बिहार में खराब प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर सड़कों पर उतरे लोग

पंहार में उस समय राजनीतिक पारा बढ़ गया जब नितीश कुमार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने प्रदेश भर में प्रीपेड स्मार्ट बिजली मीटर लगाने के लिए 2025 की समय सीमा निर्धारित कर दी, जिस कारण बड़ा विवाद पैदा हो गया है और विपक्षी पार्टियों ने इसका व्यापक स्तर पर विरोध करना भी शुरू कर दिया है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने नितीश सरकार के इस कदम के खिलाफ प्रदेश भर में धरने लगाए और मार्च किए तथा आरोप लगाया कि इस का उद्देश्य कुछ बिजली कम्पनियों को लाभ पहुंचाना और उपभोक्ताओं से पैसे लूटना है। राजग सरकार ने विरोधियों के इन आरोपों को खारिज कर दिया है। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने विरोधियों पर स्मार्ट मीटर संबंधी योजना को बदनाम करने के लिए लोगों में झूठी जानकारियां फैलाने का आरोप लगाया है। इस दौरान बिहार में बाढ़ पीड़ितों ने सहरसा-दरभंगा मार्ग को जाम कर दिया और राहत सामग्री उपलब्ध करवाने प्रति नितीश सरकार की बेरुखी के खिलाफ सरकार विरोधी नारे लगाए। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता (एल.ओ.पी.) तेजस्वी यादव ने उत्तरी बिहार में हाल ही में आई बाढ़ के संकट से निपटने में विफल रहने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों की आलोचना की। 
चिराग पासवान की भाजपा को चेतावनी 
बिहार में अक्तूबर-नवम्बर 2025 में सम्भावित विधानसभा चुनावों से पहले राजग के अहम सहयोगी केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान ने यह कह कर सनसनी फैला दी है कि यदि संविधान या आरक्षण के साथ छेड़छाड़ की गई या वंचित समुदाय के लोगों के साथ कोई अन्याय हुआ तो वह अपने स्वर्गीय पिता रामविलास पासवान की सोच के अनुसार मंत्री पद छोड़ देंगे। हालांकि बाद में लोक जनशक्ति पार्टी (आर.वी.) नेता ने अपनी टिप्पणी पर सफाई देते हुए कहा कि वह कांग्रेस के नेतृत्व वाले यू.पी.ए. का ज़िक्र कर रहे थे। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख पासवान ने पार्टी के एस.सी./एस.टी. सैल के एक समारोह में यह टिप्पणी की, परन्तु उन्होंने कहा कि जब तक नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं, वह राजग में बने रहेंगे। इसके अतिरिक्त यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि चिराग पासवान ने अप्रत्यक्ष रूप में भाजपा हाईकमान को यह संदेश दिया है कि वह अपने चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ भाजपा की नज़दीकियों से अप्रसन्न हैं, जिन्होंने उनके स्वर्गीय पिता की लोक जनशक्ति पार्टी को तोड़ दिया था और जिससे उनका विवाद चल रहा है। 
सिद्धारमैया का स्थान कौन लेगा?
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के कानूनी संकट में फंसने के साथ ही कर्नाटक कांग्रेस में भी पेंच फंसता दिखाई दे रहा है, जहां इस बात पर चर्चा चल रही है कि यदि उन्हें पद छोड़ना पड़ा तो उनका स्थान कौन लेगा। उप-मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जग-जाहिर है। गत वर्ष जब प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में लौटी थी तो उन्होंने शीर्ष पद के लिए पूरा ज़ोर लगाया था, परन्तु कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धारमैया को चुना। अब शिवकुमार पार्टी विधायकों के साथ बातचीत करके उनका समर्थन प्राप्त कर रहे हैं और एक बार फिर शीर्ष पद के लिए दावा कर रहे हैं। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार सिद्धारमैया एच.सी. महादेवप्पा या सतीश जरकीहोली में से किसी एक को अपना समर्थन दे सकते हैं। महादेवप्पा दलित हैं जबकि जरकीहोली अनुसूचित जाति (एस.टी.) समुदाय से संबंध रखते हैं। हालांकि यह सम्भावना है कि सतीश जरकीहोली तथा एच.सी. महादेवप्पा जनता दल (सैकुलर) के साथ अपने इतिहास के कारण मुख्यमंत्री पद के लिए गम्भीर दावेदार नहीं हैं। 
दूसरी ओर कांग्रेस हाईकमान कर्नाटक के गृह मंत्री तथा दलित भाइचारे के प्रमुख नेता जी. परमेश्वर के पक्ष में हैं। परमेश्वर, जिन्होंने केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में आठ वर्ष व्यतीत किए हैं, परन्तु अब 2013 में हुई हार के कारण मुख्यमंत्री बनने से चूक गए थे। उनके लिए जल्द ही अवसर आ सकता है, क्योंकि डी.के. शिवकुमार, जिन्हें व्यापक रूप में सिद्धारमैया का उत्तराधिकारी माना जाता था, रक्षात्मक रुख अपनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। यदि परमेश्वर को शीर्ष पद मिलता है, तो कर्नाटक को अपना पहला दलित मुख्यमंत्री मिलेगा। 
राहुल द्वारा राजनीति में महिलाओं की समान भागीदारी की वकालत 
लोकसभा में विपक्ष ने नेता राहुल गांधी ने राजनीति में महिलाओं की अधिक भागीदारी के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि असल समानता तथा न्याय तब प्राप्त होगा, जब फैसला लेने वाली भूमिकाओं में ज़्यादातर महिलाएं शामिल होंगी। गांधी ने बदलाव लाने के लिए जनूनी महिलाओं को ‘शक्ति अभियान’ में शामिल होने की अपील की, जिसका उद्देश्य महिलाओं के हितों के लिए समान राजनीतिक स्थान बनाना है।
 राहुल गांधी ने एक्स पर कहा कि एक वर्ष पहले हमने राजनीति में महिलाओं की आवाज़ को बुलंद करने के मिशन से ‘इंदिरा फैलोशिप’ शुरू की थी। आज यह पहल महिलाओं के नेतृत्व के लिए शक्तिशाली आन्दोलन बन गई है। सच्ची समानता तथा न्याय के लिए राजनीति में अधिक महिलाओं की ज़रूरत है। ‘आधी आबादी, पूरा अधिकार’ इस उद्देश्य के लिए हमारी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है। गांधी ने कहा कि हम एकजुट होकर गांवों से लेकर पूरे देश में बदलाव ला सकते हैं। इंदिरा फैलोशिप पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सम्मान में एक पहल है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की आवाज़ को बढ़ाना और हमारे समाज में एक बहुत ज़रूरी बदलाव लाना है।
 (आई.पी.ए.)