आज से पुतिन की भारत यात्रा, दोनों देशों के लिए क्यों बहुत खास है ?
4 दिसम्बर 2025 से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की दो दिवसीय भारत यात्रा शुरू हो रही है। ऐसे में मौजूदा विश्व की पेचीदगियां और अमरीका के भारत पर टैरिफ दबाव को देखते हुए हमें पुतिन की भारत यात्रा को बहुत सावधानी से एक रणनीतिक विकल्प के रूप में देखना चाहिए और सोचना चाहिए कि दोनों देश आखिर इस दबाव और ब्लैकमेलिंग के दौर में कैसे एक-दूसरे के लिए ज्यादा से ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकते हैं। अगर अमरीका का रणनीतिक दबाव लगातार हम पर बढ़ता जा रहा है, तो क्या वह समय नहीं आ गया कि हम संतुलन साधने की जगह कोई स्पष्ट और रणनीतिक दिशा पकड़ने की कोशिश करें? इस सवाल पर मोदी मंत्रिमंडल को गंभीरतापूर्वक सोचकर कोई फैसला करना ही होगा क्योंकि भारत और रूस के बीच हाल के दिनों में समझौते तो बहुत हुए हैं, लेकिन व्यवहारिक रूप से इन समझौतों का कोई खास लाभ नहीं हुआ है। हमारे लिए क्रूड ऑयल में एक समय तक मार्जिन बेनिफिट के अलावा कोई बड़ा फायदा नहीं हुआ और वह भी अब दबाव और प्रतिबंधों की रणनीति के चलते महज 1.5 से 2 डॉलर प्रति बैरल रह गया है। ऐसे में सिर्फ कुछ करोड़ डॉलर सस्ते तेल के लिए भारत अपनी साख दुनिया के सामने रूस-यूक्रेन जंग के फाइनेंसर के रूप में तो नहीं बना सकता। लबोलुआब यह कि आज से शुरू हो रही पुतिन की दो दिवसीय भारत यात्रा हाल के सालों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और निर्णायक है। इसके पहले पुतिन अपने रणनीतिक समीकरणों के लिए भारत की औचक यात्रा करते रहे हैं, लेकिन इस यात्रा का भारत बहुत सोच समझकर अपनी रणनीति में इस्तेमाल करे, तभी दोनों देशों के लिए यह बेहद कामयाब यात्रा साबित होगी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि पुतिन की यह यात्रा बहुत खास है क्योंकि यह सबसे सही वक्त है कि भारत और रूस अपनी परम्परागत साझेदारियों को नया रूप और रणनीतिक आकार प्रदान करें। भारत और रूस के बीच- रक्षा, परमाणु, ऊर्जा, अंतरिक्ष और रणनीतिक साझेदारी के ठोस सहयोग समझौते को दोनों देश आज की ज़रूरत के हिसाब से रूप और आकार प्रदान करें; क्योंकि आज की जो वैश्विक भू-राजनीति है, वैसी अब के पहले कभी नहीं थी। रूस-यूक्रेन जंग, रूस पर लगे पश्चिमी दुनिया के प्रतिबंध, भारत पर अमरीका का टैरिफ दबाव और यूरोप की पारम्परिक साझेदारियों के बिगड़ते समीकरण, यह एक ऐसा परिदृश्य है, जिसको देखते हुए भारत और रूस को एक-दूसरे के निकट ज्यादा मजबूती और ज्यादा विश्वसनीयता के साथ आना ही होगा। तभी भारत और रूस के रिश्ते दुनिया के लिए कोई रणनीतिक मायने रखेंगे। यह तभी संभव है जब पुतिन के दौरे के महत्व को हम और रूस दोनों बहुत गहराई से समझें।
मसलन भारत और रूस के बीच आज करीब 73 अरब डॉलर का वार्षिक व्यापार होता है, जो कुछ सालों पहले महज 13 से 15 अरब डॉलर सालाना था। लेकिन हमें आकार देखकर यह नहीं भूलना चाहिए कि इसमें बहुत बड़ा हिस्सा रूसी तेल और ऊर्जा के आयात का है। आज रूस और भारत दोनों को समय की व्यवहारिकता समझना चाहिए और इस व्यापार को वास्तविक धरातल पर ले जाना चाहिए, जिससे कि भारत सिर्फ आयातक देश बनकर न रह जाए बल्कि हमें भी रूस का कोई बाज़ार हासिल हो। आज का भारत दो दशक पहले का भारत नहीं है, जो ज्यादातर चीजें आयात करता था। आज भारत दुनिया का एक बहुत बड़ा निर्यातक देश भी है। हमारे पास कृषि, फॉर्मा, मैन्यूफैक्चरिंग, टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य और बैंक तथा बीमा सेवाओं में महारत है। इसलिए इस व्यवहारिकता को देखते हुए दोनो देशों को आपसी व्यापार को आर्थिक आधार देना चाहिए। जिस तरह भारत बड़े पैमाने पर रूस से तेल, ऊर्जा और रक्षा खरीदारी करता है, उसी तरह रूस को भी चाहिए कि वह भारत से एंटीबायोटिक्स, कार्डियक दवाएं, वैक्सीन्स, हॉस्पिटल उपकरण, डायग्नोस्टिक दवाएं आदि बड़े पैमाने पर आयात करे। पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के कारण आज रूस में 10 से 15 बिलियन डॉलर का फॉर्मा गैप पैदा हो चुका है यानी रूस पश्चिमी देशों से जो दवाएं और मैडीकल उपकरण आयात करता था, प्रतिबंध के कारण उन पर रोक लग गई है। ऐसे में उसे यह मौका भारत को देना चाहिए।
