प्रमाणित बीजों का उपयोग न होने से गेहूं का उत्पादन प्रभावित होगा?

क्रियात्मक रूप में सेंजू हालत में समय पर बिजाई करने के लिए 1 से 30 नवम्बर तक का समय है। इस दौरान आम किसान सेंजू ज़मीन पर ज़्यादा उत्पादन देने वाली किस्में बोते हैं। हालांकि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए.यू.) अक्तूबर के अंत से 15 नवम्बर तक गेहूं बोने की सिफारिश करता है। आईसीएआर—इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट, नई दिल्ली में गेहूं के सीनियर ब्रीडर डॉ. राजबीर यादव कहते हैं कि गेहूं के लिए मौसम का बहुत महत्व है। इस साल बिजाई के समय मौसम अनुकूल रहा। इसीलिए गेहूं की काश्त बाढ़, बीमारियों और धान के मंडीकरण में आ रही मुश्किलों के बावजूद काफी बड़े रकबे में किसानों ने प्रयास करके कर ली। अब ज़्यादा उत्पादन तभी हो पाएगी जब फसल के बढ़ने और दाने भरने के समय अधिकतर तापमान 15-22 और 21-28 डिग्री सेल्सियस और नयूनतम तापमान 4-11 और 7-13 डिग्री सेल्सियस रहे। 
उत्पादन के पक्ष से किस्म का चयन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पंजाब के किसानों का चयन अधिकतर पीएयू, आईसीएआर—भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और आईआईडब्ल्यूबीआर—भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किस्मों में से होती है। समय पर बिजाई के लिए पीएयू द्वारा विकसित पीबीडब्ल्यू-872 (औसत उपज 24.4 क्ंिवटल प्रति एकड़), पीबीडब्ल्यू-826 (औसत उपज 24 क्ंिवटल प्रति एकड़) तथा आईएआरआई द्वारा विकसित एचडी-3386 (औसत उपज 25 क्ंिवटल प्रति एकड़), एचडी-3406 (औसत उपज 22-23 क्ंिवटल प्रति एकड़), एचडी-3226 (औसत उपज 22 क्ंिवटल प्रति एकड़), एचडी-3086 (औसत उपज 23 क्ंिवटल प्रति एकड़) और आईआईडब्ल्यूबीआर द्वारा विकसित डीबीडब्ल्यू-327 किस्म (जिसने संस्थान द्वारा विकसित अन्य सभी किस्मों की तुलना में अधिक उपज दी है और जिसे किसानों द्वारा व्यापक रूप से अपनाया गया है) आम किसानों की पंसद रही हैं। 
अब शेष बचे रकबे पर किसानों को 30 नवम्बर तक उन्नत पीबीडब्ल्यू-550 जैसी कोई किस्म बो देनी चाहिए। दिसम्बर से 10 जनवरी तक एचडी-3298 किस्म बोनी चाहिए, जिसे आलू, मटर, गन्ने की जड़ों और सब्ज़ियों आदि से खाली हुई ज़मीन पर बोया जा सकता है। इसकी पैदावार दूसरी समय के बाद बोई जाने वाली किस्मों जैसे डीबीडब्ल्यू-71, डीबीडब्लयू-14 तथा डब्ल्यूआर-544 के मुकाबले 6 से 26 प्रतिशत ज़्यादा होती है। इसे बीमारी भी बहुत कम लगती है। इसका बीज आईसीएआर, आईएआरआई नई दिल्ली के अतिरिक्त पंजाब में वाईएफए, आईएआरआई, सीओआरसी केंद्र रखड़ा में भी उपलब्ध है। पीबीडब्ल्यू-771 और पीबीडब्ल्यू-753 किस्में भी दिसम्बर में सेंजू हालत में पिछेती बिजाई के लिए अनुकूल हैं। इस साल किसानों ने प्रमाणित संस्थाओं और निजी डीलरों से प्रमाणित गेहूं की किस्मों का बीज बहुत कम मात्रा में खरीदा है। पीएयू, आईएआरआई और आईआईडब्ल्यूबीआर द्वारा किसानों को सभी किस्मों के बीज खुले रूप में अभी तक भी बेचे जा रहे हैं। विगत वर्षों में सीज़न, खासकर किसान मेलों के बाद किसानों को इन संस्थाओं से प्रमाणित किस्मों के बीज लेने में बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। पंजाब कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने केंद्र के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और राष्ट्रीय मिशन के तहत किसानों को सब्सिडी पर और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सीमांत किसानों को जो मुफ्त बीज देना था, वह भी देरी से बिजाई के बाद आने के कारण किसानों तक समय पर नहीं पहुंचा। आईएआरआई के बीज उत्पादन यूनिट के इंचार्ज डॉ. ज्ञानइन्द्र सिंह और आईआईडब्ल्यूबीआर करनाल के डॉ. अमित शर्मा के अनुसार इस साल पिछले वर्षों की तुलना में पंजाब के बहुत कम किसान उनके बीज वितरण केंद्रों पर अलग-अलग किस्मों के बीज खरीदने के लिए पहुंचे। इससे स्पष्ट है कि इस साल बहुत कम किसानों ने प्रमाणित किस्मों के बीज बोए हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इससे गेहूं का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। पंजाब में इस वर्ष गेहूं 35 लाख हेक्टेयर रकबे पर बोई जाएगी। कुछ वर्ष पहले मार्च में अधिक गर्मी पड़ने से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में काफी कमी आई थी, लेकिन अब किसानों के बीच जो किस्में लोकप्रिय हैं, उनमें ज़्यादा गर्मी झेलने की क्षमता है।
गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य होने और किसानों को खुली मंडी में फसल का अच्छा दाम मिलने की उम्मीद के कारण अधिकतर किसानों ने गेहूं की काश्त अपनाई। गेहूं की फसल सुनिश्चित है, इसमें में जोखिम कम है, जिसकी वजह से हर छोटा-बड़ा किसान इसकी बिजाई करता है। सरकार की ओर से गेहूं उत्पादकों को पूरी सुविधाएं देने की ज़रूरत है ताकि वे मेहनत करके उत्पादन बढ़ाएं और पंजाब केन्द्रीय अनाज भंडार में अपन पूर्व का अग्रणी दर्जा कायम रख सके। अनुसंधान को मज़बूत करने के लिए भी ध्यान देने की ज़रूरत है।

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