लापता बच्चें की विकट होती समस्या
देश में लापता होते बच्चों की समस्या का संकट एक बार फिर उभर कर सामने आया है। यह समस्या यूं तो चिरकाल से चली आ रही है, किन्तु बीच-बीच के अन्तराल में कई बार यह संकट गहरा होता जाता दिखाई देने लगता है। मौजूदा चरण पर यह संकट पहले से भी अधिक गम्भीर हो गया है। देश भर के मीडिया द्वारा प्रकाशित की गई एक रिपोर्ट के अनुसार देश से लापता होते बच्चों की संख्या किसी भी मानवतावादी और राष्ट्रवादी नागरिक को चिन्ता में डालने के लिए काफी है। इस मीडिया रिपोर्ट की गम्भीरता का आलम यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इसका यथा-तथ्य स्वत: संज्ञान लेते हुए इस पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है। इस रिपोर्ट में वर्णित यह तथ्य बेहद चिन्ताजनक है कि प्रत्येक आठ मिनट के भीतर देश के किसी न किसी राज्य से एक बच्चा गायब हो जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे एक गम्भीर मुद्दा करार देते हुए बच्चों से संबंधित कुछ कानूनी धाराओं और नुक्तों पर गहराई से पुनर्विचार किये जाने पर बल दिया है। अदालत ने इस सम्बन्ध में बच्चा गोद लिये जाने संबंधी कानून की धाराओं एवं सम्पूर्ण प्रक्रिया को सुव्यस्थित किये जाने का भी सुझाव दिया। यह तथ्य भी इस समस्या से जुड़ा एक गम्भीर पक्ष है। सर्वोच्च अदालत ने इस संबंधी जटिलताओं को भी दूर किये जाने पर बल दिया है।
देश में बच्चों के लापता होने की यह समस्या न तो नई है, न इसके गम्भीर होने और देश के चिन्तातुर होने का मौका ही कोई पहली बार पैदा हुआ है। पांच वर्ष पूर्व सितम्बर 2020 में भी पुलिस विभाग की एक जांच में दावा किया गया था कि देश में प्रत्येक वर्ष 48,000 बच्चे अचानक लापता हो जाते हैं, अथवा आपराधिक गिरोहों, माफियाओं द्वारा गायब कर दिये जाते हैं। वर्तमान में भी यह संख्या एक वर्ष में 50,000 से ऊपर हो जाती है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि बच्चे लापता होने की संख्या प्रत्येक वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ जाती है। अदालत ने समस्या के इस पक्ष पर भी प्रकाश डाला है कि मीडिया रिपोर्ट होने के दृष्टिगत बहुत संभव है कि इसमें थोड़ी-बहुत अतिश्योक्ति भी हो, किन्तु अदालत यह समझती है कि लापता बच्चों की संख्या कितनी भी क्यों न हो, किन्तु यह है चिन्ताजनक अत: इस पर तत्काल रूप से केन्द्र और राज्य सरकारों को समुचित विचार-विमर्श करना चाहिए। अदालत में इस मुद्दे पर विचार-चर्चा के दौरान केन्द्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता ने मामले की गम्भीरता के दृष्टिगत, एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति हेतु 6 सप्ताह का समय मांगा किन्तु अदालत ने सरकार को अतिरिक्त समय देने से इन्कार करते हुए मामले को तत्काल निदान की ओर बढ़ाने पर ज़ोर दिया। अदालत ने तथापि, इस हेतु आगामी मास 9 दिसम्बर तक रिपोर्ट पेश किये जाने का निर्देश भी दिया। इस संबंध में यह एक तथ्य भी अधिक विचारणीय है कि सर्वोच्च अदालत ने विगत मास 14 अक्तूबर को भी सरकार को निर्देश दिया था कि वह सभी राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों को हिदायत दे कि वे यथाशीघ्र लापता होने वाले बच्चों के मामलों को सकारात्मक ढंग से निपटाने के लिए एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करें।
हम समझते हैं कि समस्या सचमुच बेहद विकट एवं गम्भीर है, तथा इस पर तत्काल रूप से विचार किये जाने की बड़ी आवश्यकता है। समस्या यह भी है कि इस प्रकार लापता होने वाले बच्चों में युवतियां और नाबालिग लड़कियां अधिक होती हैं। लापता बच्चों में से अधिकतर भीख-माफिया का शिकार होते हैं, और लड़कियों को वेश्या-वृत्ति की ओर धकेल दिया जाता है। लापता हुए अवयस्क बच्चों को पहले शारीरिक एवं यौन शोषण का शिकार बनाया जाता है। इसके बाद उन्हें स्थितियों एवं उनकी शारीरिक अवस्था के अनुरूप वेश्या-वृत्ति अथवा भिक्षा-वृत्ति की ओर धकेल दिया जाता है। असल में बच्चों के अपहरण का यह मामला एक सुनियोजित धंधा बन चुका है, किन्तु इस कारण बच्चों की कोमल मन:स्थिति और उनके शरीर पर इस कारण जो अत्याचार होता है, उसकी किसी को कोई परवाह नहीं है। अब अदालत ने अगर स्वत: संज्ञान लिया है, तो उम्मीद भी बंधती है कि इस समस्या को देर-सवेर कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकेगा। तथापि, यह नियंत्रण जितना शीघ्र संभव होगा, उतना ही देश के बच्चों और समाज के लिए अच्छा होगा।

