पेरिस ओलंपिक-2024 - क्या इस बार आयेंगे रिकॉर्ड मैडल ?
पेरिस ओलंपिक 2024 के लिए अभी तक 111 भारतीय एथलीट्स ने अपनी सीटें बुक करा ली हैं, जबकि इस लेख के लिखे जाने तक क्वालिफिकेशंस जारी थे। चूंकि 2020 टोक्यो में कांस्य पदक जीतने वाली पुरुष हॉकी टीम ने चीन में आयोजित 2022 एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता था, इसलिए उसने भी पेरिस के लिए क्वालीफाई कर लिया है। एथलेटिक्स प्रतिस्पर्धाओं के लिए रेस वॉकर्स प्रियंका गोस्वामी व अक्षदीप सिंह ने सबसे पहले क्वालीफाई किया था। हालांकि क्वालीफाई करने के बावजूद लांग जम्पर मुरली श्रीशंकर घुटने की चोट के कारण पेरिस नहीं जा सकेंगे, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि भारतीय शूटर्स ने शूटिंग की प्रत्येक कैटेगिरी में कोटा बुक किया है। एक दिलचस्प बात यह भी है कि मात्र 14 वर्षीय तैराक धिनिधि देसिंग्हू पेरिस में सबसे कम आयु की भारतीय प्रतिस्पर्धी होंगी, जबकि अपना पांचवां व अंतिम ओलंपिक खेलने वाले 42 वर्षीय टेबल टेनिस स्टार अचंता शरथ कमल सबसे उम्रदराज़ खिलाड़ी होंगे और वह ही इस सत्र में भारत का झंडा उठाकर चलेंगे।
ओलंपिक के लिए तैयारी करने के लिए उन भारतीय एथलीट्स की संख्या में अप्रत्याशित इज़ाफा हुआ है, जो राष्ट्रीय सेट-अप से अलग हटकर व्यक्तिगत कोचों की निगरानी में ट्रेनिंग कर रहे हैं। न केवल उनकी ट्रेनिंग योजनाएं विशेषरूप से उनके लिए तैयार की गईं बल्कि उनके डाइट व अन्य प्लान भी एक्सक्लूसिव हैं। इसके लिए उन्हें सरकार या प्राइवेट फाउंडेशन ने फंड किया है। ज़ाहिर है कि यह सब कोशिशें पदक हासिल करने के लिए की जा रही हैं। इसलिए यह प्रश्न प्रासंगिक है कि क्या पर्सनल ट्रेनिंग की बदौलत भारतीय एथलीट्स 2024 पेरिस में रिकॉर्ड ओलंपिक पदक जीत सकेंगे? 2020 टोक्यो में भारत ने 7 पदक जीते थे, जोकि उसके ओलंपिक इतिहास में सर्वाधिक हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस बार भारत की पदक तालिका दो अंकों में पहुंच सकती है। अगर ऐसा होता है, जिसकी प्रबल संभावना है, तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
शूटिंग, कुश्ती, एथलेटिक्स, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, बॉक्सिंग आदि में खिलाड़ियों के व्यक्तिगत कोच हैं या जो राष्ट्रीय सेटअप में भी हैं, उनके लिए भी विशिष्ट ट्रेनिंग योजनाएं उपलब्ध करायी जा रही हैं। ओलंपिक चैंपियन नीरज चोपड़ा, दो बार की ओलंपिक पदक विजेता पीवी सिंधु या विश्व चैंपियनशिप्स पदक विजेता विनेश फोगट के लिए अपने सपोर्ट स्टाफ के साथ ट्रेवल करना कुछ नया नहीं है। दिलचस्प यह है कि अब अन्य अनेक एथलीट्स ने भी यही तरीका अपना लिया है, सरकार व प्रायोजकों की मदद से। उन्हें जो आर्थिक सहयोग मिल रहा है, उससे वह ट्रेनर व फिजियो हायर कर रहे हैं। द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित बैडमिंटन कोच विमल कुमार का मानना है कि भारतीय स्पोर्ट्स के विस्तार के साथ यह परिवर्तन तो स्वाभाविक था। वह बताते हैं, ‘अगर आप विश्व के टॉप खेल देशों को देखेंगे तो प्रोफेशनल एथलीट्स के पास पर्सनल कोच हैं और उनके अपने व्यक्तिगत ट्रेनिंग