भारत के सभी धर्मों में जगमगाती है दीपावाली
भारत में उपजे सभी प्रमुख धर्मों हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों में दिवाली एक महत्वपूर्ण पर्व है। हालांकि भारत में शासन करने वाले मुस्लिम शासकों ने भी दिवाली का आदर किया है, लेकिन यह उनके धर्म का हिस्सा नहीं है। इसलिए उनके लिए यह धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक सौहार्द का विषय रही है। जो धर्म भारत में जन्मे हैं, उन सब में सनातन धर्म की तरह ही दिवाली से संबंधित महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक संदर्भ हैं। जिस कारण जैन, बौद्ध और सिख धर्म में भी दिवाली का पर्व हर्ष,उल्लास के साथ मनाया जाता है।
सबसे पहले अगर हम दिवाली को हिंदू धर्म की नज़र से देखें तो यह भगवान राम के वन से वापस लौटने पर अयोध्यावासियों द्वारा खुशी के प्रतीक स्वरुप मनाना शुरू हुई। भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास बिताकर तथा लंका के अहंकारी राजा रावण सहित अनेक पापियों का वध करके अयोध्या वापस लौटे थे, तो अयोध्यावासियों ने इस खुशी में घी के दीये जलाये थे। तब से हिंदू धर्म में दिवाली का पर्व मनाया जाता है। इसके अलावा दिवाली हिंदू धर्म में धन, समृद्धि और वैभव की देवी लक्ष्मी की पूजा का दिन भी है। साथ ही यह धन के देवता कुबेर की भी पूजा का दिन है। अगर इसके भौतिक प्रतीक को देखें तो अंधकार की रात में रोशनी का दीया जलाकर यह अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का भी पर्व है। इसलिए हिंदू बहुत खुशी और उल्लास के साथ दिवाली का त्योहार मनाते हैं।
इस पर्व का एक रिश्ता भगवान श्री कृष्ण से भी है। भगवान श्री कृष्ण ने इसी दिन नरकासुर को परास्त करके 16000 महिला कैदियों को उसके कैदखाने से मुक्त कराया था। इस मुक्ति पर इन महिलाओं तथा समाज के सभी लोगों ने खुशी के दीये जलाये थे। माना जाता है कि तब से ही हर साल कार्तिक अमावस्या को दिवाली मनायी जाती है। हिंदुओं की तरह ही जैनों, बौद्धों और सिखों में भी इस पर्व की मोहक कहानियां हैं। यह पर्व हर्ष और उल्लास का माना जाता है। जैन धर्म में दिवाली की धूमधाम से मनाये जाने का कारण, इस धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का निर्वाण इसी दिन यानी कार्तिक अमावस्या को हुआ बताया जाता है। इसलिए जैन धर्म के अनुयायी दिवाली को महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के दिन के रूप में मनाते हैं।
इस दिन जैन समाज अपने घरों, मंदिरों को दीयों से रोशन करता है। दीयों से निकलने वाला यह प्रकाश ज्ञान और सच्चाई का प्रकाश होता है। कार्तिक अमावस्या की इसी रात को मौजूदा बिहार की पावापुरी नगरी में भगवान महावीर को निर्वाण हासिल हुआ था। साथ ही एक कहानी यह भी है कि इसी दिन भगवान महावीर के प्रमुख गणधर गौतम स्वामी को भी कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। जैनों की तरह ही बौद्ध धर्म में भी दिवाली मनाये जाने की भव्य परम्परा है। दरअसल कार्तिक अमावस्या के दिन ही माना जाता है कि सम्राट अशोक ने राजपाट त्यागकर शांति और अहिंसा का पथ यानी बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। तभी से बौद्ध लोग इस दिन को शांति की रोशनी के पर्व के रूप में मनाते हैं। कुछ लोग इसे अशोक विजय दिवस भी कहते हैं। भारत से ज्यादा इस परम्परा की दिवाली नेपाल, कंबोडिया, बाली द्वीप, दक्षिण कोरिया और जापान में मनायी जाती है। इस दिन बौद्ध लोग मंत्र जपकर भगवान बुद्ध को याद करते हैं। इसी दिन साल 1956 में संविधान निर्माता डॉ. भीम राव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
जैनों और बौद्धों की तरह ही सिख धर्म में भी दीपावली का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। सिख धर्म में दिवाली दो कारणों से मनायी जाती है। एक तो यह कि कार्तिक अमावस्या के दिन साल 1577 में गुरु रामदास जी के हाथों अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था। साथ ही सन 1619 में इसी दिन सिखों के छठवें गुरु, श्री गुरु हरगोविंद जी मुगल बादशाह जहांगीर की जेल में कैद 52 राजाओं को रिहा करा कर बाहर लाए थे। इसके बाद जब श्री गुरु हरगोविंद जी अमृतसर पहुंचे तो देसी घी के दीये जला कर उनका भव्य स्वागत किया गया। तब से सिखों में कार्तिक अमावस्या को रोशनी का पर्व दिवाली मनाने की परम्परा है। सिख धर्म के लोग इस दिन को ‘बंदी-छोड़ दिवस’ के रूप में मनाते हैं। यह दिन सिख समुदाय के लिए स्वतंत्रता, न्याय और गर्व का दिन होता है। इस तरह देखें तो भारत में जन्मे सभी धर्मों में दिवाली का पर्व मनाये जाने की अपनी अपनी वजहें हैं, इसीलिए यह भारत का सबसे बड़ा पर्व कहलाता है।
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