विश्व में भारतीय डॉक्टरों की मांग, लेकिन घर में हाल बेहाल क्यों ?
साल 2023 में लगभग 2.25 लाख भारतीयों ने विकसित अर्थव्यवस्थाओं की नागरिकता ग्रहण की, इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक 2025 रिपोर्ट के अनुसार, जिसे 3 नवम्बर, 2025 को ओईसीडी (आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनोमिक कोऑपरेशन एंड डिवेल्पमेंट) ने जारी किया। हालांकि 2023 में ओईसीडी सदस्य देशों में दूसरे मुल्कों के तकरीबन 2.8 मिलियन लोगों ने नागरिकता ली थी, लेकिन इसमें सबसे अधिक संख्या भारतीयों की थी, जोकि भारत के लिए भी नया रिकॉर्ड है। बहरहाल, इस रिपोर्ट का ज़बरदस्त चौंकाने वाला पहलू यह है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं के हेल्थ सिस्टम्स के लिए भारतीय डॉक्टर व नर्स अपरिहार्य हो गये हैं। भारत ओईसीडी देशों में प्रवासी डॉक्टरों का सबसे बड़ा और नर्सों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है। ओईसीडी सदस्य देशों में अमरीका, कनाडा, यूरोपीय देश, न्यूज़ीलैण्ड व ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक प्रवासी मेडिकल प्रोफेशनल्स पर निरन्तर बढ़ती निर्भरता ग्लोबल हेल्थकेयर में जीवनरेखा भी है और कमज़ोरी भी। यह आश्चर्यजनक नहीं है और सुनकर अच्छा अवश्य लगता है कि हमारे डॉक्टरों व नर्सों की पूरी दुनिया में बहुत मांग है, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि हम अपने ही देश में मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त व स्तरीय बना शीर्ष मेडिकल पर्यटक स्थल क्यों नहीं बना पाते?
गौरतलब है कि 2020-21 में ओईसीडी सदस्य देशों में भारत में जन्मे 98,857 डॉक्टर व 1,22,400 नर्सें कार्यरत्त थीं। यह 2000-01 की तुलना में क्रमश: 76 प्रतिशत व 435 प्रतिशत का इज़ाफा है। इससे दो बातें एकदम स्पष्ट हो जाती हैं। एक, इससे इस बात कि पुष्टि होती है कि वृद्ध होती जनसंख्या और हेल्थकेयर की बढ़ती मांग की चुनौतियों को संबोधित करने के लिए विकसित अर्थव्यवस्थाओं के पास सबसे ज़ाहिर रास्ता कुशल प्रवासी कार्यबल पर निर्भर होना ही था, जोकि इस शताब्दी के आरंभ व भू-मंडलीकरण से नज़र आने लगा था। नतीजतन ओईसीडी सदस्य देशों की सेवा में जो इस समय कुल डॉक्टर हैं, उनमें से लगभग चौथाई प्रवासी हैं। दूसरा यह कि प्रवासी-विरोधी नीतियों को संरक्षण प्रदान करना देशों के अपने हित में नहीं है। सभी राष्ट्र इस तथ्य को समझते हैं और भारत जैसे देशों से हेल्थकेयर वर्कर्स भर्ती करने के लिए अपनी नीतियों में संशोधन कर रहे हैं।
रिपोर्ट में विशेष रूप से बेल्जियन प्रोजेक्ट का उल्लेख किया गया है, जिसके तहत फ्लेमिश हेल्थकेयर सिस्टम के लिए भारतीय नर्सों को प्रशिक्षण दिया जाता है, खासकर बुजुर्गों की देखभाल के लिए। इस दो वर्ष के पाठ्यक्रम के पहले दो माह में केरल में प्रशिक्षण दिया जाता है, जिस दौरान डच भाषा भी सिखायी जाती है। इस किस्म की पहल स्वागतयोग्य हैं और साथ ही सरकारें जो आपस में मिलकर प्रयास करती हैं, जैसे इंग्लैंड व आयरलैंड के साथ भर्ती समझौते। आयरलैंड में 2023 में आधे से अधिक नर्सिंग कार्यबल की ट्रेनिंग विदेश में हुई थी। आयरलैंड में भारतीय नर्सों की बहुत बड़ी तादाद है। ओईसीडी सदस्य देशों में 8,30,000 से अधिक ऐसे डॉक्टर हैं, जिनका जन्म विदेशों में हुआ है और विदेशों में जन्मी नर्सों की संख्या 1.8 मिलियन है, यानी इन पेशों में कार्यबल का क्रमश: एक-चौथाई व एक-छठवां भाग विदेशी है। इन प्रोफेशनल्स का मुख्य स्रोत एशिया है, जहां से लगभग 40 प्रतिशत डॉक्टर व 37 प्रतिशत नर्स आती हैं।
