दूसरे चरण के मतदान में सब कुछ दांव पर

आज बिहार विधासभा चुनाव-2025 के दूसरे और आखिर चरण की वोटिंग है। पहले चरण में 121 विधानसभा चुनावों के लिए मत पड़े थे और आज 122 विधानसभा सीटों के लिए मत पड़ेंगे। कुल 243 विधानसभा सीटों वाली बिहार असेंबली के लिए पहले चरण में जो बंपर वोटिंग हुई थी, उसको लेकर यूं तो पक्ष-विपक्ष दोनों के दावे यही हैं कि उनके पक्ष में ही भारी मतदान हुआ है और दूसरा गठबंधन अब कहीं मुकाबले पर ही नहीं है। लेकिन हकीकत यह है कि आज़ादी के बाद से होने वाले बिहार में ये पहले ऐसे विधानसभा चुनाव हैं, जिनको लेकर मतदाता बेहद खामोश है। जबकि बिहार का मतदाता बहुत वोकल है और यहां किसके पक्ष में और किसके विरोध में हवा होती है, यह बहुत साफ होता है। 
लेकिन यह रणनीति है या मतदाताओं की कोई चुपचाप योजना कि इस बार किसके पक्ष में हवा है, इसे लेकर पूरी तरह से सन्नाटा है। बिहार के मतदाताओं की यह खामोशी बेहद अप्रत्याशित है, इससे अगर 14 नवंबर  2025 को बेहद अप्रत्याशित नतीजे सामने आएं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। आखिर कोई बात तो है कि पहली बार बिहार का मतदाता इतना खामोश है। हालांकि विपक्ष का कहना सही है कि खोना सत्ता पक्ष को ही है और उसके खाते में सिर्फ सबकुछ पाना है लेकिन जिस तरह पहले चरण के मतदान में 9 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग हुई, उसे देखते हुए लग रहा है कि कुछ व्यापक और बेहद स्पष्ट समीकरण निर्मित हो रहा है। क्योंकि बिहार विधानसभा के ये चुनाव न सिर्फ 2024 में हुए लोकसभा चुनावों के बाद के सबसे महत्वपूर्ण चुनाव हैं बल्कि इन चुनावों में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की राजनीतिक अग्नि परीक्षा भी होनी तय है। इसलिए इन चुनावों का महत्व सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है बल्कि इनका व्यापक असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ना तय है।
यही वजह है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही तरफ से अपनी सारी ताकत झोंक दी गई है। अगर बिहार में महागठबंधन जीतता है, तो न सिर्फ देश के अगले राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में उसके जीतने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी बल्कि 2029 के लोकसभा चुनाव में भी वह सत्ता पक्ष के मुकाबले बड़ी चुनौती साबित होगा। लेकिन अगर आज यानी 11 नवंबर 2025 को होने वाले दूसरे चरण की वोटिंग में सत्ता पक्ष के खाते में जबर्दस्त वोटिंग होती है और नितीश कुमार तकनीकी रूप से 20 साल के बाद भी अपने मुख्यमंत्री पद की यात्रा जारी रखते हैं, तो यह न सिर्फ बिहार में एनडीए की जबर्दस्त ताकत का मुजाहिरा होगा बल्कि इन चुनावों के बाद मोदी सरकार की राजनीतिक हैसियत आज के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ जायेगी और 2029 के लोकसभा चुनावों का पलड़ा भी उनकी तरफ झुक जायेगा। 
बिहार विधानसभा चुनाव का महत्व राष्ट्रीय स्तर पर इसलिए है, क्योंकि यहां 40 लोकसभा सीटें हैं और मौजूदा विधानसभा चुनाव का रुझान अगले लोकसभा का भी सैंपल रुझान माने जाने की अनेक वजहें हैं। इसलिए अगर नितीश कुमार के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन अंतत: अपनी अनेक योजनाओं के बावजूद 20 साल की एनटी इनकमबेंसी के चलते विधानसभा चुनाव हार जाता है, तो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेतृत्व वाले महागठबंधन को न सिर्फ व्यवहारिक रूप से बिहार में सत्ता हासिल होगी बल्कि वह अगले लोकसभा चुनावों के लिए कहीं ज्यादा प्रोत्साहित होगा। इसलिए बिहार विधानसभा के ये चुनाव सत्ता हो या विपक्ष दोनाें की भविष्यकालिक राजनीतिक ताकत का पैमाना है और इस पैमाने में खड़े उतरने के लिए दोनाें गठबंधनों ने अपनी-अपनी ताकत झोंक दी है। विपक्ष विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसी पार्टियों की राष्ट्रीय राजनीति में पुनर्वापसी, इन बिहार विधानसभा चुनावों के जरिये हो सकती है। अगर मौजूदा बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती है, तो यह न सिर्फ कांग्रेस के ताकत हासिल करने की वापसी का संकेत होगा बल्कि यह भी माना जायेगा कि राहुल गांधी की आक्रामक राजनीति देश के मतदाताओं को पसंद आ रही है, जिससे केंद्रीय सरकार भी अपनी रणनीतियां और राहुल गांधी को चुनौती देखने का तरीका बदलेगी। 
