भारत-अमरीका तनाव के बीच क्वाड सम्मेलन को लेकर असमंजस 

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पसंदीदा समूह क्वाड की सुरक्षा वार्ता हेतु नई दिल्ली में इस साल के अन्त तक प्रस्तावित क्वाड शिखर सम्मेलन-2025 अब भारत-अमरीका संबंधों में तनाव, जिसमें व्यापार और राजनीतिक दोनों मुद्दे शामिल हैं, के कारण गहरे संकट में है। साथ ही, इस साल मई में चार दिनों के भारत-पाकिस्तान युद्ध रोकने में अमरीकी राष्ट्रपति की भूमिका को लेकर ट्रम्प और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच व्यक्तिगत संबंधों में भी गिरावट आई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फरवरी 2025 की व्हाइट हाउस यात्रा के दौरान तय किए गए मूल कार्यक्रम के अनुसार यह निर्णय लिया गया था कि भारत 2025 की दूसरी छमाही में क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा और ट्रम्प भारत का दौरा करेंगे। अमरीकी राष्ट्रपति के सूत्रों ने स्पष्ट रूप से बताया कि कार्यक्रम तय करने का काम केवल भारतीय प्रधानमंत्री पर छोड़ दिया गया था। अब 7 नवम्बर तक प्रधानमंत्री कार्यालय या विदेश मंत्रालय की ओर से इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि क्वाड शिखर सम्मेलन हो रहा है और उसकी तैयारियां की जा रही हैं। हालांकि अमरीकी अधिकारियों द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों में यह संकेत दिया गया था कि क्वाड बरकरार रहेगा, लेकिन उन्होंने भी इस पर कोई टिप्पणी नहीं की कि भारत इसकी मेज़बानी करेगा या नहीं।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा 2017 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान प्रचारित क्वाड में अमरीका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। अमरीका इसे एशिया-प्रशांत देशों के एक समूह के रूप में देखता था जो प्रशांत क्षेत्र में दीर्घकालिक सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने के लिए चारों देशों के लिए एक सामूहिक तंत्र के रूप में कार्य करेगा। उस समय आधिकारिक दस्तावेज में चीन का नाम आधिकारिक तौर पर नहीं लिया गया था, लेकिन यह स्पष्ट था कि अमरीका एशिया-प्रशांत में चीनी सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए क्वाड के माध्यम से भारत को एक प्रमुख भागीदार के रूप में देखना चाहता था।
यही वह दौर था जब नरेंद्र मोदी ट्रम्प के अच्छे मित्र थे और उनकी व्यक्तिगत समझ उच्च कोटि की थी। चीन का मुद्दा भारतीय प्रधानमंत्री के लिए लगातार चिंता का विषय रहा है और उन्होंने चीन के विरुद्ध ट्रम्प की एशिया-प्रशांत समुद्री सुरक्षा रणनीति का हिस्सा बनने के लिए खुशी-खुशी सहमति जताई। जुलाई 2020 में भारत और चीन के बीच गलवन घाटी में हुई झड़पों, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, के बाद क्वाड के प्रति यह लगाव और भी प्रबल हो गया। बाइडन के कार्यकाल में क्वाड दृष्टिकोण 2024 तक और ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के पहले दो महीनों के दौरान अप्रैल 2025 तक जारी रहा।
लेकिन भारत के लिए इस वर्ष अप्रैल के बाद और अगस्त से स्थिति में भारी बदलाव आया, जब अमरीका को भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत का कुल टैरिफ  लागू हो गया, जिससे अमरीकी बाज़ार में भारतीय निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। अमरीका ने भारत को कच्चा तेल निर्यात करने वाली रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिए और इससे एक संकट की स्थिति पैदा हो गई जब भारतीय कंपनियों को रूस से आपूर्ति कम करने के लिए मज़बूर होना पड़ा। भारत-अमरीका व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के लिए चल रही तमाम मौजूदा बातचीत के बावजूद अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। ट्रम्प और मोदी के बीच कभी-कभार होने वाली बातचीत और एक-दूसरे को नमस्कार कहने के बावजूद भारत-अमरीका संबंधों में गतिरोध बना हुआ है।
