शालीन और सुसंस्कृत राजनेता थे इन्द्र कुमार गुजराल

यह दुनिया सिर्फ एक शब्द पर टिकी है और वह शब्द है—सच। अगर हम अभी से सच बोलना शुरू कर दें तो 99 प्रतिशत दिक्कतें और मनमुटाव खत्म हो जाएं। गीता, कुरान, बाईबल सब सच ही तो हैं। ये शब्द थे देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री इन्द्र कुमार गुजराल के। वह कहा करते थे कि आज के समय में सच बोलना सबसे मुश्किल काम है।
वो 4 दिसम्बर, 1919 को ज़िला जेहलम (पाकिस्तान) के एक छोटे से गांव में पैदा हुए थे। पिता जेहलम के विख्यात वकील थे। सन् 1921-22 में उनके पिता श्री अवतार नारायण गुजराल जी ने देश की स्वतंत्रता के लिए जूझ रहे लोगों को अंग्रेज़ी शासन के दमन चक्र से छुटकारा दिलाने के लिए न्याय प्रक्रिया का सहारा लेना आरम्भ किया परन्तु अंग्रेज़ी शासन को उनकी यह भूमिका रास नहीं आई। इस पर अवतार नारायण गुजराल जी ने आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे लोगों में बाकायदा शामिल होने की ठान ली। इस कारण गुजराल साहिब को बचपन से ही बड़े नेताओं के विचार सुनने का मौका मिला करता था, जिनका उनके दिमाग पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन पर शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह के विचारों का भी गहरा प्रभाव था।
भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. कृष्णकांत ने एक बार कहा था कि इन्द्र कुमार गुजराल द्वारा दर्शाया गुजराल डाक्ट्राईन का सिद्धान्त विश्व कल्याण और शान्ति का एक ही रास्ता है। संसार के 195 देश यदि गुजराल सिद्धान्त पर अमल करने लगें तो विश्व युद्ध जैसा विनाश मानवता को फिर कभी देखने को नहीं मिलेगा। गुजराल सिद्धान्त मानवता के लिए अमन, भाईचारा और खुशहाल बने रहने का मूल मंत्र है। 
गुजराल साहिब के दिल में केवल मानवता ही बसती थी। वह भारत से जितना प्यार करते थे वैसा ही वह सीमाओं के बंधनों में रहते हुए अपने सभी पड़ोसी देशों से भी करते थे। प्रो. गोपी नाथ नारंग कहते थे कि इन्द्र कुमार गुजराल एक ऐसी शमां थे जिसका प्रकाश सभी ओर फैलता था। साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी। उर्दू की उन्नति के लिए वह लगन और ईमानदारी से प्रयास करते थे। भारत की पहली उर्दू यूनिवर्सिटी जो हैदराबाद में है, उसके प्रथम चांसलर भी वही बने। 
स. खुशवंत सिंह कहते थे कि गुजराल साहिब सदैव सच बोलते थे। जो बात उन्हें नागवार गुज़रती, उसे वह मुंह पर कह देते थे परन्तु उनके विरोध का कभी किसी को बुरा नहीं लगता था। उनके उसूल ही उन्हें इतना आगे ले गए। ख्वाज़ा हसन निज़ामी कहते थे कि कुछ लोग इतिहास बनाते हैं और कुछ लोग इतिहास लिखते हैं लेकिन जनाब इन्द्र कुमार गुजराल ने इतिहास बनाया भी और इतिहास लिखा भी।
हमें याद है कि सन् 1997 के अगस्त माह में श्री इन्द्र कुमार गुजराल ने पंजाब पर 8500 करोड़ रुपये का ऋण माफ करने की घोषणा की थी। श्री गुजराल व सरदार बादल जानते थे कि ऋण माफी का मामला इतना आसान नहीं था क्योंकि केन्द्रीय सरकार के समक्ष असम, जम्मू-कश्मीर, त्रिपुरा इत्यादि के ऋण भी इसी शृंखला में थे, जिसमें आतंकवाद और अलगाववाद के विरुद्ध लड़ाई पर खर्च हुई करोड़ों की राशि शामिल थी। गुजराल साहिब द्वारा पंजाब पर ऋण माफ किया जाना एक ऐतिहासिक फैसला था। फिर भी पंजाब को दी जाने वाली यह माफी पंजाबियों द्वारा दिए गए बलिदान के सामने बहुत छोटी राशि थी। उनकी हमेशा यही सोच रही कि जनता का धन, जनता के ही काम आए। जब सेवा, निष्ठा और भावनाएं जन-जन को समर्पित हों तो बड़े से बड़े काम भी हो सकते हैं। गुजराल जी आत्म-स्तुति से हमेशा दूर रहे। एक राजनेता जब सक्रिय होता है तो उसकी सोच एवं भावनाएं जन-साधारण के प्रति भिन्न-भेद की बंदिशों को तोड़ कर सब के लिए एक समान होती हैं। गुजराल साहिब लोकसभा और मीडिया में पंजाब की राजनीतिक समस्याओं और सामाजिक सुविधाओं पर खुलकर अपनी बात रखते रहे। जन भावनाओं को प्रस्तुत करना उन्हें खूब आता था, इसीलिए उनके विचारों की जन साधारण द्वारा प्रशंसा भी होती रही। धीमा बोलना और अच्छे शब्दों का चयन उनके भाषणों का शिंगार रहा है। 
मानवता के प्रति स्नेह उनको विरासत में मिला। उनकी मां श्रीमती पुष्पा गुजराल ने नारी निकेतन बना कर नारी शक्ति की कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया और साथ ही ए.एन. गुजराल सीनियर सैकेंडरी स्कूल की स्थापना की। पिता अवतार नारायण गुजराल ने आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के साथ आज़ादी की लड़ाई में शामिल होकर देश के प्रति अपनी सेवा दी और जेल भी गए। जालन्धर से गुजराल परिवार का बहुत गहरा रिश्ता रहा। दिल्ली के उप-महापौर से उठकर देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना कोई साधारण बात नहीं। आज उनके जन्म दिवस पर हम हृदय से भारत मां के इस महान सपूत को याद करते हैं। जालन्धर की स्मृतियों में गुजराल साहिब आज भी ज़िंदा हैं।

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