चिंताजनक है बच्चों में कैंसर का बढ़ता ़खतरा

कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी अब केवल बड़ों में ही नहीं, बच्चों में भी देखने को मिल रही है। चिंता की बात यह है कि कैंसर अब बच्चों में भी तेज़ी से फैल रहा है और दुनियाभर में सामने आने वाले बच्चों में कैंसर के ऐसे मामलों में से केवल भारत में ही करीब 25 प्रतिशत मामले होते हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनियाभर में बचपन के कैंसर का 20 प्रतिशत दबाव भारत पर ही है। यह चौंकाने वाली जानकारी भी सामने आई है कि विश्वभर में प्रतिवर्ष करीब तीन लाख बच्चे इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आते हैं, जिनमें से 75 हजार से भी ज्यादा बच्चे भारत में होते हैं। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में प्रतिवर्ष करीब पौने दो लाख बच्चों की मौत कैंसर के कारण ही हो जाती है और यह आंकड़ा हर साल बढ़ रहा है। आमतौर पर शरीर में होने वाले जेनेटिक म्यूटेशन के कारण आम कोशिकाएं बढ़ती हैं और खत्म हो जाती हैं लेकिन जब ये कोशिकाएं बहुत ज्यादा बढ़कर अनियंत्रित हो जाएं तो ये कैंसर का रूप ले लेती हैं। बच्चों तथा किशोरों के जीन में होने वाले ये बदलाव कभी भी हो सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कैंसर बच्चों में मृत्यु का प्रमुख कारण है। डब्ल्यू.एच.ओ. के मुताबिक वर्ष 2020 में 14 वर्ष आयु तक के 262281 बच्चों में कैंसर का पता चला थाए जिनमें 45 प्रतिशत बच्चे अफ्रीका तथा दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के थे। डब्ल्यू.एच.ओ. के एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष 19 वर्ष आयु तक के करीब चार लाख बच्चों में कैंसर की पहचान की जाती है। डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर कैंसर से पीढ़ित सभी बच्चों के लिए कम से कम 60 प्रतिशत जीवित रहने और पीढ़ा को कम करने के लिए वर्ष 2018 में ‘ग्लोबल चाइल्डहुड कैंसर इनिशिएटिव’ की शुरूआत की गई। उच्च आय वाले अधिकांश देशों में 80 प्रतिशत उत्तरजीविता के साथ कैंसर से प्रभावित बच्चों के जीवित रहने की दर भिन्न होती है लेकिन निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह 20 प्रतिशत से भी कम होती है। यदि भारत से संदर्भ में बच्चों को कैंसर होने के आंकड़ों पर नज़र डालें तो काफी चौंकाने वाली तस्वीर सामने आती है। प्रतिवर्ष विश्वभर में जितने बच्चों को कैंसर होता है, उनमें से करीब एक चौथाई भारत से होते हैं। व्यस्कों की तुलना में भारत में बच्चों के बीच कैंसर के बढ़ते मामलों के लिए कैंसर को लेकर जागरुकता की कमी, कैंसर का पता लगाने के लिए उपकरण, दवा तथा उपचार के विकास की कमी को जिम्मेदार माना जाता है। इसीलिए बच्चों में कैंसर के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र कुछ समय से बाल कैंसर को राष्ट्रीय नीति में शामिल करने की मांग की जा रही है।
कैंसर विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों और व्यस्कों में होने वाले कैंसर में कई अंतर होते हैं और देश में कैंसर के कुल मरीजों में बच्चों की संख्या तीन से पांच प्रतिशत के बीच ही होती है लेकिन यह संख्या भी कम चिंता पैदा करने वाली नहीं है क्योंकि बच्चों में प्राय: होने वाले एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया, ब्रेन ट्यूमर, होज्किन्ज लिम्फोमा, सार्कोमा, एंब्रायोनल ट्यूमर इत्यादि बड़ी आसानी से हंसते-खेलते बच्चों को मौत के मुंह में पहुंचा देते हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि जहां इलाज के बाद विकसित देशों में करीब 80 प्रतिशत बच्चे ठीक हो जाते हैं, वहीं भारत में यह दर मात्र 30 प्रतिशत है। दरअसल भारत में विशेषकर ग्रामीण अंचलों में ऐसे बच्चों के अस्पताल तथा आधुनिक चिकित्सा सेवाओं तक पहुंचने की दर महज 15 प्रतिशत ही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में कैंसर का इलाज करने वाले करीब दो सौ सेंटर हैं किन्तु इनमें केवल 30 प्रतिशत कैंसर पीढ़ित बच्चों का ही इलाज हो पाता है। बच्चों में भी कैंसर के मामले बढ़ने का एक बड़ा कारण प्रदूषित वातावरण के अलावा उनके रोजमर्रा के खाने-पीने की आदतों में बड़े स्तर पर जंक फूड का शामिल होना भी माना गया है, जिससे उनके शरीर की पोषण स्थिति कमजोर होने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और वे आसानी से गंभीर बीमारियों की चपेट में आने लगते हैं।
