पंजाबी पुत्र धर्मेन्द्र का बिछोड़ा

पंजाब की उपजाऊ भूमि ने भरपूर फसलें ही पैदा नहीं कीं, अपितु प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के साथ विचरण करने वाली बड़ी शख्सियतें भी पैदा की हैं। पंजाब को जहां गुरुओं, पीरों और ़फकीरों की धरती के रूप में जाना जाता है, वहीं शूरवीर योद्धाओं और महान कलाकारों की धरती के रूप में भी जाना जाता है, जिनके संबंध में समय-समय पर देश-विदेश में चर्चा होती रहती है। यदि फिल्मों के क्षेत्र की बात करें तो इसमें भी पंजाबियों ने बड़ा नाम कमाया है। पंजाबी फिल्म उद्योग के अतिरिक्त हिन्दी फिल्मों पर आधारित बॉलीवुड को भी पंजाब ने अनेक बड़े कलाकार दिए हैं, जिनमें राजेश खन्ना, देव आनंद, प्राण, ओम पुरी, अमरीश पुरी आदि के नाम लिए जा सकते हैं। इसी क्रम में फिल्म जगत के बड़े अभिनेता और पंजाबियों के महबूब कलाकार धर्मेन्द्र को भी गिना जा सकता है, जो विगत दिवस मुम्बई में हमसे सदैव के लिए बिछुड़ गए हैं। उनका फिल्मी जीवन कई दशकों में फैला हुआ है। फिल्म क्षेत्र में उन्होंने अपने अभिनय से लम्बी अवधि तक अपनी धाक जमाये रखी है। समूचे देश के साथ-साथ पंजाबी अपने में से एक होने के कारण उनका विशेष रूप से सम्मान करते रहे हैं। उन्होंने भावी लम्बा भरपूर जीवन व्यतीत किया है परन्तु फिर भी उनके जाने का समूह देश वासियों कने गहन शोक मनाया है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, अलग-अलग राजनीतिक नेताओं और फिल्मी शख्सियतों ने उन्हें अपनी ओर से श्रद्धाजलियां दी हैं।
धर्मेन्द्र का जन्म 8 दिसम्बर, 1935 को लुधियाना ज़िला के गांव नसराली में हुआ था। वैसे उनका पैतृक गांव डांगो था। आपके बचपन का ज्यादातर समय साहनेवाल में व्यतीत हुआ। उनके पिता जी केवल कृष्ण सिंह दयोल स्कूल अध्यापक थे। बहुत लम्बे समय तक वह फगवाड़ा के एक स्कूल में भी पढ़ाते रहे। इस कारण धर्मेन्द्र को भी ज्यादातर समय फगवाड़ा में व्यतीत करने और वहां से शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला। उनके जीवन की सफल कहानी पंजाब के युवाओं में नए सपने जगाने और ज़िन्दगी में कुछ करने और बनने की ललक जगाने में सहायक होती रही है। एक छोटे-से गांव से उठकर मुम्बई की फिल्म नगरी तक पहुंचना और अपने चुने हुए अभिनय क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल करना, नि:संदेह उनकी बड़ी और असाधारण प्रतिभा की साक्षी रही है।
उनके फिल्मी जीवन की शुरुआत 1960 में फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ के साथ हुई थी। 1966 में आई उनकी फिल्म ‘फूल और पत्थर’ में उनकी भूमिका को आज भी याद किया जाता है। 1969 में बनी ‘सत्यकाम’ फिल्म में उनकी ओर से एक सिद्धांतवादी व्यक्ति की निभाई गई भूमिका ने भी उनकी लोकप्रियता में वृद्धि की। 1975 में बनी फिल्म ‘शोले’ में वीरू की भूमिका निभाने के कारण उन्हें विशेष पहचान मिली थी। 1975 में ही उन्होंने फिल्म ‘चुपके-चुपके’ में हास्य कलाकार के रूप में अपनी प्रस्तुति से अपनी शख्सियत के एक और पक्ष को उजागर किया था। उन्होंने 300 से अधिक फिल्मों में काम किया। कई पंजाबी फिल्मों में उन्होंने भिन्न-भिन्न भूमिकाएं निभाईं। उनकी अन्य सफल फिल्मों में  अनुपमा (1966), सीता और गीता (1972), यादों की बारात (1975), प्रतिज्ञा (1975), धर्मवीर (1977), यमला पगला दीवाना, अपने (2007-2011), रॉकी और रानी की प्रेम कहानी (2023) आदि शामिल हैं। उन पर फिल्माये गए फिल्मी गीत जो लोगों में विशेष रूप से लोकप्रिय हुए, उनमें ‘आज मौसम बड़ा