मिट्टी के दीयों की ओर लौटते लोग
चमक-दमक और इलेक्ट्रॉनिक्स के इस युग में लोग फिर से मिट्टी के दीयों की तरफ लौट रहे हैं। यह सुखद बदलाव है। मगर सवाल है, यह लौटना स्वाभाविक है या फिर रिवर्स स्टेट्स सिंड्रोम है? जी हां, कई बार जो चीजें आम हो जाती हैं, उनके इस्तेमाल से ऐसे लोग बचने की कोशिश करते हैं, जो खुद को समाज से अलग और खास दिखाना चाहते हैं। चूंकि आज दिवाली के मौके पर बिजली की लड़ियों से एक आम से आम आदमी भी अपने घर को सजाता है। कहीं इस आम हो चली चमक-दमक से अपने को अलग दिखाने के लिए तो नहीं, कुछ लोग अपने को अतीत की तरफ लौटा रहे हैं और दिवाली में मिट्टी के दीयों को जलाने की प्राथमिकता दे रहे हैं।
खैर कुछ भी हो, जड़ों की तरफ लौटने के कुछ मायने तो हैं ही। इसका सबसे पहला और महत्वपूर्ण मायना तो यही है कि लोगों को इससे अपनी पारम्परिकता और जड़ों से जुड़ाव महसूस हो रहा है और ऐसा हो भी क्यों न। लोग आधुनिक जीवनशैली में रहते हुए भी अपनी संस्कृति और परम्परा से जुड़े रहना चाहते हैं। शायद इसीलिए समाज का एक बड़ा तबका अब दिवाली में बिजली की लड़ियाें और रंग-बिरंगी मोमबत्तियाें से ऊबकर अपने अतीत की ओर मुड़ गया है और दिवाली के मौके पर मिट्टी के दीयों में घी के दीये जलाने लगा है। विशेषकर बड़े शहरों में दीपावली के मौके पर लोगों ने मिट्टी के दीयों पर अपनी रुचि खूब दर्शायी है। मिट्टी के दीये दरअसल हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं, जो हमें हमारी जड़ों की याद दिलाते हैं।
भले हम इसकी तरफ ऊब कर अपने को अलग दिखाने के लिए लौटे हों, लेकिन इसका पर्यावरणीय महत्व तो है ही। ..तो सवाल है यह क्यों न मानें कि लोग पर्यावरण के प्रति अपनी बढ़ती चिंता और जागरूकता के कारण फिर से मिट्टी के दीये जलाना पसंद कर रहे हैं? दरअसल जिस तरह से बढ़ते तापमान का असर दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में भयावह रूप से दिखने लगा है, उसके चलते भी लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हुए हैं और अपनी पारम्परिक चीजों की तरफ लौट रहे हैं। प्लास्टिक, चीनी मिट्टी, मोमबत्ती या इसी तरह की दूसरी चीजों से लोग अब दूरियां बना रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि यह जैव-अपघटनीय होती हैं।
दिवाली में मिट्टी के दीयों के बढ़ते चलन का एक अच्छा और सकारात्मक कारण यह भी है कि इससे हम अपनी परंपरा के साथ-साथ सादगी की तरफ भी झुक रहे हैं। आज भागदौड़ और तनाव से भरी जिदंगी में कुछ लोग अपनी गतिविधियों को सरलता और सादगी की तरफ ला रहे हैं, जिससे कि हर समय के तनाव से कुछ राहत मिल जाए। यह एक अच्छी सोच है लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो दिखावे के लिए भी सादगी की तरफ झुकाव रखते हैं। बहरहाल जो भी हो, दीपावली के पर्व पर मिट्टी के दीयों के बढ़ते चलन से हमारी परंपरा मजबूत होती ही है। इसलिए यह एक अच्छा चलन है। जहां तक हो सके, इस पर अमल करना चाहिए।
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