    ल्यूकेमिया, मस्तिष्क कैंसर, लिम्फोमा तथा न्यूरोब्लास्टोमा, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के ट्यूमर, विल्म्स ट्यूमर जैसे ठोस ट्यूमर सबसे सामान्य प्रकार के बचपन के कैंसर हैं। नेफ्रोब्लास्टोमा, मेडुलोब्लास्टोमा, रेटिनोब्लास्टोमा इत्यादि बचपन के कैंसर के सबसे प्रचलित प्रकार हैं। दक्षिण पूर्व एशिया में कैंसर के करीब 69 प्रतिशत मामलों में तीव्र लिम्फोइड ल्यूकेमिया के मामले सामने आते हैं, जो भारत में भी बच्चों में सबसे आम कैंसर है। एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया को रक्त कैंसर या बोन मैरो कैंसर भी कहते हैं, जो 0.14 साल के बच्चों में होने वाला सामान्य कैंसर है। विशेषज्ञों के अनुसार यह प्राय: 2.5 वर्ष के बच्चों में होता है लेकिन यह किशोरों तथा व्यस्कों को भी हो सकता है। रक्त कैंसर ऐसी स्थिति होती है, जब शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की तुलना में श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या बड़ जाती है। इसके अलावा बच्चों में ब्रेन ट्यूमर, बोन कैंसर, किडनी और रेटिनोब्लास्टोमा अर्थात् आंखों का कैंसर भी होता है। बोन कैंसर की शुरुआत में बच्चे की हड्डियों में दर्द, थकान, कमजोरी और त्वचा का पीला पढ़ने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं और बड़ों के मुकाबले बच्चों में यह कैंसर 30 प्रतिशत ज्यादा होता है। न्यूरोब्लास्टोमा अधिकांशत: नवजात शिशुओं में देखने को मिलता है, जिसमें बच्चों को तेज़ बुखार तथा थकान जैसे लक्षण होते हैं। लिम्फोमा भी बच्चों में काफी आम हैं, जिसमें गले और पेट में गांठ बढ़ जाती है। हालांकि बच्चों में सर्वाधिक मामले रक्त कैंसर के ही आते हैं और अधिकांश मामलों में बच्चे ठीक भी हो जाते हैं लेकिन कैंसर के लक्षण यदि समय पर पहचान में नहीं आए तो यह घातक हो सकता है। कैंसर विशेषज्ञों के अनुसार यदि बच्चों को बुखार आया है और दवाएं लेने के बाद भी दो से तीन सप्ताह बाद भी नहीं उतर रहा है तो यह कैंसर का लक्षण हो सकता है।
बच्चों में प्राय: होने वाला ल्यूकेमिया चार प्रकार का होता है। हालांकि करीब 80 प्रतिशत मामलों में बच्चे ल्यूकेमिया कैंसर से ठीक हो सकते हैं। एक्यूट ल्यूकेमिया में रक्त तथा मैरो में कोशिकाएं तेज़ी से बढ़कर बोन मैरो में इकट्ठा हो जाती हैं और सही तरह से काम नहीं कर पाती। क्रोनिक ल्यूकेमिया में शरीर में पहले से मौजूद कोशिकाएं तो अपना काम ठीक तरह से करती हैं लेकिन कुछ नई कोशिकाएं बन जाती हैं, जो अविकसित होती हैं। क्रोनिक ल्यूकेमिया समय के साथ बढ़ता रहता है और यदि इसका समय से इलाज नहीं हो तो यह स्थिति को बहुत गंभीर कर देता है। एक्यूट लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया में बोन मैरो की कोशिकाएं श्वेत रक्त कोशिकाओं में बदलना शुरू हो जाती हैं। मायलोजनस ल्यूकेमिया में मैरो सैल्स द्वारा लाल रक्त कोशिकाओं और श्वेत रक्त कोशिकाओं के अलावा जब प्लेटलेट्स का निर्माण होता है, उसे मायलोजनस ल्यूकेमिया कहते हैं।
बच्चों के मामले में राहत की बात यह है कि बड़ों के मुकाबले बच्चों में कैंसर के लक्षण जल्दी दिखने लगते हैं, बस जरूरत है इन्हें समय पर पहचानने की। कैंसर विशेषज्ञों के अनुसार यदि बच्चों में कैंसर का समय पर पता चल जाए और इलाज शुरू हो जाए तो ज्यादा घबराने की बात नहीं होती। इसके लिए सबसे जरूरी है कि बच्चों के कैंसर से बचाव के लिए विशेष ध्यान रखा जाए और शरीर में किसी भी तरह की गड़बड़ी दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इलाज के लिए आवश्यकतानुसार कीमोथैरेपी, सर्जरी तथा रेडिएशन थैरेपी की जाती है, यदि कैंसर बढ़ जाए तो रेडिएशन थैरेपी की जरूरत होती है। कैंसर विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चों में ल्यूकेमिया के लक्षणों में लंबे समय बुखार और कमजोरी होनाए जोड़ों या हड्डी में दर्द, रक्तस्राव, भूख की कमी, तेज़ी से वजन कम होना, सांस की तकलीफ होना, बार-बार संक्रमण होना, स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना, ज़रूरत से ज्यादा नींद आना इत्यादि प्रमुख हैं। बच्चों में कैंसर से बचाव के लिए लोगों में कैंसर के लक्षणों को लेकर अपेक्षित जानकारी होना अत्यावश्यक है ताकि इसके लक्षणों की पहचान कर समय पर इलाज किया जा सके और उन्हें कैंसर से निजात दिलाई जा सके।

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