विपक्ष का सौ प्रतिशत दावा है कि बिहार के मतदाता मौजूदा सत्ता गठबंधन से बेहद असंतुष्ट हैं, क्योंकि जिस तरह से बिहार में गरीबी, बेरोज़गारी चरम पर है और जिस तरह से सत्ता पक्ष ने मतदाता सूचियों को नवीनीकरण करने के नाम पर बड़े पैमाने पर वोटरों के चुनावी अधिकार के हक पर नकारात्मक नज़र डाली थी, उसके मुताबिक पहले चरण में हुआ भारी मतदान सत्ता पक्ष को सबक सिखाने की योजना का हिस्सा है लेकिन हकीकत यह  है कि विपक्ष ने भले बहुत जोर शोर से बिहार में मतदाता सूची के संशोधन का मुद्दा उठाया हो, लेकिन इस समय जमीन में यह मुख्य मुद्दा नहीं है। अगर महागठबंधन अपने किसी चुनावी वायदे के कारण, सत्ता पक्ष के गठबंधन से आगे है, तो वह बिहार के हर परिवार को एक सरकारी रोज़गार देने का वायदा है। तेजस्वी यादव ने कहा है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो इस अगले साल जनवरी-फरवरी तक बिहार के मतदाताओं से किया गया वायदा यानी हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वायदा पूरा हो जायेगा। 
लेकिन जिस तरह से तेजस्वी यादव ने बिहार के हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वायदा किया है और अगले तीन महीनों में ही बिहार की हर महिला के खाते में 30 हजार रुपये की रकम एकमुश्त डालने की घोषणा की है, उस घोषणा की कोई व्यवहारिक संभावना नज़र नहीं आती। क्याेंकि अगर बिहार के हर परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाती है, तो अगर उन मौजूदा परिवारों को छोड़ भी दें, जो पहले से राज्य सरकार की नौकरियों में मौजूद हैं, तो भी हर एक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने के वायदे को पूरा करने के लिए वर्तमान में तेजस्वी यादव को करीब 2 करोड़ सरकारी नौकरियां सृजित करनी पड़ेंगी। जबकि आज की तारीख में केंद्र सरकार के सभी कर्मचारियों, राज्य सरकारों के सभी कर्मचारियों और अपने व्यक्तिगत प्रयासों से पहले से सरकारी नौकरी में बैठे उन लोगों की संख्या 2 करोड़ से कम है और इस कामगार संख्या को भी हर महीने सैलरी या पेंशन देने के कारण न सिर्फ केंद्र सरकार बल्कि देश के सभी राज्यों की सरकारें आर्थिक दबाव से जूझ रही हैं। 
ऐसे में सिर्फ अपने रिसोर्स से बिहार की सरकार दो करोड़ के आसपास नौकरियां कैसे सृजित कर सकती है, इसका कोई व्यवहारिक दावा उसके पास नहीं है। मीडिया द्वारा बार-बार इस सवाल को केंद्र में लाये जाने के बाद भी महागठबंधन और तेजस्वी अपने इस दावे को पूरा करने का ब्लू प्रिंट दिखाएं, अभी तक महागठबंधन ने ऐसी किसी योजना का व्यवहारिक ब्लू पिं्रट नहीं पेश किया, हर बार किसी न किसी तरीके से इस कोशिश को टाला है। ऐसे में सवाल यह है कि वह बिहार जिसके लगभग हर दूसरे घर से कोई नौजवान देश के अलग-अलग शहरों-महानगरों में रह रहे हैं और इन सरकारों के यहां भी सरकारी नौकरी का जो संकट देख रहे हैं, उसके चलते उन्हें नहीं लगता कि यह हवा हवाई वायदा हकीकत में बदलेगा? शायद यही कारण है कि इस पर चर्चा तो बहुत हो रही है, लेकिन कोई भी राजनीतिक पार्टी अब नौकरी देने जैसी कमिटमेंट से भागना चाहती है। माना जा रहा है कि बिहार के प्रवासियों ने तेजस्वी के इन वायदों को इमोशनल ब्लैकमेल के खाते में डालने की मंशा कर ली है। क्योंकि बार-बार पूछे जाने के बाद भी अभी तक महागठबंधन ने बेहद महत्वाकांक्षी वायदों को लेकर एक ब्लू प्रिंट पेश नहीं किया। यही कारण है कि पहले चरण की वोटिंग के बाद भले दोनों गठबंधनों की तरफ से अपने ही फेवर में हुई भारी मतदान की स्वीकृति हुई थी, मगर अंदर ही अंदर सभी जानते हैं कि इन चुनाव में बहुत कुछ अप्रत्याशित हो सकता है। इसलिए आज के चुनाव में दोनाें ही गठबंधन अपनी सारी ताकत झोंककर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश में दिखेंगे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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