प्रोग्राम होते हैं। भारतीय खेल भी इसी दिशा में जा रहा है। लेकिन मेरा मानना है कि भारत के टॉप एथलीट्स जो पर्याप्त पैसा कमाते हैं, उन्हें सपोर्ट स्टाफ हायर करने के लिए अपना पैसा खर्च करना चाहिए, बजाय सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल करने के, जिसका इस्तेमाल जमीनी स्तर पर खेल का विकास करने के लिए किया जा सकता है। जब प्लानिंग व प्रतियोगिताओं के चयन की बात आती है तो मैं कुछ युवाओं को गलत दिशा में जाता हुआ देख रहा हूं। उन्हें उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है।’
टोक्यो से पेरिस के बीच में शूटिंग ने ज़बरदस्त बदलाव देखा है कि इलीट शूटर्स व्यक्तिगत कोचों व कार्यक्रमों को प्राथमिकता दे रहे हैं। राष्ट्रीय फेडरेशन (एनआरएआई) ने कुछ दिशानिर्देशों के साथ ओलंपिक से पहले कैम्प्स में भी शूटर्स के साथ व्यक्तिगत कोच को रहने की अनुमति दे दी है। पूर्व शूटिंग इंटरनेशनल दीपाली देशपांडे पाले के दोनों तरफ रही हैं। वह टोक्यो ओलंपिक में राष्ट्रीय राइफल कोच थीं और जब भारतीय शूटर्स वहां एक भी पदक न जीत सके तो वह बुरी तरह से टूट गईं थीं। तब से वह सिर्फ अपने ही चार शिष्यों-अंजुम मौद्गिल, अर्जुन बबुता, सिफत कौर समरा व स्वप्निल कुसाले पर ही फोकस कर रही हैं, जोकि पेरिस दल में शामिल हैं। दीपाली कहती हैं, ‘राष्ट्रीय टीम में प्रतियोगिता के टॉप तीन शूटर्स को ही शामिल किया जाता है। जब शूटर राष्ट्रीय टीम में अपनी जगह खो देता है तो उसकी देखभाल कौन करेगा? उनके लिए कोई व्यवस्था तो होनी चाहिए।’ दीपाली अंजुम की मिसाल देती हैं, जो 50मी राइफल 3 पोजीशन में हिस्सा लेंगी, जबकि पिछले साल वह एशियन गेम्स व विश्व चैंपियनशिप्स टीम का हिस्सा नहीं थीं। अंजुम ने अपने दम पर ट्रेनिंग की और टॉप्स (सरकार की टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम) की मदद से वापसी की। दीपाली का मानना है कि एनआरएआई के लिए आगे बढ़ने का मार्ग यह है कि राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाते हुए पर्सनल कोचों के लिए भी जगह बनायें।
कुश्ती में भारत को टोक्यो में दो पदक मिले थे। तब से पहलवानों के विरोध-प्रदर्शन के कारण अनेक समस्याएं उत्पन्न हुईं। राष्ट्रीय कैंप आयोजित न हो सके। इलीट पहलवानों ने अपनी-अपनी अकादमी में ट्रेनिंग की। पेरिस जाने वाली 5 महिला पहलवानों में से 3 ने हंगरी के बहुराष्ट्रीय कैंप में जाने की बजाय भारत में ही अपने तौर पर ट्रेनिंग की। स्टार पहलवान विनेश फोगट व बजरंग पूनिया को 2018 से व्यक्तिगत कोचों के कारण सफलता मिली है, जिससे अन्य एथलीट्स भी व्यक्तिगत कोच आदि रखने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं। इसलिए एथलेटिक्स, शूटिंग, बैडमिंटन, बॉक्सिंग, वेटलिफ्टिंग और कुश्ती में स्टार एथलीट्स के पास व्यक्तिगत कोच, फिजियो आदि हैं। लगभग 40 भारतीय खिलाड़ियों के पास यह व्यवस्था है और भारतीय ओलंपिक संघ का कहना है कि उन अन्य अनेक एथलीट्स को भी यह सुविधा उपलब्ध करायी जा सकती है जिनसे ‘पदक की उम्मीद’ है। यह कोशिश क्या रंग लायेगी, यह तो पेरिस में ही मालूम हो सकेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर