लपक कर खाओ सिस्टम

मिश्रा जी के बेटे की शादी के प्रीतिभोज का निमंत्रण पत्र मिला। कार्ड पर परंपरागत रूप से छपा था, ‘भेज रहा हूं नेह निमंत्रण प्रियवर तुम्हें बुलाने को, हे मानव के राजहंस तुम भूल ना जाना आने को।’ मैं ताड़ गया कि यह राजहंसो को नहीं, बल्कि गिद्धों को घमासान के लिए बुला रहे हैं। 
खैर मैं गिद्धभोज के दिन तैयार हुआ। नया सूट पहनकर टाई लगाकर। साथ में रुमाल भी ले लिया ताकि कपड़ों पर गिरे रायते को ये कुछ तो सोख ही ले।
अपने स्कूटर को स्टार्ट करके मैं जंग में लड़ने वाले सिपाही की तरह मोर्चा संभालने के लिए रवाना हुआ। जब मैं सीमा पर पहुंचा तो गेट पर ही मिस्टर एंड मिसेस मिश्रा परंपरागत रूप से मुझे हाथ जोड़े मिल गए। उनके चेहरे पर कृत्रिम मुस्कुराहट थी लेकिन नज़रें मेरे हाथ में पकड़े हुए गिफ्ट पर थी।
थोड़ा वार्तालाप करके मैं भीड़ में आगे बढ़ा। स्टेज पर वर वधु के पास गिनती के दोस्त और रिश्तेदार ही थे। एक और शेयर मार्किट जैसी भीड़ दिखाई दी। मैं समझ गया कि यही प्रीतिभोज वाला पंडाल है। भीड़ की धक्का-मुक्की से कुछेक रणबांकुरे फाइबर की प्लेट में कुछ छोले, मटर-पनीर, दाल-मखनी जैसी चीज निकालकर लाने में सफल हो रहे थे। मेरी उस बाधा सीमा पर जाने की हिम्मत नहीं हुई। मिश्रा जी आए और कहने लगे, ‘गुप्ता जी, बिना भोजन किए नहीं जाएंगे आप।’ मैं मन ही मन सोचने लगा कि घर से हनुमान चालीसा ले आता तो पाठ करके आगे बढ़ने की हिम्मत जुटा लेता।
मैं गिफ्ट दे चुका था, इसलिए ठान लिया कि अब भोजन करके ही जाऊंगा। हिम्मत करके आगे बढ़ा तो भीड़ ने दो बार धकियाकर मुझे बाहर कर दिया। नए छोकरों ने टेबलों पर कब्ज़ा जमा लिया था। मैं धक्का-मुक्की करते हुए आगे बढ़ने लगा। एक मोटी सी महिला प्लेट में लबालब व्यंजन भरे वहीं खड़ी होकर पगुरा-पगुरा खा रही थी। मेरी कोहनी उसकी प्लेट को लगी और अगले ही क्षण उसकी प्लेट मेरे सूट पर पलट गई। मैंने डर के मारे उसे ‘सॉरी’ बोला। इस पर मेरी सूरत देखकर वह महिला मुझ पर खी-खी करके हंसने लगी। आखिर सूट तो दूसरे का बर्बाद हुआ था ना। मैंने हिम्मत ना हारी। आखिरकार खाने की टेबल तक पहुंच ही गया। इतने डोंगे देखकर मैं अर्जुन की भांति भ्रम में पड़ गया, क्या-क्या खाएं, क्योंकि एक बार यहां से निकलने के बाद दोबारा आना हिमालय पर्वत की चोटी पर पहुंचने के समान था। रायते के डोंगे में चम्मच नहीं था, उसके चम्मच से वीर पुरुष दमआलू से अपनी प्लेट भर रहे थे। 
मैं भी प्लेट भर कर विजयी मुद्रा में बाहर निकलने को जैसे ही घूमा, एक बच्चा मेरी टांगों के बीच आ गया। मैं लड़खड़ाया तो मेरी प्लेट से जो छोले बाहर झांक रहे थे, वे एक सजी-धजी महिला के लहंगे पर  गिरे। उस महिला ने अपनी भाव-भंगिमाओं को तरेरा। जब तक वह दुर्गा मां से चंडी का रूप धारण करती, मैं तेजी से बाहर की ओर खिसक गया। ‘जान बची तो लाखों पाए’ कहते हुए मैं ईश्वर को धन्यवाद दिया। प्लेट पर नज़र मारी तो सारी सब्जियीन, पूरियां, नान एक-दूसरे से मिलकर मजबूत गठबंधन बना चुके थे। एक तो हलवाइयों ने इतने मसाले डाल रखे थे कि सब्जी का स्वाद ही विलुप्त हो चला था। वहां पर ‘सब्जी पहचानो प्रतियोगिता’ भी आयोजित की जा सकती थी। ऊपर से प्लेट में सभी सब्जियां जब एक-दूसरे के ऊपर चढ़ गई तो मुझे पता ही नहीं चला कि आखिर मैं खा क्या रहा हूं।
आगे आने वाले समय में हमारी पीढ़ियां और एडवांस हो जाएगी, तब भोजन पंडाल से एक-एक पूरी-सब्जी भीड़ की ओर उछाली जाया करेगी और भीड़ उसे लपक-लपक कर खाएगी। जल्दी ही ‘लपक कर खाओ सिस्टम’ आने वाला है।
घर जाकर मैंने अपनी श्रीमती जी से कहा कि अपने साहबजादे को क्रिकेट की प्रेक्टिस कराओ। कैच पकड़ना सीख जाएगा तो ‘लपक कर खाओ सिस्टम’ में पेट भरकर खाएगा। मेरी तरह भूखा नहीं लौटेगा।

मो- 7007224126 

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