अमरीकी सूत्रों के अनुसार ट्रम्प इस साल 30 अगस्त को चीन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ नरेंद्र मोदी की मुलाकात के दौरान भारत द्वारा चीन के साथ दोस्ती के नए कदमों से काफी नाराज़ हैं। अमरीकी विदेश मंत्रालय के अधिकारी इस बात का आकलन करने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या यह भारत द्वारा चीन को खुश करने की कोई नीतिगत पहल थी या नाराज़ मोदी की ओर से ट्रम्प को कोई संकेत देने की एक अस्थायी चाल थी। व्हाइट हाउस में आम राय यह है कि नरेंद्र मोदी कभी भी चीन के दोस्त नहीं हो सकते। अगर अमरीकी राष्ट्रपति उन्हें राष्ट्रहित के रक्षक के रूप में अपनी छवि बनाए रखने के लिए कुछ रियायतें देते हैंए तो वह ट्रम्प के पाले में लौट जाएंगे।
अब क्वाड का भविष्य और नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन की संभावना भारत-अमरीका व्यापार समझौते के सफल समापन पर निर्भर करती है। भारतीय वार्ता दल ने भारत सरकार को विकल्प दिए हैं और प्रधानमंत्री को फैसला लेना है। भारत सरकार और कच्चे तेल व पेट्रोलियम उत्पादों के निजी आयातक रूस से आयात में भारी कमी करने के लिए तैयार हैं। प्रधानमंत्री ने इसकी अनुमति दे दी है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि डेयरी समेत कृषि उत्पादों की बाज़ार पहुंच के मामले में, जो गुजरात को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है, प्रधानमंत्री अमरीकी कंपनियों को किसी भी बड़े बाज़ार तक पहुंच की अनुमति नहीं देने के अपने पुराने रुख पर अडिग हैं। बातचीत गोपनीय रखी जा रही है। इसलिए दूसरों के लिए यह पता लगाना मुश्किल है कि भारत-अमरीका व्यापार वार्ताकारों की पिछली बैठक में भारतीय वार्ताकारों ने किस हद तक सहमति व्यक्त की थी।इस तरह भारत में क्वाड शिखर सम्मेलन भारत-अमरीका व्यापार समझौते के समापन से जुड़ा है। अगर यह समझौता हो जाता है तो राष्ट्रपति ट्रम्प नरेंद्र मोदी की मेज़बानी में शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आने पर सहमत हो सकते हैं। दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी भी व्यापार गतिरोध की स्थिति में ट्रम्प का स्वागत करने में रुचि नहीं लेंगे। इसलिए दोनों ही तरह से अगर व्यापार समझौते पर सहमति नहीं बनती हैए तो क्वाड सम्मेलन भारत में आयोजित करने की सम्भावना कम है।
कुछ अमरीकी मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि अमरीका भारत को छोड़कर क्वाड शिखर सम्मेलन आयोजित कर सकता है जिसमें फिलीपींस भी शामिल होगा। इसका उद्देश्य भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान को भ्रमित करना है। फिलहाल ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता क्योंकि फिलीपींस भारत का विकल्प नहीं है, जो एक प्रमुख आर्थिक और समुद्री शक्ति है। फिलीपींस और आसियान के एक-दो अन्य देशों को शामिल करके क्वाड का विस्तार किया जा सकता है, लेकिन अमरीका के लिए एशिया-प्रशांत रणनीति को कारगर बनाने में भारत महत्वपूर्ण है। इसलिए अमरीका नरेंद्र मोदी को अपने रास्ते पर लाने के लिए अंत तक प्रयास करेगा। अब यह हमारे प्रधानमंत्री पर निर्भर है कि वह दिखाएं कि क्या भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का प्रयोग कर सकता है और अपने बारे में निर्णय ले सकता है? (संवाद)

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