भारतीय कलाओं की आत्मा में बसी है दिवाली

रोशनी का पर्व दिवाली न सिर्फ पारंपरिक कला व सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन है बल्कि इसका सदियों पहले से ही भारतीय कलाओं में जबर्दस्त प्रभाव दिखता रहा है। सच बात तो यह है कि कला के हर क्षेत्र ने दिवाली को अपनी तरह से अभिव्यक्ति का माध्यम माना है और अपनी-अपनी तरह से इसके सौंदर्य को अभिव्यक्त किया है। मसलन भारतीय चित्रकला में दीपावली के पर्व को सौंदर्य, रचनात्मकता और धार्मिकता को एक साथ पिरोकर अभिव्यक्ति की गई है। कुछ ऐसा ही प्रभाव मूर्तिकला और लोककलाओं में भी देखने को मिलता है। संगीत व नाट्य कला की अभिव्यक्तियों में भी दिवाली का प्रभाव जगमगाता है। इसे कुछ इस तरह से देख सकते हैं।
चित्रकला में दिवाली चित्रण
भारतीय चित्रकला में दीपावली का बहुत गहरा प्रभाव है। राजस्थानी मिनिएचर पेंटिंग, मधुबनी कला और कालीघाट पेंटिंग कला तो मानो इस दीप पर्व के सौंदर्य में ही रची बसी हैं। इन सभी चित्रकलाओं में बहुत खूबसूरती से दीपों को चित्रित किया गया है। पारंपरिक लोकाचार और धार्मिक भावनाओं को भी यहां बेहद संवेदना के साथ उभारा गया है तथा इस पर्व को खुशी, उल्लास, विजय, शांति और ज्ञान के प्रतीक रूप में चित्रित किया गया है। राजस्थानी मिनिएचर पेंटिंग में तो दीपावली के दृश्यों की भरमार है। ये दृश्य चटख रंगों से ओतप्रोत और अभिव्यक्तियों की नज़र से बहुत ही जटिल हैं। दीप से जगमगाते घर, आंगन में झिलमिलाती दीपमालिका, लक्ष्मी पूजन, विराट आतिशबाजी और आपस में दीप पर्व का उल्लास बांटते लोग, राजस्थानी मिनिएचर पेंटिंग कला के प्रमुख चित्र हैं। जबकि अगर मधुबनी चित्रकला को देखें तो यहां भी दीपों और देवी लक्ष्मी की आकृतियों को जबर्दस्त तौर पर उकेरा गया है। मधुबनी कला में तो वैसे भी देवी देवताओं की पूजा, घरों के प्रवेशद्वार पर रंगोली और लक्ष्मी पूजन तथा दीपों के सुंदर चित्रण की भरमार देखने को मिलती है। ये सब प्रतीक चित्रण दीपावली को ही समर्पित हैं। अगर चित्रकला में विशेष स्थान रखने वाली कालीघाट पेंटिंग की बात करें तो इस पेंटिंग कला में भी देवी लक्ष्मी और काली की पूजा को केंद्र माना गया है तथा इस कला का सर्वाधिक चित्रण भी दीपावली के आसपास होता है ताकि लोग महानिशा की पूजा के लिए ये पेंटिंग्स खरीद सकें। 
लोककला में दिवाली
चित्रकला की तरह ही भारत के विभिन्न क्षेत्रों की लोककलाओं में भी दीपावली का भरपूर प्रभाव देखने को मिलता है। यह तो हम सब जानते ही हैं कि पूरे देश में दिवाली के मौके पर घरों में रंगोली बनाने का विशेष चलन है। पूरे देश में रंगोली बनाये जाने के लिए दिवाली के विभिन्न नयनाभिराम दृश्यों को आधार बनाया जाता है। दिवाली के मौके पर घरों के प्रवेशद्वार पर सजी रंग-बिरंगी रंगोलियों में दीपावाली का पर्व इंद्रधनुषी रोशनियों में झिलमिलाता है। रंगोली को भारतीय संस्कृति में शुद्धता, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इसलिए दीपावली के मौके पर घरों के आंगन, प्रवेशद्वार और बैठकों में अंदर बाहर जो रंगोलियां बनायी जाती हैं, वे दीपोत्सव की ही छटा बिखेरती हैं। रंगोलियां विभिन्न प्रकार के रंगों और प्राकृतिक चीजों, मसलन फूल, पत्तियां, चावल, हल्दी और ऐसी कई दूसरी चीजों के जरिये बनायी जाती हैं। दक्षिण भारत में भी लोककलाओं के रूप में रंगोली का बहुत महत्व है। यहां इसे कोलम कहा जाता है, जो ज्यामितीय आकृतियों और धार्मिक प्रतीकों की समृद्ध परंपरा है। इसी तरह महाराष्ट्र और गुजरात में भी दीपावली के मौके पर रंगोलियां बनाये जाने का खूब चलन है। 
मूर्तिकला में भी जगमगाती है दिवाली
दीपावली का प्रभाव मूर्तिकला में भी खूब देखने को मिलता है। यह अकारण नहीं है कि दिवाली के करीब एक महीने पहले से ही बाजार में देवी लक्ष्मी और गणेश की तरह-तरह की मूर्तियों का अंबार लग जाता है। घरों से लेकर मंदिरों तक लोग अकसर दिवाली के मौके पर पूजा और घर की सजावट के लिए मूर्तियां खरीदते हैं तथा इस मौके पर बिकने वाली मूर्तियों में दिवाली की अदृश्य उपस्थिति को रोम रोम से महसूस किया जा सकता है। टेराकोटा मूर्तियां जो आमतौर पर सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में बनती हैं, उनमें दिवाली का प्रभाव बढ़-चढ़ कर बोलता है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि टेराकोटा मूर्तियों में सबसे ज्यादा देवी लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां बनती हैं, जो कि दिवाली का ही प्रतीक हैं। 
अगर नाट्य और संगीत के क्षेत्र में दिवाली के प्रभाव का आंकलन करें तो यहां पर भी दीपावली को बहुत महत्वपूर्ण पल के रूप में लिया गया है। नाट्य और संगीत पर दीपावली का सांस्कृतिक प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। दीपावली त्योहार के मौके पर अनेक तरह के लोक उत्सव होते हैं, जिनमें सबसे ज्यादा नृत्य और संगीत के कार्यक्रम ही होते हैं, जिनमें दीप जलाने, संगीत की धुन में नाचने, गाने आदि की पृष्ठभूमि में दीपावली का प्रभाव झिलमिलाता रहता है। यहां तक कि आतिशबाजी को भी दिवाली के संदर्भ से जोड़कर प्रस्तुत किया जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में दीपावली के अवसर पर विभिन्न रागों के संगीत कार्यक्रम आयोजित होते हैं। शास्त्रीय कला में भी दीपक राग जैसा अद्भुत राग है, जो दीपावली को ही समर्पित है। लोकनृत्यों के मामले में गुजरात में गरबा और राजस्थान में घूमर जैसे नृत्यों में भी दीपावली की थीम रची बसी होती है। आधुनिक कलाओं में भी दीपावली का प्रभाव फोटोग्राफी और इंस्टॉलेशन आर्ट में अच्छी तरह से दिखता है। कुल मिलाकर भारतीय चित्रकला और इसके विभिन्न दूसरे रूपों में इस रोशनी के उत्सव का भरपूर असर दिखता है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर