‘चीता पुनर्वास परियोजना’ को मिल रही सफलता
मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में भारत की धरती पर जन्मी मुखी नाम की मादा चीता ने 5 शावकों को जन्म देकर पूर्णत: भारतवंशी चीतों का बुनियाद रख दी है। यह देश में चीता पुनर्वास परियोजना में नए अध्याय की शुरुआत है। अभी तक नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से भारत लाइ गई मादा ने ही चीता शावकों को जन्म दिया था। 32 माह की मुखी और शावक स्वस्थ हैं। इस खुशखबरी के मिलने पर केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा है कि यह सिर्फ एक जन्म नहीं, बल्कि पूरी परियोजना का आत्मविश्वास बढ़ाने वाला मोड़ है। कूनो में मादा चीता ज्वाला दो बार मां बन चुकी है, जिसने मुखी समेत अनेक शावकों को जन्म दिया था। अब मुखी द्वारा शावकों को जन्म देने के बाद कूनो में एक साथ तीन पीढियां अठखेलियां करने लग गई हैं। भारत अब कुल 32 चीते है, जिनमें से 21 यहीं जन्में है। इनमें तीन चीते गांधीसागर अभ्यारण्य में चहलकदमी कर रहे हैं। 17 सितम्बर, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर कूनो में चीता पुनर्स्थापना परियोजना का शुभारंभ किया गया था।
नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में प्रधानमंत्री ने छोड़ा था। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते और लाकर छोड़े गए थे। नई धरती और जलवायु परिवर्तन के चलते इन चीतों को आरंभ में यहां के मौसम से तालमेल बिठाने में दिक्कतें आई थीं। नतीजतन छह वयस्क और यहीं पैदा हुए चार शावकों में से तीन की मौतें भी हुई थी। इस कारण परियोजना पर सवाल भी खड़े किए गए थे। दक्षिण अफ्रीका से लाकर बसाए गए 12 चीतों को 18 फरवरी, 2024 को दो साल पूरे हो हुए थे, इस अवधि में इन चीतों की मृत्यु दर में कमी ने परियोजना की सफलता के प्रथम लक्ष्य को प्राप्त कर लिया था। इनकी जीवित रहने की दर शुरुआत में नामीबिया से लाए चीतों से बेहतर रही थी। दक्षिण अफ्रीका से आए 12 चीतों में से 33.3 प्रतिशत की मौत हुई, जबकि नामीबिया से लाए गए चीतों में से 37.5 प्रतिशत चीतों की मौत हुई थी।
अफ्रीका से लाई गई तीन मादा चीता ने अब तक 12 शावकों को जन्म दिया है। ये चीते अब भारतीय परिवेश में न केवल पूरी तरह ढल गए हैं, बल्कि नए घर कूनो में आबादी बढ़ा रहे हैं। नए आवास स्थलों में 50 फीसदी चीतों की मौत को सामान्य माना जाता है।
एक समय था जब चीते की रफ्तार भारतीय वनों की शान हुआ करती थी, लेकिन 1947 के चीते पूरी तरह लुप्त हो गए थे। 1948 में अंतिम चीता छत्तीसगढ़ के सरगुजा में देखा गया था, जिसे मार गिराया गया था। अपनी विशिष्ट एवं लोचपूर्ण देहयष्टि के लिए भी इस वन्य जीव की अलग पहचान है। इसी चपलता के कारण यह सबसे तेज़ दौड़ने वाला जंगली जानवर है।
गत सदी में चीतों की संख्या एक लाख तक थी, लेकिन अफ्रीका के खुले घास वाले जंगलों से लेकर भारत सहित लगभग सभी एशियाई देशों में पाया जाने वाला चीता अब पूरे एशियाई जंगलों में गिनती के रह गए हैं। राजा चीता (एसिनोनिक्स रेक्स) जिम्बाब्वे में मिलता है। अफ्रीका के जंगलों में भी गिने-चुने चीते रह गए हैं। तंजानिया के सेरेंगती राष्ट्रीय उद्यान और नामीबिया के जंगलों में गिने-चुने चीते हैं। प्रजनन के तमाम आधुनिक व वैज्ञानिक उपायों के बावजूद जंगल की इस फुर्तीली नस्ल की संख्या बढ़ाई नहीं जा पा रही है। यह प्रकृति के समक्ष वैज्ञानिक दंभ की नाकामी है। जूलॉजिकल सोसायटी आफ लंदन की रिपोर्ट को मानें तो दुनिया में 91 प्रतिशत चीते 1991 में ही समाप्त हो गए थे। अब केवल 7100 चीते पूरी दुनिया में बचे हैं। एशिया के ईरान में केवल 50 चीते शेष हैं।
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