डॉक्टरों का मुख्य स्रोत भारत, जर्मनी व चीन हैं और नर्सों का मुख्य स्रोत फिलीपींस, भारत व पोलैंड हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ओईसीडी सदस्य देशों की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की स्थिरता के लिए प्रवासी डॉक्टर व नर्स निरन्तरता के साथ महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं।’ इनकी कमी अस्थायी की बजाये संरचनात्मक है और बिना स्थिर अंतर्राष्ट्रीय भर्ती हालात बदतर हो जायेंगे। रिपोर्ट के अनुसार, ‘बिना प्रवासी आगमन के ओईसीडी सदस्य देशों में श्रम अभाव को संबोधित नहीं किया जा सकता। इसलिए जन सेवाओं के दबाव का प्रबंधन करने हेतु प्रभावी प्रवासी नीतियों की ज़रूरत है।’ सबसे ज़्यादा भारतीय हेल्थ प्रोफेशनल्स इंग्लैंड, अमरीका, कनाडा व ऑस्ट्रेलिया में जाते हैं। इस संदर्भ में देश-विशिष्ट डाटा केवल 2021 का उपलब्ध है। इंग्लैंड में भारत-प्रशिक्षित डाक्टर 17,250 थे (सभी विदेशी-प्रशिक्षित डॉक्टरों का 23 प्रतिशत), जिससे मालूम होता है कि ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस को कायम रखने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। अमरीका व कनाडा में 16,800 व 3,900 भारत-प्रशिक्षित डाक्टर थे यानी विदेशी-प्रशिक्षित डॉक्टरों का क्रमश: 8 प्रतिशत व 4 प्रतिशत। ऑस्ट्रेलिया में भारत-प्रशिक्षित डाक्टरों की संख्या 6,000 थी यानी सभी विदेशी-प्रशिक्षित डाक्टरों का 10 प्रतिशत। इन स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में भारत-प्रशिक्षित नर्स भी छायी रहीं कि वह इंग्लैंड में 36,000 (18 प्रतिशत), अमरीका में 55,000 (5 प्रतिशत), कनाडा में 7,000 (14 प्रतिशत) और ऑस्ट्रेलिया में 8,000 (16 प्रतिशत) थीं।
गौरतलब है कि रिपोर्ट ‘विदेशी-जन्म’ व ‘विदेशी-प्रशिक्षित’ हेल्थ प्रोफेशनल्स में अंतर करती है। विदेशी-जन्म प्रोफेशनल्स की संख्या विदेशी-प्रशिक्षित प्रोफेशनल्स से अधिक है, क्योंकि उनमें दूसरी पीढ़ी के प्रवासी भी शामिल हैं, जिन्होंने पलायन के बाद स्थानीय डिग्री हासिल की। ओईसीडी सदस्य देशों में 2021-23 में 6,06,000 विदेशी-प्रशिक्षित डॉक्टर थे, जिनमें से 75,000 (12 प्रतिशत) भारत-प्रशिक्षित थे। विदेशी-प्रशिक्षित 7,33,000 नर्सों में भारत का हिस्सा 17 प्रतिशत या 1,22,000 था। रिपोर्ट के अनुसार भारत का दबदबा अनेक कारणों से है। बड़े पैमाने पर मेडिकल शिक्षा प्रदान करना, अंग्रेज़ी भाषा की जानकारी और ओईसीडी सदस्य देशों द्वारा टारगेट द्विपक्षी भर्तियां। वर्ष 2000 और 2021 के दरमियान विदेशों में कार्य कर रही भारत-प्रशिक्षित नर्सों की संख्या में चार गुना से अधिक का इज़ाफा हुआ, 23,000 से 1,22,000। इसी अवधि में डॉक्टर 56,000 से 99,000 हुए। लेकिन इससे ‘मानव पूंजी हृस’ का प्रश्न तो उठता ही है क्योंकि भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की हेल्थ वर्कफोर्स स्पोर्ट एंड सेफ गार्ड्स सूची पर है, जो यह उन देशों की पहचान करती है जिनमें कार्यबल की ज़बरदस्त कमी है। अत: यह सवाल प्रासंगिक है कि भारतीय डॉक्टरों व नर्सों की उच्च वैश्विक मांग के बावजूद घरेलू फ्रंट पर उदासी क्यों छायी हुई है?
दुनिया के मेडिकल पर्यटन बाज़ार में भारत दसवें नम्बर पर है और 12.3 प्रतिशत के सीएजीआर (कम्पाउंड एनुअल ग्रोथ रेट) के साथ 2035 तक उसका यह बाज़ार 58 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। 2024 में 6.4 लाख से भी अधिक मेडिकल पर्यटन वीज़ा जारी किये गये थे। कमियों को दुरुस्त किया जाये, तो भारत दुनिया का शीर्ष मेडिकल पर्यटन बन सकता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर



