मतों के विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए इतनी जल्दबाज़ी क्यों ?
यह जानना ज़रूरी है कि चुनाव आयोग को अचानक विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने का ख्याल कहां से आया, और क्यों आया। दरअसल, 2024 के चुनाव में बहुमत खोने के कारण संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी के सदमे में थे। वे लोग तो चार सौ पार जाना चाहते थे, लेकिन रह गये 240 पर। इस झटके के कारण ही उन्होंने सोचना शुरू किया कि कोई ऐसा पुख्ता और स्थायी इंतज़ाम किया जाए कि इस तरह का सदमा दोबारा कभी न लगे। वे हर चुनाव बिना किसी दिक्तत से जीतते रहें। अभी तक वे केवल 31 से 38 फीसदी आबादी तक ही पहुंच पाये हैं। उन्हें डर है कि कहीं सत्ता हाथ से निकल न जाए। इसलिए उन्होंने नये मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के साथ मिल कर एक ऐसी मतदाता सूची तैयार करने की ठानी जिसके आधार पर भाजपा का सत्ता पर कब्ज़ा सुनिश्चित हो जाएगा। चूंकि मीडिया पहले से उनके कब्ज़े में है, इसलिए उन्हें पता था कि सोशल मीडिया के अलावा व्यावसायिक मीडिया में उनसे कोई जवाब तलबी नहीं होगी। वे सारे देश में एसआईआर कराके अपने विरोधी वोटों को काट कर अपने फायदे वाले वोट जोड़ते चले जाएंगे। अभी तुरंत तो नहीं, लेकिन कुछ दिन बाद दक्षिण भारत में भाजपा को बिहार की ही तरह ढेरों वोट मिलने शुरू हो जाएंगे। मोदी जी ने कह ही दिया है कि बिहार की हवा तमिलनाडु पहुंच चुकी है।
यही कारण है कि नरेंद्र मोदी और ज्ञानेश कुमार मिल कर एसआईआर को इस देश पर जल्दी से जल्दी थोप देना चाहते हैं। योजना है एसआईआर के ज़रिये हमारे चुनावी लोकतंत्र पर स्थायी कब्ज़ा करना। राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष विरोध में नारा लगा रहा है। पहला सवाल यह है कि प्रधानमंत्री और मुख्य चुनाव आयुक्त मिल कर राहुल गांधी को एसआईआर पर प्रश्च चिन्ह लगाने से क्यों रोकना चाहते हैं? यहां यह जानना भी ज़रूरी है कि खुला पत्र लिखने वाले 272 प्रतिष्ठित नागरिकों की वास्तविकता क्या है, ये कौन हैं, इनमें से किन पर भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं, कौन हैं जो मोदी जी की महिमा गाने के लिए जाने जाते हैं, इनमें से वे कौन-कौन हैं संघ परिवार के संगठनों व भाजपा में शामिल हो चुके हैं। दूसरा सवाल यह है कि नरेंद्र मोदी और ज्ञानेश कुमार को सारे देश में एसआईआर कराने की इतनी जल्दी क्या है? इतनी ज़्यादा कि उन्हें काम के दबाव में मरते हुए, आत्महत्या करते हुए, ट्रेन से कटते हुए, ख़ुद को फांसी पर लटकाते हुए, दिल के दौरे से प्राण त्यागते हुए बूथ लेबिल अफसरों या बीएलओज़ की उन्नें कोई परवाह ही नहीं है। आज की तारीख तक देश भर में 28 बीएलओ एसआईआर की भेंट चढ़ चुके हैं। बारह राज्यों में एसआईआर युद्धस्तर पर कराई जा रही है।
इन 272 कथित रूप से प्रतिष्ठित नागरिकों की पोल कांग्रेस की मीडिया सेल की प्रधान सुप्रिया श्रीनेत ने खोल दी है। उन्होंने एक के बाद एक ऐसी पोस्टें एक्स पर डाली हैं जिन्होंने सोशल मीडिया में धूम मचा दी है। उन्होंने बताया है कि इनमें कई ‘प्रतिष्ठित’ हस्ताक्षरकर्ताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। ज़ाहिर है कि इनसे बचने के लिए ज़रूरी है कि वे सरकार के प्रति खुशामदी रवैया अपनाएं। इसीलिए उन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ चिट्ठी लिखी है और सज़ा से बचने के लिए उन्हें निशाना बनाया। जस्टिस एस.एन. ढींगरा इस पत्र के मुख्य लेखक हैं। उनके ऊपर कोर्ट द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षक के पद का दुरुपयोग करने और बदले में लाभ प्राप्त करने का आरोप है। एक और हस्ताक्षरकर्ता दीपक सिंघल उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रह चुके हैं। वे 1500 करोड़ रुपये के गोमती रिवरफ्रंट घोटाले में आरोपी हैं। आंध्र प्रदेस के पूर्व मुख्य सचिव एल.वी. सुब्रह्मण्यम एक रियल एस्टेट घोटाले में आरोपी हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी आर.एन. सिंह के घर से आयकर छापे में घर से तीन करोड़ से ज़्यादा कैश बरामद हो चुका है। कर्नाटक के पूर्व सचिव ए.के. मोनप्पा परीक्षा घोटाले और म्यूचुअल फंड घोटाले में आरोपी हैं। इसी तरह कर्नाटक के पूर्व प्रधान सचिव रमेश झालकी पर आय से अधिक सम्पत्ति रखने का आरोप है। भारतीय वन सेवा के पूर्व अधिकारी बी.के. सिंह आय से ज़्यादा सम्पत्ति के मामले में आरोपी हैं।
