श्री आनंदपुर साहिब की धरती पर पंजाब विधानसभा के विशेष अधिवेशन का महत्त्व

साहिब श्री गुरु तेग बहादुर जी की अद्वितीय शहादत की 350वीं वर्षगांठ को समर्पित पंजाब विधानसभा के इस विशेष समागम में एकत्रित हुए समूह सदस्य साहिबान, श्री वाहेगुरु जी का खालसा, श्री वाहेगुरु जी की ़फतेह। दशम पिता साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की कर्म भूमि और खालसा पंथ की जन्म भूमि श्री आनंदपुर साहिब की इस पवित्र धरती पर हम अत्याचार का मुकाबला सब्र के साथ करने वाले नौवें पातशाह गुरु तेग बहादुर जी और उनके परम सिख भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला जी और गुरु साहिब के तमाम शहीद सिखों को अपनी श्रद्धा के पुष्प भेंट करने के लिए एकत्रित हुए हैं।
आज हम सभी गुरु तेग बहादुर जी की अद्वितीय शहादत का स्मरण कर रहे हैं तो शहीदों के सरताज पांचवें पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहादत भी अपने आप आंखों के सामने आ जाती है, जिन्होंने बेमिसाल कुर्बानी देकर शहादत का एक महान विरसा कायम किया था। शहीदी से पहले जब अहलकारों ने गुरु अर्जुन देव जी से पूछा था कि आप अपनी हस्ती मिटाने पर क्यों उतारू हैं तो गुरु साहिब ने जवाब दिया था कि सच की आवाज़ को बुलंद करने के लिए।
पांचवीं पातशाही की शहादत के बाद मीरी-पीरी की दो तलवारें पहन कर छेवीं पातशाही श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने भक्ति को शक्ति से जोड़ दिया। अकाल बुंगे पर दो निशान साहिब, एक भक्ति और एक शक्ति का, भक्ति का निशान ऊंचा रख कर शक्ति को भक्ति के अधीन कर दिया। 
इसी मार्ग पर चलते हुए गुरु तेग बहादुर जी की कुर्बानी ने शहादत के इस विरसे को अपनी अमर, पवित्र खुशबू से महका दिया। गुरु तेग बहादुर जी की वाणी को सम्मानपूर्वक पढ़ते, सुनते और विचरण करते हुए सहज ही महसूस हो जाता है कि उनकी वाणी सांसारिक मोह-माया के भ्रमजाल में फसे मनुष्य को मुक्त करके उसके भीतर प्रभु मिलाप के लिए वैराग्य की अनंत धारा प्रवाहित करने वाली है। इसके लिए आप जी को ‘वैराग्य की मूर्ति’ भी कहा जाता है। गुरु जी ने गुरगद्दी पर विराजमान होकर निर्भयता और निरवैरता का जो विलक्षण जलवा पेश किया, उसे बार-बार सिजदा करते हैं। गुरु साहिब की जो आत्मिक अवस्था गुरगद्दी पर बैठते समय थी, वही अवस्था दिल्ली के चांदनी चौक के कैदखाने में नज़रबंद भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला जी जैसे सेवकों की आंखों के सामने हुई शहादतों के समय और अपनी स्वयं की अज़ीम शहादत के समय भी कायम थी। गुरु जी विशेष आत्मिक अवस्था का ज्ञान करवाते हुए फरमान करते हैं :-
सुखु दुखु दोनों सम करि 
जानै अऊरु मानु अपमाना।।
हरख सोग ते रहै अतीता
 तिनि जगि ततु पछाना।।
गुरु जी ने यह बचन का अपने मुखारबिंद से महज़ उच्चारण ही नहीं, अपितु स्वयं भी इन पर अमल करके उदाहरण स्थापित की। उन्होंने त्याग, बलिदान, परोपकार और बहादुरी का जो दीपक जलाया, उसे हमेशा जलाये रखने के लिए उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने चारों पुत्रों को कौम पर कुर्बान करके इन आदर्शों की रक्षा ही नहीं की, अपितु खालसा की सृजना करके उस दीपक की रौशनी को अमर कर दिया। नांदेड़ में आप जी ने ‘गुरु मान्यो ग्रंथ’ के इलाही वचन करके समूची लोकाई को अपने अस्तित्व की शरण बख्शी। हम आज भी अपने गुरु अपने पिता को हाज़िर मानते हैं।
गुरु साहिबान जी की महान शहादत एक ऐसा इंकलाब थी, जिसे पंजाबियों, विशेष रूप से सिखों ने अपना अमीर विरसा मान कर पीढ़ी-दर-पीढ़ी निभाया। विश्व के इतिहास में कौम के लिए पंजाबियों जितनी जानें शायद ही किसी ने कुर्बान की हों। सिख धर्म की स्थापना कोई सामान्य विकास नहीं था, अपितु एक ऐसा विकास था जो प्रत्येक तरह के अत्याचार के विरुद्ध मानवता की ढाल बन कर आगे आता रहा और आज भी आ रहा है। चाहे कुछ ताकतों द्वारा धार्मिक कट्टरता के प्रभाव तहत मनुष्य को मनुष्य से लड़ाने की राजनीति की जा रही है। जब मणिपुर में महिलाओं पर अत्याचार, उड़ीसा में