पाकिस्तान की आत्मघाती राह

अब इस बात में ज़रा भी शक की गुंजाइश नहीं रही कि पाकिस्तान ने मुल्क की तरक्की की जगह पतनशीलता की राह पकड़ ली है। एक तो उसने भारत जैसे प्रगतिशील मुल्क के साथ शत्रुता का व्यवहार अपना मकसद बना लिया है। वहां के बच्चे को सिखाया जा रहा है कि हिन्दुस्तान पाकिस्तान का दुश्मन है। दूसरे सैन्य तानाशाही की तरफ कदम बढ़ा कर देश की अवाम को काल्पनिक युद्ध और तनाव में रखना शुरू कर दिया है। 
पाकिस्तान में गरीबी बढ़ती चली जा रही है। आम आदमी को रोजी-रोटी के लिए भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है। दुनिया भर से कज़र् उठा कर जनता पर बोझ बढ़ाया है। कज़र् लेकर आये धन का अधिकांश भ्रष्टाचार में चला जाता है। न तो नये उद्योग लगते हैं न विकास का रास्ता अपनाया जाता है। विश्व बैंक के अनुसार पाकिस्तान की लगभग 45 प्रतिशत आबीदी ़गरीबी में जी रही है। जबकि अत्यधिक ़गरीबी 2017 में बढ़कर 4.9 से बढ़कर 2021 में 16.5 प्रतिशत हो गई थी, जिसकी वजह धीमी आर्थिक वृद्धि, उच्च मुद्रा स्फीति और राजकोषीय समेकन जैसे कारक बताये जाते हैं। 
कौन नहीं जानता कि 1947 में पाकिस्तान को अलग देश के रूप में अस्तित्व पाने का अवसर मिला। तब से ही उसका भविष्य निरंतर डगमगाता नज़र आता रहा। ़गरीबी का सामना करते हुए इस मुल्क की निर्भरता अन्य देशों पर बढ़ती चली गई। शुरुआती दौर में अमरीका का हाथ थामने पर विकास की अपनी अवधारणा धूमिल पड़ गई। इससे पहले कि मुल्क में लोकतांत्रिक जड़ें मज़बूत हो पातीं मोहम्मद अली जिन्ना दुनिया छोड़ कर चले गये। भारत को जिस तरह लोकतांत्रिक आधार बनाने का अवसर मिला, पाकिस्तान उससे वंचित रह गया। तीन दशक से ज्यादा वक्त में पाकिस्तान का भाग्य तानाशाही के दबाव में सांस लेने को विवश रहा। जब भी जन-साधारण में मानवीय और जनतांत्रिक शक्तियों ने जनता को अपने हालात और तानाशाही व्यवहार का फर्क बताने की कोशिश की, उन पर पाबंदियां लगा दी गईं। देश के निजाम पर सैन्य तानाशाह अपना हुक्म चलाते रहे जिसमें न्याय की आवाज़ का दमन एक आम-सी बात रही है। 1958 में अयूब खान ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया। एक दशक से ज्यादा समय तक जनता को खुले आकाश में सांस नहीं लेने दी। फिर याहया खान का समय आया लेकिन जनता चैन की सांस ले पाती, 1977 में जीया उल  खान ने सत्ता सम्भाल ली और मजहबी जुनून को अपना रास्ता बना लिया। दुर्घटना में मृत्यु तक धार्मिक कट्टरता को आधार बना कर प्रगतिशीलता को बंधक बना दिया। 2018 में इमरान खान ने आन्दोलन चला कर पाकिस्तान मुस्लिम लीग की सरकार को कमज़ोर करार दिया, लेकिन शासन पाने के लिए सेना का हाथ थामने की गलती कर बैठे। फिर उनकी सरकार को भी गिरा दिया गया और एक कमज़ोर प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ को सत्ता सम्भालने का मौका मिला।
समय-समय पर भारत की तरफ से दोस्ती का हाथ बढ़ाने की कोशिश की गई, परन्तु सेना की वहां दखल अंदाज़ी से संबंध मधुर कभी भी नहीं बन पाये। वहां की सेना आतंकवादी संगठनों को तैयार करने में पूरी मदद करती है। सेना का यही एजेंडा है कि आतंकवादी संगठन भारत को यथा संभव नुकसान पहुंचाते रहें। पाकिस्तानी सरकार सेना के सामने कठपुतली बनी नज़र आती है। आसिफ मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया। उसको अधिक से अधिक अधिकार देना पाकिस्तान सरकार की कमज़ोरी और सैन्य अधिकार की बढ़ौतरी दिखाता है। उसने अपनी अलग अदालत बना रखी है। बड़े फैसले वही ले सकता है। विपक्ष इसकी आलोचना कर रहा है। परन्तु मौजूदा हालात बेहद गम्भीर हैं।

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