बेईमान है’, ‘पल-पल दिल के पास’, ‘आपके हसीन मुख पर’, ‘गर तुम भुला न दोगे’, ‘मैं जट्ट यमला पगला दीवाना’, ‘यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’, ‘कोई हसीना जब रूठ जाती है’, ‘हम बेव़फा हरगिज़ न थे’, ‘अब के साजन सावन में’, ‘जानेमन-जानेमन’ आदि शामिल हैं। वह रोमांटिक, एक्शन भरपूर और कॉमेडी आदि सभी तरह की फिल्मों में कलाकार के रूप में सफल रहे। उन्हें अनेक फिल्मी अवार्ड मिले जिनमें फिल्म फेयर अवार्ड के अतिरिक्त पद्म भूषण अवार्ड भी शामिल है। 
यदि उनकी खूबसूरती की बात करें तो किसी समय उन्हें विश्व के 10 खूबसूरत व्यक्तियों में भी गिना जाता था। फिल्म जगत के महान अभिनेता दिलीप कुमार विशेष रूप से उनकी खूबसूरती से प्रभावित थे। उन्होंने एक बार एक समारोह में कहा था कि जब वह ़खुदा के पास जाएंगे तो इस बात की शिकायत करेंगे कि ़खुदा ने उन्हें धर्मेन्द्र जैसा खूबसूरत क्यों नहीं बनाया। हिन्दी फिल्म जगत की बड़ी अभिनेत्री मीना कुमारी भी उनकी खूबसूरती पर ़िफदा रही थी। उन्होंने कई फिल्मों में उनके साथ काम किया था। यह भी कहा जाता है कि एक समय मीना कुमारी फिल्म निर्माताओं के समक्ष यह शर्त रखती थी, कि वह उनकी फिल्म में तभी काम करेगी यदि धर्मेन्द्र को हीरो के रूप में लिया जाएगा। जया भादुड़ी भी धर्मेन्द्र की खूबसूरती से काफी प्रभावित थी। यह बात स्वयं एक समय उन्होंने अमिताभ बच्चन को बताई थी, कि सिने जगत में धर्मेन्द्र जितना कोई और खूबसूरत अभिनेता नहीं है। हेमा मालिनी के साथ उनकी दूसरी शादी को भी इसी सन्दर्भ में ही देखा और समझा जा सकता है।
कुछ समय के लिए वह राजनीति में भी विचरण करते रहे। 2004 में उन्होंने राजस्थान के बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव भी जीता था, परन्तु राजनीति के साथ उनका स्वभाव ज्यादा मेल नहीं खाता था। इस दौरान लोकसभा में उनकी उपस्थिति भी कम ही रही, जिस कारण उनकी आलोचना भी होती रही। बाद में उन्होंने माना था कि कलाकारों को राजनीति से दूर ही रहना चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े कलाकार जिन्हें समूचे समाज से प्यार मिलता है, वे बांटे जाते हैं। उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर से उनके घर दो बेटे और दो बेटियों ने जन्म लिया, उनमें बेटा सन्नी दयोल, बॉबी दयोल हैं और बेटियां विजेता और अजीता शामिल हैं। हेमा मालिनी के साथ उनकी दूसरी शादी से दो बेटियां ईशा दयोल और अहाना दयोल ने जन्म लिया है।
चाहे उनकी लोकप्रियता पूरे देश में लम्बी अवधि तक शिखर पर रही है, परन्तु पंजाबी उन पर बहुत गर्व करते हैं। इसका कारण यह भी था कि पंजाब से उनके प्रशंसक जब भी मुम्बई जाते थे और उनसे मिलना चाहते थे तो ज्यादातर वह उन्हें मिलने के लिए समय देते थे और उनकी खुले दिल से सेवा भी करते थे। वैसे पंजाबी कई बार यह शिकायत भी करते थे कि पिछले दशकों में जब पंजाब अनेक बार भारी संकटों से गुज़रा तो उस समय धर्मेन्द्र पंजाब के साथ ज्यादा खड़े होते दिखाई नहीं दिए, परन्तु हमारा यह विचार है कि इस प्रकार की बातों को छोड़ कर या धर्मेन्द्र के योगदान को राजनीति दृष्टि से देखने की बजाय उनके फिल्म क्षेत्र में डाले गए अहम योगदान को देखना चाहिए, जिससे उन्होंने न केवल अपना, अपितु समूचे पंजाबियों का नाम रौशन किया है। ऐसे बड़े कलाकार समाज में कभी-कभी ही जन्म लेते हैं।  इन शब्दों के साथ पंजाब की धरती के इस पुत्र को हम अपनी श्रद्धा के पुष्प अर्पित करते हैं।

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