इस खुले पत्र के कथित प्रतिष्ठित लेखकों और हस्ताक्षरकर्ताओं का मामला यहीं खत्म नहीं होता। इनमें से कई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित संस्थाओं, जैसे विवेकानन्द फाउंडेशन, इंडिया फाउंडेशन के साथ जुड़े हुए हैं। इनमें प्रभात शुक्ला और अनिल त्रिगुणायत पूर्व राजदूत विवेकानंद फाउंडेशन के साथ काम करते हैं। अशोक मित्तल पूर्व इनकम टैक्स कमिश्नर और मेजर जनरल ध्रुव काटोच का संबंध भी इंडिया फाउंडेशन से है। वीरेन्द्र गुप्ता पूर्व राजदूत हैं और संघ से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद के साथ इनके तार जुड़े हैं। न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल संघ की अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के हिस्से हैं। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। इन 272 लोगों में ऐसे कई ‘प्रतिष्ठित’ सदस्य हैं, जो बाकायदा भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं। ये हैं न्यायमूर्ति पी.एन. रविंद्रन, संजीव त्रिपाठी पूर्व रॉ प्रमुख, अय्यर कृष्णा राव पूर्व मुख्य सचिव (आंध्र प्रदेश), भास्वती मुखर्जी पूर्व राजदूत, टी.पी. सेन कुमार पूर्व डीजीपी केरल, निर्मल कौर पूर्व डीजीपी झारखंड, बी.एच. अनिल कुमार, पूर्व मुख्य सचिव (कर्नाटक), भास्कर राव, पूर्व अतिरिक्त डीजीपी कर्नाटका, लेफ्टिनेंट जनरल डी.पी. वत्स, तथा मेजर जनरल पी.सी. खरबंदा। ज़ाहिर है कि राहुल गांधी के खिलाफ पक्ष लिख कर ये भाजपा के सांगठनिक आदेश का पालन ही कर रहे हैं।
हस्ताक्षर करने वालों में शामिल आदर्श कुमार गोयल सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके हैं। 2001 में आईबी रिपोर्ट में भ्रष्ट बताए जाने के बावजूद अटल सरकार के कार्यकाल में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में जज नियुक्त हुए थे। 2018 में मोदी सरकार ने इन्हें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का चेयरमैन बनाया। जिन संजीव त्रिपाठी का ऊपर ज़िक्र किया गया है, वह आईपेस अधिकारी थे, आरडल्ब्यूए के प्रमुख रह चुके हैं। 2014 में यह सज्जन भाजपा में शामिल हो गए। रियासी से लेकर पहलगाम और दिल्ली बम धमाके तक लगातार इंटेलिजेंस की नाकामी पर कभी नहीं बोले। योगेश गुप्ता, जो भारत के उच्चायुक्त हुआ करते थे। सोशल मीडिया पर लड़कियों के बारे में इनकी टिप्पणियां देखी जा सकती हैं। एक हैं श्रीमती लक्ष्मी पुरी जो15 साल तक संयुक्त राष्ट्र में रही हैं। उसके पहले 28 साल भारत की राजदूत थीं। यह विवरण है, जो खुले पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों की असलियत खोलता है।
अब आइए दूसरे सवाल पर। ज्ञानेश कुमार जी और नरेंद्र मोदी इतने आनन-फानन में एसआईआर क्यों कराना चाहते हैं? जल्दबाज़ी कया है? केरल में चुनाव अप्रैल-मई, 2026 में होंगे। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में 2028 में तथा गुजरात और उत्तर प्रदेश में 2027 में चुनाव होने वाले हैं। फिर इन प्रदेशों में एसआईआर कराने की जल्दबाज़ी क्या है? इस सवाल का जवाब दिए बिना इससे बेपरवाह हो कर आयोग ने एक साथ 12 राज्यों के 51 करोड़ मतदाताओं की वोटर लिस्ट फ्रीज़ कर दी है। इन राज्यों में कुल 5,32,828 बीएलओ को 4 नवम्बर से 4 दिसम्बर के बीच एसआईआर करके दिखानी है। एक बीएलओ पर औसतन 957 मतदाताओं के एक बार नहीं बल्कि तीन बार घर जा कर उनका वेरिफिकेशन करने की ज़िम्मेदारी डाल दी गई है। 19 नबम्बर को गुजरात के खेड़ा में बीएलओ रमेशभाई परमार को दिल का दौरा पड़ गया और वे चल बसे। राजस्थान के सवाई माधोपुर में एक बीएलओ की ड्यूटी पर ही दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। बंगाल के वर्धमान में दिमाग की नस फट जाने से एक महिला बीएलओ की मौत हो गई। यह सूची लम्बी है।
एसआईआर का मतलब है चुनावी लोकतंत्र पर सर्जीकल स्ट्राइक करके उस पर सौ फीसदी और हमेशा के लिए कब्ज़ा। बिहार पर कब्ज़ा करने के बाद अब मोदी जी का लक्ष्य पश्चिम बंगाल है। इसके बाद तमिलनाडु और केरल होंगे। अगर एसआईआर के खिलाफ विपक्ष का संघर्ष परवान नहीं चढ़ा तो वह दिन दूर नहीं है जब आम लोगों और गैर-भाजपा दलों का मतदान प्रक्रिया से विश्वास उठ जाएगा। वह दिन इस देश के लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्य से भरा होगा।
-लेखक अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्ऱोफेसर और भारतीय भाषाओं में अभिलेखागारीय अनुसंधान कार्यक्रम के निदेशक रह चुके हैं।

