सीमा के पार भी है दिवाली के दीयों की रोशनी
धार्मिक तथा सामाजिक दोनों पक्षों से विशेष महत्ता रखने वाला रोशनियों का त्यौहार दिवाली हिन्दू, सिखों, जैनियों, नेपालियों तथा बौद्ध धर्म के अनुयायियों के साथ-साथ मुगल बादशाहों द्वारा भी विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है। अच्छी बात यह है कि यह पवित्र पर्व पिछले कुछ वर्षों से सरहद पार कर इस्लामिक पंथी माने जाते देश पाकिस्तान में भी दस्तक दे चुका है। हालांकि यह अलग बात है कि वहां रह रहे हिन्दू-सिखों को दिवाली पर रोशनी व पूजा-पाठ करने की अनुमति मात्र अपने घरों और धार्मिक स्थलों की चारदीवारी के अन्दर ही है, क्योंकि वहां की सरकार तथा धार्मिक प्रतिनिधियों का मानना है कि हिन्दुओं के खुले तौर पर यह त्यौहार मनाने से वहां रह रहे बहु-गिनती मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं भड़क सकती हैं। परन्तु इसके बावजूद पाकिस्तान के इस्लामाबाद, कराची, रावलपिंडी तथा लाहौर सहित कुछ अन्य शहरों में फिलहाल खानापूर्ति के लिए इस त्यौहार को सरकारी स्तर पर भी मनाना शुरू कर दिया गया है। पाकिस्तान के कुछ सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थानों में दिवाली के अवसर पर देश-विदेश के मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बाकायदा लाहौर के रेस कोर्स पार्क, इस्लामाबाद सेक्रेटेरिएट व कुछ अन्य सरकारी कार्यलयों में रोशनी करके मुस्लिम लड़के-लड़कियों को राम, सीता तथा लक्ष्मण के रूप में मीडिया के रू-ब-रू करके पाकिस्तान के ‘धर्म-निर्पेक्ष देश’ होने का संदेश दिया जाता है।
पाकिस्तान में दिवाली पर सबसे ज्यादा रौनक कराची के हिन्दूवाड़ा क्षेत्र, पंचमुखी हनुमान मंदिर तथा लक्ष्मी नारायण मंदिर में रहती है। पुरानी एम.ए. जिन्ना रोड पर स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर में तो दिवाली से करीब 10 दिन पहले ही गरबा नृत्य के साथ-साथ मंदिर की सजावट का काम शुरू हो जाता है। इस गरबा नृत्य में शामिल होने के लिए बाकायदा कराची के स्थानीय समाचार-पत्रों में विज्ञापन भी दिए जाते हैं। जिसके चलते दिवाली पर मंदिर में वहां के हिन्दुओं की अच्छी रौनक हो जाती है। इस बार दिवाली पर पंचमुखी हनुमान मंदिर तथा कलिफ्टन स्थित गुफा वाले मंदिर में स्थानीय हिन्दुओं के साथ-साथ सिख, मुसलमान, जैनी, बौद्ध तथा पारसी भाई-चारे के लोग भारी संख्या में पहुंचेंगे। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी दिवाली पर कराची की हिन्दू संस्थाओं द्वारा सैकड़ों गरीब व ज़रूरतमंद लड़कियों की सामूहिक शादियां कराई जाएंगी। दिवाली पर कराची के उक्त मंदिरों तथा कुछ स्थानीय हिन्दू आबादी वाले क्षेत्रों में रौशनी करने के साथ-साथ आतिशबाजी भी चलाई जाती है।
करीब 40 लाख की हिन्दू आबादी वाले सूबा सिंध में दिवाली पर भारतीयों जैसा उत्साह तथा जोश तो भले ही देखने को नहीं मिलता, परन्तु सिंध के साधु बेला मंदिर सहित अन्य प्राचीन मंदिरों में दिवाली पर अच्छी रौनक रहती है और खूब आतिशबाजी भी चलाई जाती है। सिंध के हैदराबाद के कोठड़ी क्षेत्र में पूरा वर्ष पर्दे तथा बुर्के में नज़रबंद रहने वाली गुज्जर बिरादरी की हिन्दू औरतों को पूरे वर्ष में मात्र दिवाली के दिन ही वहां के हिंदू समाज द्वारा नई नवेली दुल्हनों