साझी विरासत को बांटने का प्रयास न करें
विगत दिवस श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के समागमों में शामिल होने के लिए वाघा सीमा से सिख श्रद्धालुओं का एक जत्था पाकिस्तान गया था। जत्थे के पाकिस्तान में प्रवेश करते समय कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुई हैं, जो गुरु नानक देव जी की महान साझी विरासत तथा फलसफे को ठेस पहुंचाने वाली हैं। हुआ यह कि वाघा सीमा पर पाकिस्तान के इमीग्रेशन अधिकारियों ने लगभग 12 हिन्दू श्रद्धालुओं को पाकिस्तान जाने से रोक दिया। इनमें से कुछ श्रद्धालू तो पाकिस्तान की इमीग्रेशन क्लीयर करवा कर बसों में बैठ चुके थे। उन्हें बसें से उतार दिया गया। इनमें से कुछ हिन्दू परिवार ऐसे भी थे, जो पहले पाकिस्तान रहते थे और बाद में उन्होंने भारत आकर भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली थी। वे गुरु नानक देव जी के फलसफे के प्रति श्रद्धा तथा सम्मान रखते थे, इसी कारण वे गुरुधामों की यात्रा करने के लिए जाना चाहते थे। पाकिस्तान के इमीग्रेशन अधिकारियों द्वारा उन्हें यह कहा गया कि आप हिन्दू होने के कारण इस यात्रा में शामिल नहीं हो सकते।
पाकिस्तान के अधिकारियों के इस व्यवहार ने न केवल भारत और पाकिस्तान के गुरु नानक देव जी के श्रद्धालुओं के मन को ठेस पहुंचाई है, अपितु विदेशों में भी गुरु नानक देव जी के ़फलसफे में विश्वास रखने वाले श्रद्धालुओं ने इसका बुरा मनाया है। इस दौरान शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी ने यह कहा है कि गुरु नानक देव जी की विरासत सिखों, हिन्दुओं और मुसलमानों की साझी विरासत है। सिख जत्थों के साथ पाकिस्तान जाने के इच्छुक हिन्दू श्रद्धालुओं को किसी भी तरह रोकना उचित नहीं है।
हमारी भी इस संबंध में यह बड़ी स्पष्ट धारणा है कि सिख गुरु साहिबान, स़ूफी ़फकीरों, भक्ति लहर के संत-महापुरुषों सहित ज्यादातर सभी हिन्दू और बौद्धिक धार्मिक स्थानों की विरासत जोकि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तक फैली हुई है, उसे किसी एक धर्म या समुदाय से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता। यह इस क्षेत्र के लोगों की साझी विरासत है। नि:संदेह देश के 78 वर्ष पहले हुए विभाजन ने लोगों के लिए इन धार्मिक स्थानों के खुले दर्शन-दीदार करने कठिन कर दिए हैं, परन्तु जब भी लोगों को अवसर मिलते हैं, वे बड़ी श्रद्धा से सीमाओं के आर-पार जाकर अपने-अपने अकीदे के अनुसार गुरु साहिबान, स़ूफी ़फकीरों, भक्ति लहर के संत-महापुरुषों और हिन्दू तथा बौद्ध धर्म के धार्मिक स्थानों पर अपने श्रद्धा के पुष्प अर्पित करते हैं। इसी कारण ज्यादातर पाकिस्तानी नागरिक भी भारत आते हैं। सरकारों को अपनी संकीर्ण राजनीति और संकीर्ण सोच के कारण लोगों को सीमाओं के आर-पार जाने-आने से रोकने का यत्न नहीं करना चाहिए, अपितु ऐसी यात्राओं को उत्साहित करना चाहिए। इन यात्राओं से लोग एक-दूसरे के नज़दीक आते हैं, एक-दूसरे को समझते हैं और ऩफरत और दूरियां कम होती हैं। दक्षिण एशिया के इस पूरे क्षेत्र में यदि अमन-शांति और सद्भावना पैदा करनी है तो लोगों का सीमाओं के आर-पार जाना-आना बेहद ज़रूरी है।
उम्मीद करते हैं कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के शासक संकीर्ण राजनीति और संकीर्ण सोच से ऊपर उठेंगे और लोगों को सीमाओं के आर-पार जाने-आने के अवसर उपलब्ध करवाएंगे।

