रहस्यमयी मौतों के घेरे में एसआईआर 

राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जारी स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (एसआईआर) के बीच बूथ लेवल अफसरों (बीएलओ) की मौत व उनका बीमार होना गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। 4 नवम्बर 2025 से आरंभ हुई एसआईआर से इस लेख के लिखे जाने तक 6 राज्यों में 16 बीएलओ की मृत्यु हो गई है, जिनके कारण आत्महत्या, हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज आदि हैं। इसके अतिरिक्त तनाव व डिप्रेशन की वजह से सैंकड़ों बीएलओ बीमार पड़े हैं। गुजरात में 4 दिन में 4 बीएलओ की मौत हो चुकी है, जबकि एक ने आत्महत्या की है। मध्य प्रदेश में पिछले 48 घंटों के दौरान 4 बीएलओ की मौत हुई है, दो को हार्ट अटैक हुआ है, एक लापता है और 50 से ज्यादा बीमार पड़े हैं। पश्चिम बंगाल में अब तक 3 बीएलओ की मौत हुई है, जिनमें से दो ने आत्महत्या की है। राजस्थान से तीन और तमिलनाडु व केरल से 1-1 बीएलओ के मरने की खबरें अभी तक मिली हैं। 
पश्चिम बंगाल के नादिया ज़िले में बीएलओ के रूप में कार्य कर रही एक महिला का शव 22 नवम्बर 2025 को उसके घर पर लटका हुआ मिला। उसके परिजनों का कहना है कि वह एसआईआर के काम के कारण बहुत अधिक तनाव में थी। पुलिस ने श्रीमती रिंकू तरफदार की मौत का कारण आत्महत्या बताया है। महिला ने अपने आत्महत्या नोट में लिखा है कि उस पर ‘एसआईआर के कार्य का बहुत अधिक दबाव था’। इस तनाव को वह ‘बर्दाश्त नहीं कर पा रही’ थी, इसलिए तनाव में थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आत्महत्या नोट को साझा करते हुए बीएलओ की मौत पर दु:ख व्यक्त किया और इसके लिए चुनाव आयोग को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यह ‘वास्तव में अब बहुत चिंताजनक हो गया है’। 
चूंकि बीएलओ की दिल का दौरा पड़ने व आत्महत्या से हो रही मौतों को एसआईआर के कार्य-संबंधी ‘दबाव’ से जोड़ा जा रहा है, इसलिए चुनाव आयोग के अधिकारियों का कहना है कि एसआईआर के फेज़-2 के कार्य को अधिक ‘रिलैक्स गति’ से आगे बढ़ाया जा रहा है। फेज़-1 बिहार के लिए विशिष्ट था। एक अधिकारी के अनुसार, बिहार में मतदाता फॉर्म चार दिन में बांट दिये गये थे, लेकिन फेज़-2 में वितरण की अवधि को बढ़ाकर 10 दिन कर दिया गया है। इस अधिकारी का यह भी कहना है कि बीएलओ पर दबाव की शिकायतें मुख्यत: पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से ही आ रही हैं, जबकि अन्य राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर का कार्य एकदम सुचारू रूप से चल रहा है। इस अधिकारी ने इस संदर्भ में राजस्थान के एक बीएलओ बाबू लाल की मिसाल दी कि उसने अपंग होने के बावजूद चुनावी फॉर्म का 100 प्रतिशत डिजिटलीकरण पूर्ण कर लिया है। 
लेकिन इस अधिकारी ने इस बारे में कुछ नहीं कहा कि 23 नवम्बर, 2025 को बीएलओ 48-वर्षीय मुकेश जांगिड़ ने रेल के आगे कूदकर अपनी जान क्यों दी? राजस्थान के ही करौली में एक अन्य बीएलओ की मौत एसआईआर कार्य-संबंधी दबाव के कारण हुई है और सवाई माधोपुर में एक बीएलओ को इसी वजह से दिल का दौरा पड़ा है। उधर मध्य प्रदेश के रायसेन में बीएलओ रमाकांत पांडे की मौत हुई। उनके परिजनों ने बताया कि वह चार रातों से सोये नहीं थे। ऑनलाइन मीटिंग के बाद बेहोश होकर गिर पड़े, फिर बचाया नहीं जा सका। दामोह के 50 वर्षीय सीताराम गौड़ फार्म भरते समय बीमार हुए और उनकी भी मौत हो गई। रामसेन के बीएलओ नारायण सोनी सात दिन से लापता हैं। उनके परिजनों का कहना है कि टारगेट, देर रात मीटिंग और निलम्बन की चेतावनी से परेशान थे। भोपाल में काम कर रही बीएलओ कीर्ति कौशल और मोहम्मद लईक को ड्यूटी के दौरान हार्ट अटैक आया, दोनों अस्पताल में भर्ती हैं। दतिया के 50 वर्षीय बीएलओ उदयभान सिहारे ने 11 नवम्बर 2025 को आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने भी एसआईआर के कार्य-संबंधी तनाव को अपनी जान स्वयं लेने का कारण बताया। गुजरात में चार दिन में चार बीएलओ की मौत हुई है, जिनमें से सौराष्ट्र के अरविंद वाढेर ने अपनी आत्महत्या चिट्ठी में लिखा— काम नहीं हो सकता। 
यह संभव है कि बीएलओ की मौतों व आत्महत्याओं की वजह केवल एसआईआर का कार्य-संबंधी दबाव न हो बल्कि कुछ मानसिक व अन्य कारण भी हों, लेकिन जब कुछ बीएलओ ने अपने खुदकुशी पत्रों में चुनाव आयोग को ज़िम्मेदार ठहराया है, तो इस पर गौर करना आवश्यक है। आखिरकार हर एक व्यक्ति की जान की कीमत होती है और उसका परिवार उस पर आश्रित होता है। एक कर्मचारी की मौत से उसका पूरा परिवार बिखर जाता है, टूट जाता है। दूसरी ओर विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि चुनाव आयोग उनके मतों को डिलीट करने की साज़िश कर रहा है। यह भी उन पर एक प्रकार का दबाव है। गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा सरकार व चुनाव आयोग पर आरोप लगाया है कि वे मिलकर साज़िश कर रहे हैं कि जिन विधानसभा सीटों पर पिछले आम चुनाव में इंडिया गठबंधन ने अच्छा प्रदर्शन किया था, उनमें से हर एक पर 50,000 से अधिक वोट डिलीट कर दिये जाएं। यादव यह भी चाहते हैं कि एसआईआर विवाह के सीजन में जारी न रखी जाये और उनकी मांग डेड लाइन बढ़ाने की भी है ताकि मतदाता सूची सही से तैयार करने में कोई कमी न रह जाये। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि गलत या सही, यह धारणा बन गई है कि एसआईआर के कार्य-संबंधी दबाव के कारण बीएलओ आत्महत्या कर रहे हैं, मर रहे हैं या बीमार पड़ रहे हैं। अब यह चुनाव आयोग की ज़िम्मेदारी है कि वह बीएलओ पर डेड लाइन के प्रेशर को कम करे, उन्हें काम पूरा करने के लिए अधिक समय दे ताकि इस धारणा को दूर किया जा सके। इसके अतिरिक्त यह भी आवश्यक है कि मतदाता सूची एकदम सही तैयार की जाये, जिसमें देश का हर असली मतदाता शामिल हो ताकि नागरिकों का लोकतंत्र व चुनावी प्रक्रिया में विश्वास बना रहे।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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