की तरह सजने-संवरने की अनुमति होती है। इसलिए वे दिवाली से एक-दो दिन पहले ही हाथों-पैरों पर मेहंदी लगाकर हार-श्रृंगार करना शुरू कर देती हैं। दिवाली तथा उसकी अगली रात गुज्जर बिरादरी की इन औरतों-पुरुषों द्वारा किया जाने वाला उनका पारंपरिक नृत्य देखने के लिए दूर-दूर से पाकिस्तानी तथा पर्यटक यहां पहुंचते हैं। खैबर पख्तूनख्वा सूबे के पेशावर शहर की गोरखेड़ी तहसील के 150 वर्ष पुराने मंदिर में पिछले वर्ष से ही वहां के स्थानीय हिन्दुओं को पूजा अर्चना तथा दीवाली मनाने की अनुमति मिली है। करीब 60 वर्षों तक बंद रहे इस मंदिर को सन् 2011 में पेशावर हाईकोर्ट के निर्देश पर खोला गया है। इस मंदिर में गोरखटड़ी के हिन्दू दिवाली पर पूजा-अर्चना तो शायद करने में कामयाब हो जाएं, परन्तु उन्हें ज्यादा सजावट करने व आतिशबाज़ी चलाने की अनुमति तो हरगिज़ नहीं मिलेगी। विश्व के पुरातन माने जाते पहले 10 शहरों की सूची में शामिल पाकिस्तानी पंजाब के मुल्तान शहर के प्रह्लादपुरी मंदिर में मनाई जाने वाली दिवाली का विशेष महत्व है। यह वही स्थान है, जिस के बारे में माना जाता है कि भगवान विष्णु ने यहीं पर हिरण्यकश्यप का नरसिंह (इन्सान तथा शेर का मिला-जुला रूप) अवतार में प्रकट होकर अंत किया था। हिन्दुओं तथा इस प्राचीन मंदिर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दिवाली से 10 दिन पहले ही इस मंदिर के कड़े सुरक्षा प्रबंध कर दिए गए हैं और मंदिर के भीतर और बाहर हिन्दुओं को मात्र हल्की-फुल्की दीपमाला और रोशनी करने की ही अनुमति दी जाएगी, जबकि वे यहां या अपने घरों में आतिशबाजी बिल्कुल नहीं चला पाएंगे। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के जुड़वां शहर रावलपिंडी में कुछ वर्ष पहले तक चार-पांच मंदिरों में दिवाली मनाई जाती थी, परन्तु अब ज्यादातर मंदिर बंद कर दिए जाने के कारण इस बार मात्र रावलपिंडी के भगवान वाल्मीकि स्वामी मंदिर तथा कृष्ण मंदिर में ही दिवाली मनाई जाएगी। उक्त मंदिरों के पंडित चन्ना लाल का कहना है कि हर वर्ष उक्त मंदिरों में दीपावली पर श्री गुरु नानक देव जी तथा माता लक्ष्मी जी की पूजा के साथ-साथ मंदिरों के प्रांगण में स्थानीय हिन्दू लड़कियों द्वारा खूबसूरत रंगोली भी बनाई जाती है जिसकी रंगदार तस्वीर दिवाली के अगले दिन प्रमुख पाकिस्तानी समाचार पत्रों के प्रथम पृष्ठ का श्रृंगार बनती है।
लाहौर में विगत कुछ वर्षों से रावी रोड स्थित कृष्ण मंदिर तथा पुरानी अनारकली आबादी के नीला गुंबज स्थित भगवान वाल्मीकि मंदिर की चारदीवारी के भीतर ही दिवाली मनाई जाएगी। कृष्णा मंदिर में दिवाली समारोह की शुरुआत भजनों तथा आरती के साथ करते हुए समाप्ति हिन्दी फिल्मों के गीतों पर गरबा नृत्य करते हुए की जाएगी। इस समारोह में पाकिस्तान मुस्लिम लीग, औकाफ बोर्ड, ई.टी.पी.बी. के अधिकारी तथा स्थानीय क्रिश्चियन तथा सिख नेता भी विशेष तौर पर शामिल होंगे। इस अवसर पर पाकिस्तान ई.टी.पी.बी. द्वारा लंगर का भी विशेष प्रबंध किया जा रहा है। पाकिस्तान में दिवाली, बैसाखी, होली आदि त्योहारों की शुरुआत किया जाना एक सुखद समाचार है, जो आने वाले समय में ज़रूर पाकिस्तान की इस्लामिक कट्टरपंथी वाली बन चुकी छवि को नया रूप देने में सहायक साबित हो सकता है।
-अजीत उप-दफ्तर अमृतसर
मो. 9356127771