चंडीगढ़ पंजाब का
एक बार फिर चंडीगढ़ को लेकर केन्द्र की भाजपा सरकार उत्तेजित हुई प्रतीत होती है। नि:संदेह साल 1966 में पंजाब पुनएर्क्ट के समय केन्द्र में कांग्रेस सरकार ने पंजाब के साथ बड़ा धक्का करते हुए इसकी राजधानी चंडीगढ़ इसको न देकर बड़ा अपराध किया था। इस संबंधी हम भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की प्रशंसा करते हैं कि उन्होंने देश की आज़ादी के समय 1947 में देश के विभाजन को आंखों से देखा था और इससे उभरे दर्द को उन्होंने खुद झेला और महसूस भी किया था। उनको यह पूरा अहसास था कि इस विभाजन के समय विशाल धरती वाले खुशहाल और देश की आज़ादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पंजाब का बहुत नुकसान हुआ था। लाखों लोग इस दुखांत में मारे गये थे। लाखों परिवार शरणार्थी बन कर नये बन रहे पाकिस्तान से भारत की सीमा पार करके आये थे। बाद में इसी अहसास के कारण उन्होंने पंजाब के पूनर्निर्माण के लिए भाखड़ा डैम बनाने की योजना में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। इसके साथ ही उनको अहसास हुआ था कि साझे पंजाब का सदियों से ऐतिहासिक रहा शहर लाहौर पूर्वी पंजाब से छिन गया है। उन्होंने इसी कारण लाहौर के बदले पंजाब को चंडीगढ़ के रूप में राजधानी बनाकर देने के लिए भी अहम योगदान डाला।
भारतीय पंजाब में पहले 1947 में इसकी राजधानी शिमला को बनाया गया था और उसके बाद योजनाबद्ध ढंग के साथ तैयार किए गये चंडीगढ़ को 21 सितम्बर, 1953 को पंजाब की राजधानी में तबदील कर दिया गया। उसके बाद पंजाब पुनर्गठन एक्ट-1966 में चंडीगढ़ को उस समय की केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने केन्द्र-शासित इलाका बना दिया, जो पंजाब के साथ सरासर बड़ी बेइन्साफी थी, जिसको आज तक भी केन्द्र में बनी सरकारें दूर नहीं कर सकीं। चंडीगढ़ का निर्माण पंजाब के पुआध इलाके के दर्जनों गांवों को उजाड़ कर किया गया था। इन पंजाबी गांवों का उजाड़ा एक अलग दु:खद दास्तान बना रहा परन्तु आज तक भी केन्द्र की यह ज़्यादती जारी है। 1966 में पहले इसको अलग प्रशासनिक इकाई ऐलान करके यहां केन्द्र द्वारा अपना मुख्य प्रशासक लगाया गया था परन्तु साल 1984 में इसको बदल कर राज्यपाल पंजाब को ही इसका प्रशासक बना दिया गया। इससे पहले चंडीगढ़ की प्राप्ति के लिए पंजाब द्वारा लगातार किए जा रहे संघर्ष के कारण केन्द्र सरकार ने वर्ष 1985 में सैद्धांतिक रूप में चंडीगढ़ को पंजाब में तबदील करने का फैसला ले लिया था, परन्तु बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी संत लौंगोवाल के साथ किए गए अपने लिखित समझौते से पीछे हट गए, यह केन्द्र द्वारा पंजाब के साथ की गई ज़्यादतियों का एक और बड़ा उदाहरण था।
अब 10 वर्ष से अधिक समय से केन्द्र में मुख्य रूप में भाजपा सरकार कायम है। इसके गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी राजनीतिक मसलहतों के कारण समय-समय पर अपनी योजनाएं बना कर चंडीगढ़ के स्वरूप को ऐसा बनाने का यत्न किया ताकि आगामी समय में इस शहर को पंजाब में शामिल करने की बात का विवाद ही खत्म कर दिया जाए। उन्होंने इसमें प्रशासनिक फेरबदल करते हुए पंजाब तथा हरियाणा के अधिकारियों के अनुपात को लगभग बदल कर केन्द्रीय अधिकारियों को यहां तैनात करना शुरू कर दिया ताकि चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार को कमज़ोर कर दिया जाए और इसके प्रशासनिक स्वरूप को आधारभूत तौर पर बदल दिया जाए। उसके बाद हरियाणा में भाजपा के इशारे पर केन्द्रीय गृह मंत्री ने चंडीगढ़ में हरियाणा को अलग सचिवालय बनाने के लिए ज़मीन देने की भी अनुमति दे दी ताकि पंजाब की चंडीगढ़ की मांग को बिल्कुल ही खत्म कर दिया जाए। इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी चलाने वाली संस्थाओं सीनेट और सिंडीकेट के गठन में बड़े बदलाव करके पंजाब सरकार को एक तरह से यूनिवर्सिटी में से मनफी करने की कोशिश की गई और अब केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा कानून में संशोधन करके चंडीगढ़ को दूसरे केन्द्र शासित प्रदेशों की तरह इस पर प्रत्यक्ष रूप में कब्ज़ा करने के लिए संसद में संशोधन विधेयक लाने की तैयारियां शुरू की गई हैं। ऐसे दृश्यों में पंजाबियों का केन्द्र के प्रति क्रोधित होना स्वाभाविक है। इस संबंध में पंजाब सरकार सहित लगभग सभी पार्टियों द्वारा केन्द्र की ओर से की जाने वाली इस सम्भावित ज़्यादती के बारे में कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट की गई है।
नि:संदेह पंजाब की भाजपा इकाई भी इस मामले पर बचाव की स्थिति में आई प्रतीत होती है। पंजाब में सख्त प्रतिक्रिया को देखते हुए चाहे केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आगामी शीत ऋतु सत्र में ऐसा विधेयक लाने से इन्कार कर दिया है, परन्तु गृह मंत्रालय की शब्दावली से यह अवश्य स्पष्ट होता है कि केन्द्र द्वारा इस मामले को पूरी तरह खत्म कर देने की घोषणा नहीं की गई। आगामी समय में यदि केन्द्र की इस मामले पर ऐसी बदनीयती जारी रहती है तो पंजाबियों का रोष तथा नाराज़गी भी उसी तरह बनी रहेगी, क्योंकि चंडीगढ़ पर प्रत्येक पक्ष से पंजाब का अधिकार है और बिना शक यह पंजाब को मिलना चाहिए।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

