जोड़ो, तोड़ो, मोड़ो, छोड़ो... अभियान

हम लोगों के देश में कुछ न कुछ चलता ही रहता है यह चलते-फिरते लोगों का देश है, कोई न कोई ट्रेंड... कोई न कोई अभियान ..कोई न कोई एक्शन मोड में रहता ही है। अपने देश में खाने की कमी हो सकती है रोज़गार की कमी हो सकती है लेकिन साहित्यकारों, विशेषकर व्यंग कारों को लेखन के लिए विषय की कमी नहीं हो सकती ...विषयो से भरा पूरा देश है। इसके लिए सभी साहित्यकारों व्यंगकारो को देश के बुद्धिजीवी नेताओं का सभी नेताओं का आभारी रहना चाहिए। वैसे साहित्यकार बुद्धिजीवी अन्य समय पर तो शासन व सत्ता पर भारी रहते है पर कभी-कभी ऐसे जगहों पर आभारी रहना चाहिए वैसे भी नेता और लेखक में शनि और सूर्य देव वाला रिश्ता रहता है पर आजकल के नेता और कुछ साहित्यकार दोनों समझदार हैं अपनी-अपनी कक्षा में अपनी-अपनी यात्रा पूरी करते हैं, बिना एक दूसरे से टकराए। और कभी-कभी एक ही कक्षा में अपनी यात्रा करने लगते हैं आपसी सौहार्द प्रेम भाव को बढ़ावा देने के लिए और वह कक्षा होती है राग दरबारी कक्षा।
आज़ादी से पहले भी देश में अभियान छेड़ा गया था अंग्रेजों भारत छोड़ो अभियान ...अंग्रेज भारत से अपने मन में भारत को बसाकर सारी अच्छी-अच्छी चीजें आदतें उठा ले गए और इंडिया को छोड़ गए तबसे लेकर अब तक भारत के सभी बुद्धिजीवी प्राणी इंडिया को भारत बनाने पर तुले लगे हुए हैं कुछ लोगों को भारतीय से ज्यादा इंडिया का नागरिक बनना पसंद होता है वह इस अभियान की निंदा करते है पर निंदा करने वालों का क्या है अच्छा करें तब भी जग में निंदा करने वाले मिल जाएंगे बुरा करिए तब भी कुछ लोग निंदा करेंगे, लेकिन कभी-कभी निंदा करने वाला ही आपके व्यक्तित्व का परिमार्जन कर देता है इसीलिए तो कहा गया है ‘निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय’ और अभी जाने कितना समय लगेगा इंडिया को भारत बनाने में... अभी कार्य प्रगति पर है। अत: भारत को हृदय में बसाने वाले लोग... इस स्लोगन से अपने आप को संतुष्ट कर सकते हैं।
आजकल देश की हर पार्टी कोई न कोई अभियान चला रही है अभियान पहले भी चलते रहे हैं लेकिन अब के अभियान कुछ अलग ही अंदाज में चलते है.. चल रहे हैं। कोई जोड़ो अभियान चला रहा है तो कोई उसकी जोड़ी हुई भार्मिक दीवार को तोड़ने का अभियान चला रहा है और कोई अपनी कुर्सी की टूटी हुई टांग जोड़ने के लिए अपनी दीवार जोड़ने में लगा हुआ है और जिनको जोड़ने तोड़ने से फुर्सत है वह इन अभियानों को अपनी ओर मोड़ने का अभियान चला रहे हैं और जिनसे यह भी नहीं हो पा रहा है वह लंबी-लंबी छोड़ने का अभियान चला रहे हैं। राजनीति में तो हर पार्टी कुछ न कुछ छोड़ती ही रहती है जिसका कचरा जनता को बटोरना पड़ता है अत: जनता बटोर रही है और बटोरने के सिवा कुछ नहीं कर सकती है अत: कभी-कभी जनता भी जोड़ो छोड़ो के बजाय मरोड़ो अभियान चला चलाकर कभी-कभी इन लोगों की गर्दन मरोड़ देती है।
क्योंकि अपने देश में जोड़ने तोड़ने मोड़ने की अभूतपूर्व कला का अविष्कार देश के नेताओं ने किया था तो वह अब तक इस अविष्कार के पुरस्कार पर अपना पहला अधिकार बनाए हुए हैं और बनाऐ रखने की परंपरा बनाए रखेंगे। जनता को जोड़ने तोड़ने के तमाशे में मिलना जुलना तो कुछ नहीं है ना पहले कुछ मिला है ना अब कुछ मिलेगा अत: वह अभी तमाशाई बनी हुई है। जनता को इस जोड़ने तोड़ने के खेल में रुचि और अरूचि तो तब जागृत हो जब वह अपनी दैनिक जरूरतों से फ्री हो जाए लेकिन ना वह फ्री होगी ना उसका पेट भरेगा और ना वह इस पचड़े में पड़ेगी। इसके लिए उन्हें देश के धन पशुओं का आभारी होना चाहिए क्योंकि उनकी भूख जनता की भूख पर भारी पड़ती है। खाली पेट इंसान भूख को सोचता है और भरे पेट वाले को खुराफात सुझाई देती है। तो यह जोड़ने तोड़ने का खेल भरे पेट वालों की खुराफात है यह सब उच्च वर्ग का खेल है निम्न वर्ग वालों के लिए इसमें मनोरंजक कुछ भी नहीं।


-बलिया (उत्तर प्रदेश)