भी पलटती है और दूसरी बात यह कि हाल के सालों में तेज़ रफ्तार जीवनशैली के कारण हमारी हर गतिविधि में अप्रत्याशित और गैर-अनुमानित किस्म के रुझान और नतीजे देखने को मिल रहे हैं। इसलिए कोई ज़रूरी नहीं है कि अगर अतीत में 15 बार 5 प्रतिशत या इससे ज्यादा मतदान के चलते बिहार में सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन की हार हुई हो, तो इस बार भी इस पहले चरण के मतदान के बाद यही अनुमान लगाया जाए। जहां तक बात 2020 की है, तो पहले तो साल 2020 में 2 नहीं बल्कि 3 चरणों में मतदान सम्पन्न हुआ था और पहले चरण के चुनाव में 71 सीटों पर वोटिंग हुई थी। इस बार दो चरणों में चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण में 121 सीटों पर मत पड़ चुके हैं और दूसरे चरण में 122 सीटों पर चुनाव होंगे।
यह महत्वपूर्ण तथ्य है कि अतीत में जब भी बिहार विधानसभा चुनाव में 5 प्रतिशत या इससे ज्यादा वोटिंग हुई तब तब सत्ता बदली है और कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर इस बार भी अतीत की परम्परा ही दोहरायी जाए, लेकिन विगत के इस पैटर्न को तब तक सत्य नहीं माना जा सकता, जब तक कि वाकई नतीजा सामने न आ जाए। इसलिए अभी भी यह संभावना मौजूद है कि हो सकता है यह पैटर्न कहीं न कहीं नितीश सरकार के ही पक्ष में जा रहा हो, क्योंकि विगत दिवस की बम्पर वोटिंग में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा रही है और विगत के चार-पांच चुनाव इस बात के सबूत रहे हैं कि नितीश कुमार के नेतृत्व को महिलाओं के वोट बाकी पार्टियों और नेतृत्व के मुकाबले कुछ ज्यादा मिलते हैं, तो कोई आश्चर्य इस पर भी नहीं होगा यदि यह बम्पर वोटिंग इस बार आश्चर्यजनक ढंग से फिर से नितीश सरकार के हाथ सत्ता सौंप दे, क्योंकि यह धारणा है कि बिहार में नितीश कुमार महिला वोट पाने के मामले में चैम्पियन हैं और 6 नवम्बर, 2025 को पहले फेज की वोटिंग में महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों से ज़्यादा रहा है।
इस बम्पर वोटिंग का एक नतीजा एक ऐसा कारण भी हो सकता है, जो भले अतीत में न दिखता रहा हो। मसलन इस बार बिहार विधानसभा के चुनाव त्योहारी माहौल में हुए हैं और हम सब जानते हैं कि एक करोड़ से भी ज्यादा प्रवास पर रहने वाले बिहारी लोगों में 50 फीसदी से ज्यादा छठ पर्व मनाने अपने गांव-घर जाते हैं। ..तो इसलिए पहले चरण के मतदान में अगर इन प्रवासियों की अपने घरों में मौजूदगी और त्योहारी मौका कारण रहा होगा तो निश्चित रूप से तेजस्वी यादव के मुकाबले नितीश का पलड़ा भारी लगता है।
मतदाता अपने पुराने पैटर्न पर मतदान करे, यह ज़रूरी नहीं है, क्याेंकि इसमें अगर त्योहार का फैक्टर है, तो इस बार के मत में जो बढ़ोत्तरी हुई है, ज़ाहिर है वह बिहार के बाहर रह रहे युवा मतदाता हैं, जिन्होंने छठ में घर आने के कारण मतदान में हिस्सा लिया है। बिहार से बाहर रहने वाले ज्यादातर युवा मतदाता जब वोट देने का अपना रुझान तय करते हैं, तो वह बिहार के बाहर, बिहार को लेकर इस प्रचार से ज्यादा प्रभावित होते हैं कि बिहार में लम्बे समय तक जंगलराज रहा है। इसलिए युवा मतदाता कम से कम विपक्षी गठबंधन के बजाय मोदी-नितीश वाले गठबंधन को वोट देने के पक्ष में ज्यादा रहता है, क्योंकि विपक्ष की राजनीतिक छवि बिहार में कितनी ही व्यवहारिक हो, बिहार के बाहर वह अभी भी सकारात्मक कम, नकारात्मक ज्यादा है, लेकिन इस पहलू का एक दूसरा पक्ष भी है। बिहार विधानसभा के मौजूदा चुनावों में पहले चरण की वोटिंग के दौरान मौजूद लोग रहें, यह संभव नहीं है। छठ के बाद एक हफ्ते के भीतर लगभग 50 फीसदी से ज्यादा प्रवासियों को अपने काम पर लौटना ही होता है। हो सकता है इस बार व्यवस्थित योजना बनाकर गये हों तो उसके चलते यह वापसी कुछ कम हो।
लेकिन उतने प्रवासी तो दूसरे चरण के मतदान के दौरान बिहार में मौजूद नहीं रहेंगे, जितने पहले चरण के दौरान थे। इसलिए दूसरे चरण की वोटिंग में निश्चित रूप से पहले चरण के मुकाबले कम मतदाता रहेंगे और यह भी लगभग तय है कि शायद दूसरे चरण में पहले चरण के मुकाबले कम वोटिंग हो। अगर ऐसा होता है तो साफ है कि पहले चरण की वोटिंग में त्योहारी फैक्टर काम कर रहा था और अनुमान है कि यह मौजूदा सरकार के पक्ष में जा सकता है। इसलिए जब दूसरे चरण की वोटिंग होगी, जिसमें 122 सीटें शामिल हैं, अगर इस चरण में भी पहले चरण की तरह 9-10 की जगह 5-6 फीसदी भी ज्यादा वोटिंग हुई, तो बहुत संभव है कि वही पैटर्न दोहराया जाए, जो पिछले 15 बार के विधानसभा चुनाव में जब जब ज्यादा वोटिंग हुई है, तो मौजूदा सरकार पलटी है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर



