इन्सानों और पक्षियों का लाडला पाकड़ का पेड़

बेहद घनी पत्तियों वाले पाकड़ के पेड़ में पक्षियों को सुरक्षित घर और खाने के लिए बेहद स्वादिष्ट फल पकुआ दोनों मिलते हैं, इसलिए यह उनका पसंदीदा पेड़ तो है ही, बरगद, पीपल व गूलर की तरह दूध युक्त होने के कारण पाकड़ के पेड़ को महर्षि पतंजलि ने औषधीय वृक्ष माना है, जो इंसानों के बहुत काम आता है। लेकिन रुकिए अभी इसकी विशिष्टताएं खत्म नहीं हुईं। कुछ लोगों के मुताबिक भगवान राम वनवास के दौरान चित्रकूट के जिस पंचवटी वन में रहे, वह पंचवटी वन जिन पांच पेड़ों से मिलकर बना था, उसमें एक प्रमुख पेड़ पाकड़ का भी था। पंचवटी के अन्य चार पेड़ थे- वट, पीपल, करील और रसाल। हालांकि कई लोग ऐसा नहीं भी मानते। उनके पास यहां के पांच पेड़ों की लिस्ट अलग होती है। लेकिन अगर यह पंचवटी के पांच पेड़ों में एक न भी रहा हो तो भी इसकी इतनी खूबिया हैं कि यह उतना ही महत्व रखता है।
पाकड़ का पेड़ जितना पक्षियों के लिए उपयोगी है उससे कहीं ज्यादा पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह पेड़ सैकड़ों साल तक जीवित रहता है, किसी भी परिस्थिति में पनपने की क्षमता रखता है, इसमें सबसे कम पतझड़ होता है और चूंकि यह साल के ज्यादातर समय पत्तियों लदा रहता है, इसलिए यह दूसरे पेड़ों के मुकाबले मात्रा में कहीं ज्यादा ऑक्सीजन भी उत्सर्जित करता है। ज्यादातर समय हराभरा रहने के कारण ही इसकी उम्र भी सामान्य पेड़ों से काफी ज्यादा होती है। पाकड़ का फल, पकुआ पक्षियों का प्रिय तो है ही, इंसान भी इसे बड़े चाव से खाते हैं। कई देशों, खासकर थाईलैंड में तो इसकी पत्तियां का बहुत स्वादिष्ट साग भी बनता है। इस पेड़ का वास्तु और ज्योतिष के नजरिये से भी महत्व है। कहते हैं घर के उत्तर में पाकड़ का पेड़ लगाना  शुभ होता है।
पाकड़ या पिलखन या पकड़िया हिंदुस्तान में बहुतायत में पाया जाने वाला पेड़ है। इसे अंग्रेजी में फाइकस वेरेंस, असमिया में पकोड़ी, बांग्ला में पाकुड़, संस्कृत में पर्कटी, मलयालम में चेरल, मराठी में लघुपिंपरी और गुजराती में पेपरी कहते हैं। औषधीय दृष्टि से इस पेड़ का हर हिस्सा काम का होता है। इसकी छाल का काढ़ा हड्डियों को मज़बूत करता है। इसकी पत्तियां मधुमेह को नियंत्रित करती हैं। चोट लग जाये या कहीं कट जाए तो इसकी छाल का चूरन तुरंत खून बंद कर देता है। जिन लोगों को नासूर की समस्या होती है, पाकड़ उनके लिए रामबाण औषधि है, उन्हें पाकड़ की छाल का काढ़ा पीने से जबरदस्त फायदा होता है। पाकड़ की छाल को पानी में उबालकर अगर उससे स्नान किया जाए तो पसीने की बदबू दूर हो जाती है। पाकड़ की छाल को घी में पीसकर लगाने से त्वचा की जलन शांत हो जाती है। इसकी छाल से बनाये गये काढ़े से कुल्ला करने पर दांत दर्द दूर हो जाता है। मुंह की बदबू से छुटकारा मिलता है। साथ ही इसकी छाल रक्त, पित्त, दोष तथा वायु दोष से भी निजात दिलाती है। ल्यूकोरिया और रक्त प्रदर में पाकड़ की छाल का चूर्ण लाभदायक होता है।
पाकड़ की लकड़ी बहुत मजबूत होती है, इसलिए इसकी लकड़ी से बना फर्नीचर बहुत महंगा और बेहद टिकाऊ होता है। जहां तक इस पेड़ के उगने, लगने और आसानी से बढ़ने व फलने-फूलने की बात है, तो उत्तर भारत की जलवायु इसके लिए बेहद मुफीद मानी जाती है। यह नमी में तेज़ी से पनपता है और वैसे तो किसी भी मिट्टी में न सिर्फ उग आता है बल्कि आसानी से जिंदा रहता है। लेकिन अगर जिस मिट्टी में इसे लगाने या उगाने की कोशिश हो रही हो, वह यदि हल्की बलुई व चिकनी मिट्टी हो तो यह इसके लिए बेहतर होती है। आषाढ़ से भादो महीने तक इसे रोंपना सौ प्रतिशत कामयाब रहता है। वैसे यह बहुत जुझारू पेड़ है, हर तरह की परिस्थिति में जिंदा रहता है। यहां तक कि इसकी शाखाएं भी नये पेड़ के रूप में पनप जाती हैं। चूंकि इस पेड़ में बहुत पत्तियां होती हैं, इसलिए यह बेहद घना और गर्मियों में शीतल छाया देता है तथा बहुत सर्दियों में गर्माइश बनाये रखता है। यही कारण है कि पक्षी इस पेड़ में रहना खूब पसंद करते हैं। कम पतझड़ होने के कारण पाकड़ में हमेशा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती रहती है और यह धरती के लिए ऑक्सीजन बनाता रहता है।

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