धार्मिक प्रचारक को परिवार सहित जीवित जलाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं घटित होती हैं तो उस समय गुरुवाणी का उपदेश समझने और लागू करने की ज़रूरत संबंधी पता चलता है। हमारे गुरु साहिबान ने सो कियो मंदा आखिये जितु जमंहि राजान।। (गुरु ग्रंथ साहिब, अंग : 473) का उपदेश देकर नारी के सम्मान की बात करते हुए तूं साझा साहिबु बापु हमारा।। (गुरु ग्रंथ साहिब, अंग : 97) सभ महि जोति-जोति है सोई।। तिस दै चानणि सब महि चानणु होई।। (गुरु ग्रंथ साहिब, अंग : 13) एक नूर ते सभु जगु उपजिया कऊन भले को मंदे।। (गुरु ग्रंथ साहिब, अंग : 1349) जैसी अनेक उदाहरणें देकर धार्मिक सहनशीलता और भाईचारक साझ का उपदेश दिया। मौजूदा समय में पुन: कुछ ताकतों द्वारा गुरु साहिबान, भक्तों, स़ूफी संतों के महान उपदेशों को अपने-अपने हिसाब से उपयोग करने के यत्न किए जा रहे हैं, परन्तु फिर भी पंजाब की धार्मिक भाईचारक सांझ का मुकाबला कोई और नहीं कर सकता, जहां गुरुद्वारों, मस्जिदों और मंदिरों में जाने वालों का मिल-जुल कर रहना सामाजिक विरासत बन चुका है। देश पर जब भी विदेशी हमले हुए तो पंजाबियों ने दुश्मन से सबसे पहले मुकाबला किया। ब्रिटिश शासन की जड़ को कमज़ोर करने में पंजाबी सबसे आगे रहे तथा आज़ादी के लिए पंजाबी सबसे अधिक फांसी पर चढ़े तथा आज भी देश के सुरक्षा बलों में पंजाब का सबसे बड़ा योगदान है।
बाबा नानक के वारिस पंजाबियों ने कभी अकेले बैठ कर भोजन नहीं किया। उनकी ओर से शुरू किया गया लंगर आज भी धर्म, जाति या वर्ग के अलगाव से दूर निरंतर चल रहा है। देश या दुनिया में कहीं  भी कोई आपदा आ जाए, गुरु की फौज सेवा के लिए मैदान में पहुंच जाती है। देश में आज सामाजिक अन्याय के खिलाफ सबसे पहले आवाज़ पंजाब से ही उठती है। आज भी पूरे देश के अधिकारों की लड़ाई पंजाबी अग्रणी हो कर लड़ते है। कुछ वर्ष पहले देश के किसानों के अधिकारों के लिए जो आंदोलन हुआ, वह भी पंजाबियों द्वारा चलाए गए अभियान के कारण ही इतिहास का सबसे लम्बा तथा सफल आंदोलन सिद्ध हुआ है, कोविड महामारी के दौरान भी नि:स्वार्थ सेवा के लिए पंजाबी विश्व भर में अग्रणी रहे। जुलाई माह में पंजाब में आई बाढ़ ने पंजाबियों का बहुत नुकसान किया, परन्तु बाबा नानक के किरती पुत्रों ने विश्व भर से अपनी सर-ज़मीन की खातिर तन, मन और धन से प्रत्येक तरह की सेवा अपने लोगों तक पहुंचाई। यदि साहस, धैर्य तथा सच के लिए यह सारी जद्दोजहद पंजाबी कर सके हैं तो इसका कारण हमारे गुरुओं की ओर से बख्शी गई परमात्मा की रज़ा में रहना, सरबत दा भला सोचना, किरत करना, वंड के छकना की शिक्षा है। मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कुर्बान होने का उदाहरण समूचे विश्व में और कहीं दिखाई नहीं देता। 
आज जब विश्व स्तर पर गुरु तेग बहादुर जी तथा उनके तीन सिख सेवकों की शहादत का दिन मनाया जा रहा है तो विश्व का राजनीतिज्ञ इससे क्या तथा कैसे सीखे? यह सवाल निरंतर विचार करने योग्य है। श्री आनंदपुर साहिब की धरती पर इन ऐतिहासिक पलों के अवसर पर पंजाब विधानसभा की इस विशेष बैठक का उद्देश्य गुरु जी की शहादत के समूह महत्वपूर्ण पक्षों को समझने, सर्व साझीवालता, मानवता, की सेवा वाली पवित्र सोच से खड़े होने की एक छोटी-सी कोशिश है। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि सच्चे पातशाह ने अपनी चरण-स्पर्श प्राप्त इस पवित्र धरती पर  हमारे सिर पर मेहर का हाथ रख कर हमे अपने जीवन काल में गुरु साहिब की शहादत के 350 वर्षीय पवित्र यादगार दिवस पर गुरु साहिबान की अद्वितीय शहादत की महिमा का बखान करने का मौका दिया है। मानव गलतियों का पुतला है और अकाल पुरख जी बख्शनहार हैं, आज हम सब साफ मन तथा सच्ची नीयत से गुरु साहिब जी की शहादत को सिजदा करने के लिए आनंदपुर साहिब की पवित्र धरती पर एकत्रित हुए हैं, वाहेगुरु जाने-अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा करें।

-स्पीकर, पंजाब विधान सभा
-मो. 9216400457 

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