विश्व प्रसिद्ध है सोनपुर का पशु मेला

आज का दौर इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, डिजिटल पेमेंट और ई-कॉमर्स का दौर है। यहां तक कि लोग अब पालतू और रोजमर्रा की ज़िंदगी में उपयोगी पशुओं की खरीदारी के लिए भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे समय में भी सदियों से लगने वाला बिहार का सोनपुर पशु मेला न सिर्फ आज भी लग रहा है बल्कि उसका पहले की तरह आकर्षण भी मौजूद है, जो इस मेले की आर्थिक और सांस्कृतिक महत्ता को खुद ही बखान कर रहा है। अगर हम आज की लाइफस्टाइल की तुलना पिछले 50 साल तो दूर, 20 साल पहले से भी करें तो लगेगा जैसे दो जीवनशैलियों के बीच जमीन आसमान का फर्क है लेकिन सोनपुर मेला जो करीब 2,000 साल पुराना माना जाता है, उसकी जो महत्ता 500 साल, 100 साल, 50 साल या 20 साल पहले थी, आश्चर्यजनक ढंग से उसकी वही महत्ता आज भी बरकरार है। यह न केवल चमत्कारिक है बल्कि इस बात का सबूत भी है कि ज़िंदगी की कुछ बुनियादी ज़रुरतें और उनका आकर्षण कभी भी कम नहीं होता। 
लोकजीवन की जड़ों से जुड़ा मेला
सोनपुर का पशु मेला न केवल पशुओं की खरीद फरोख्त की दृष्टि से एशिया का सबसे बड़ा और विश्व का अद्वितीय पशु मेला है बल्कि यह अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिकी दृष्टि से भी विशिष्ट आयोजन है, जिसकी चमक सदियों से बरकरार है। यह मेला बिहार ही नहीं, पूरे भारत की ग्रामीण आत्मा और उसकी जीवनशैली का प्रतिनिधित्व भी पेश करता है। सोनपुर के पशु मेले का इतिहास 2,000 साल पुराना है। इस मेले में पशुओं का व्यापार तो होता ही है, लेकिन यह भक्ति, संस्कृति और लोक परंपराओं का भी महाकुंभ है। गंगा और गंडक नदियों के संगम पर सोनपुर में लगने वाला यह मेला अपने पीछे कई पौराणिक आख्यानों की थाती रखता है, तो ग्रामीण जीवन की परंपरा का भी सबसे विश्वसनीय स्रोत भी है। इसी कारण इस आईटी युग में भी जब शहरों में धार्मिक आस्था, अकसर दिखावे तक सीमित रह गई है, सोनपुर का यह ग्रामीण पशु मेला भारत की सांस्कृतिक अस्मिता को जीवित रखे है। 
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार
सोनपुर का पशु मेला भारत की परंपरिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक बड़ा और धड़कता केंद्र है। इस मेले में गाय, भैंस, बैल, घोड़े, ऊंट और हाथी तक बिकते हैं और इन पशुओं की यहां खरीद फरोख्त मौर्यकाल से होती आ रही है। यह मेला स्थानीय किसानों और पशु पालकों के लिए कमाई का एक बड़ा अवसर होता है। हाल के सालों में बिहार सरकार ने इसे ‘एग्रीकल्चर एंड लाइवस्टॉक केयर’ के रूप में विकसित किया है। आज यह मेला आधुनिक डेयरी तकनीकों और पशु पालन संबंधी योजनाओं के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। यहां अनगिनत डेयरी उत्पादों और कृषि उपकरणों की विशिष्ट प्रदर्शनी भी लगायी जाती है। जिसे देखने के लिए देश ही नहीं दुनिया के कोने कोने से इन चीजों में रुचि रखने वाले लोग आते हैं। यही कारण है कि अब यह मेला सिर्फ पशु विक्रय मेला नहीं बल्कि ग्रामीण विकास का संवाद मंच बन चुका है। जहां किसानों को आधुनिक जानकारी और स्थानीय व्यापारियों को तमाम तरह के लाभ मिलते हैं।
पर्यटन और विरासत का भी आकर्षण
आज के इस आईटी युग में भी अगर सोनुपर पशु मेला इस कदर लोकप्रिय है, तो इसमें पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत से दोचार होने का भी आकर्षण मौजूद है। वास्तव में सोनपुर के पशु मेले को अनुभव आधारित पर्यटन का विशिष्ट केंद्र माना जाता है। यही वजह है कि इस मेले में देश-विदेश के लाखों लोग सिर्फ बेंचने, खरीदने के लिए ही नहीं आते बल्कि इस मेले की सांस्कृतिक आत्मा को जीने के लिए भी आते हैं। इस सदियों पुराने पशु मेले में आज भी लोकनृत्यों, लोकगीतों, नुक्कड़ नाटकों, हस्तशिल्प और लोकभोजनों का हर तरफ खुशबूभरा आकर्षण मौजूद होता है। वास्तव में इस मेले में आकर हम एक ऐसे ग्रामीण भारत से रूबरू होते हैं, जिसकी चमक और खनक आज भी पूरी दुनिया को अपनी तरफ आकर्षित करती है। इसलिए विदेशी पर्यटक इस पशु मेले का भारत की ग्रामीण संस्कृति का ओपन एयर म्यूजियम भी कहते हैं। यहां का हाथी बाज़ार, हालांकि आज पहले के मुकाबले बहुत छोटा और विरासत के रूप में ही मौजूद है लेकिन कभी यह एशिया का सबसे बड़ा हाथी बाज़ार हुआ करता था। बिहार सरकार सोनपुर मेले को हेरिटेज टूरिस्ट के रूप में भी प्रमोट करती है, जिससे स्थानीय लोगों की आय में इजाफा होता है और वैश्विक स्तर पर भारत की सांस्कृतिक पहचान मज़बूत होती है। 
परम्परा का डिजिटलीकरण
सोनपुर पशु मेला अब केवल भौतिक रूप में यहां की धरती पर ही नहीं लगता, इसका एक बड़ा और व्यापक डिजिटल संस्करण भी मौजूद है। बिहार पर्यटन विभाग की वेबसाइट, सोशल मीडिया एकाउंट और ऑनलाइन बुकिंग सुविधाओं के जरिये देशभर के लोग इस मेले से न केवल डिजिटल दुनिया में रूबरू होते हैं बल्कि वो डिजिटल तरीके से खरीद फरोख्त भी करते हैं। एक तरह से यह डिजिटल और पारंपरिक लोकजीवन का बेहद सुंदर संगम है। सोनपुर का मेला सिर्फ व्यापार मेला नहीं बल्कि विभिन्न समुदायों के मिलने-जुलने, रिश्ते बनाने और अनुभव साझा करने का मंच भी है। इसलिए ग्रामीण समाज में यह मेला सामाजिक बंधन और लोकसंवाद की परंपरा को भी प्रोत्साहित करता है। 
आज जब पूरी दुनिया में वर्चुअल आयोजनों की भरमार है, ऐसे समय में सोनपुर का यह लोक मेला वास्तविक सामाजिक जुड़ाव का अनुभव देता है। यहां किसान, व्यापारी, शिल्पकार, संगीतकार और लोककला सब मिलकर आम नागरिक जीवन की बेहद सतरंगी तस्वीर पेश करते हैं। यही वजह है कि आज के इस डिजिटल युग में भी सोनपुर के पशु मेले का आकर्षण जरा भी कम नहीं हो रहा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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