याद रखें, भारत जिन चीजों में निर्यात की ताकत है, ज्यादातर उन चीजों में चीन भी मजबूत है। ऐसे में भारत को बहुत स्पष्ट और सावधानीपूर्वक पुतिन से साफ-साफ कहना चाहिए, हम केवल आयातक नहीं रहना चाहते, इसलिए आपको हमसे भी अपनी ज़रूरत की चीजें खरीदनी होगीं। क्योंकि रूस अपनी ज्यादातर ज़रूरतों के लिए चीन की तरफ देख रहा है और चीन के उत्पाद न केवल हमसे सस्ते हैं बल्कि चीन के निर्यात के लिए लॉजिस्टिक सपोर्ट भी हमसे बेहतर है। मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम रूस का जिस बड़े पैमाने पर रक्षा, ऊर्जा और तेल खरीदते हैं, रूस उस तरीके से रूसी सैन्य सामान नहीं खरीदता या उसे इसकी ज़रूरत नहीं है। ..तो हमें भी उस मज़बूत पक्ष का फायदा उठाने की जरूरत है। दूसरी बात यह है कि फॉर्मास्यूटिकल के क्षेत्र में चीन से हम बहुत आगे हैं। इसलिए हमें इस मामले में रूस को आनाकानी का मौका नहीं देना चाहिए। साथ ही हाल के सालों में हम जिस तरह से कृषि और उद्यानिक उत्पादों के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में भी एक ताकत बनकर उभरे हैं, उसके चलते हमें रूस में चाय, कॉफी, मसाले, चावल, दालें, फलों के जूस, विशेषकर मैंगो पल्प जो कि रूस में बहुत ज्यादा लोकप्रिय है और प्रोसेस्ड फूड जिनमें इंस्टेंट मील्स, रेडीमेड सॉस और लम्बी रेंज की स्नैक्स भी शामिल हैं, बहुत लोकप्रिय हैं। रूस के बाज़ार का एक बड़ा हिस्सा हासिल भारत को करना चाहिए। रूस की ज़रूरतें हैं, इसलिए दोनों देश बराबरी के तौर पर एक-दूसरे के साथ व्यापार को बढ़ाकर अमरीकी की टैरिफ ब्लैकमेलिंग से हमें और प्रतिबंधों के दबाव से रूस को मुक्ति मिल सकती है।
लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पुतिन जितनी गर्मजोशी दिखाते हैं, उसका बड़ा हिस्सा वह अपनी रक्षा सामग्री को बेंचने में इस्तेमाल करते हैं। हमें पुतिन की स्मार्टनेस को दोनों देशों के बीच ईमानदार और मजबूत समग्र रिश्तों के रूप में मोड़ना चाहिए। क्योंकि भारत सिर्फ आयातक देश बनकर हमेशा हमेशा के लिए एक बड़ी शक्ति नहीं बन सकता। हमें आयात के साथ निर्यात पर भी जोर देना होगा, क्योंकि भारत अब इस सबमें सक्षम है। ऊपर बताये गये उत्पाद क्षेत्रों के अलावा भारत ऑटो पार्ट और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी एक बड़ी ताकत बनकर उभरा है। हम रूस को बड़े पैमाने पर बैटरी, टायर, सस्पेंशन पार्ट्स, ट्रांसमिशन यूनिट और इंजन पार्ट बेंच सकते हैं। रूस में छोटे वाहन यानी टू व्हीलर और थ्री व्हीलर की काफी कमी है, जिनका इस्तेमाल माल ढुलाई के रूप में होता है। इसलिए हमें ऐसे क्षेत्र में भी बाजार तलाशने की मजबूत कोशिश करना चाहिए।,
हाल के सालों में भारत विश्व व्यापार जगत में मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक और कंपोनेंट्स के क्षेत्र में भी एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरा है। बेशक ये पूरी तरह से भारतीय उत्पाद न होते हों, लेकिन भारत स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद से भी भारत को अच्छा खासा लाभ मिलता है। इसलिए रूस में पश्चिमी स्मार्ट फोन और इलेक्ट्रॉनिक्स की सुविधा जो कम हुई है, उसका लाभ भारत स्मार्ट फोन, एलईडी टीवी, राउटर, इलेक्ट्रॉनिक चिप्स, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक के साथ-साथ आईटी सेवाएं और सॉफ्टवेयर के निर्यात में भी मौका तलाशने की कोशिश करना चाहिए। क्योंकि भारत के पास जो आज कोर बैंकिंग सिस्टम सपोर्ट है, क्लाउड मैनेजमेंट में महारत है, ई-कॉमर्स बैकएंड तथा पेमेंट टेक्नोलॉजी की विशेषज्ञता को भी सेवा निर्यात का बड़ा हिस्सा बनाना चाहिए और जहां तक हमारी प्रोफेशनल सेवाओं का सवाल है, तो उसमें तो हमारा कोई मुकाबला ही नहीं है। डॉक्टर, नर्स, इंजीनियर, आईटी विशेषज्ञ, शिक्षक, फॉर्मा व कैमिकल टेक्नीशियन की एक बड़ी वर्कफोर्स भारत में मौजूद है, जिसकी मार्केट रूस में अच्छे से तलाशी जा सकती है। क्योंकि यहां हम जिन क्षेत्रों का उल्लेख नहीं कर रहे हैं, ऐसे भी सेकड़ों की संख्या में क्षेत्र हैं, जिनके निर्यात की अच्छी संभावनाएं मौजूद हैं। इस तरह पुतिन की भारत यात्रा, भारत और रूस दोनों के लिए शानदार अवसरों की दहलीज है, बस इसे लांघने की ज़रूरत है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर



