थंजावुर में है बनारस की सुबह जैसा आनन्द

चोल वैभव से लेकर नायकों व मराठों की विरासत तक, हर कोना सांस्कृतिक शाहकार की एक कहानी सुना रहा था। मैं थंजावुर में था। क्यों? इसके इतिहास या इसके आर्किटेक्चर या इसके स्थानीय स्वाद के लिए या इन सबके मिश्रण के लिए। जो भी हो, थंजावुर का खुमार ज़िंदगीभर रहने वाला है, ऐसा मुझे यकीन हो गया है। तिरुचिराप्पल्ली एयरपोर्ट से थंजावुर पहुंचने में मुझे टैक्सी से एक घंटा लगा था। अगर आप चेन्नई से ड्राइव कर रहे हैं, तो यहां पहुंचने में आपको लगभग छह घंटे का समय लगेगा। मैं स्वात्मा में ठहरा, जो एक हेरिटेज होम है, जिसे लक्ज़री होटल में तब्दील कर दिया गया है, चोल-शैली के कांस्यों के साथ और इसका स्विमिंग पूल मंदिर सरोवर की याद दिलाता है। इसके अतिरिक्त तंजोर में 1920 का विला है, जिसे बुटीक होटल में तब्दील कर दिया गया है और इसमें तमिलनाडु खानपान की शैली के व्यंजन मिलते हैं। बहरहाल, मैंने फ्रेश होने के बाद थंजावुर की विशिष्ट फिल्टर कॉफी के साथ क्रिस्पी रवा डोसा का आनंद लिया। अगर मेरा यह लेख पढ़ने के बाद आपका भी मन थंजावुर जाने का करे, जो मेरे ख्याल में ज़रूर करेगा, तो मैं आपको बता दूं कि इस शहर की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय अक्तूबर से फरवरी तक का है, तब यहां का मौसम बहुत खुशगवार रहता है। 
एक सवाल आपके मन में आ रहा होगा कि थंजावुर की सुबह बनारस की सी होती है या शाम अवध की सी? अगर आप भारत के सबसे सुंदर मंदिर के वैभव को हमेशा के लिए अपनी आंखों में कैद करना चाहते हैं, तो मेरा सुझाव है कि आप पौ फटने का अलार्म लगायें ताकि मंदिर पर पड़ रहीं सूरज की पहली किरणों का दर्शन कर सकें। स्थानीय लोग इसे थानजई पेरिया कोविल (थंजावुर का बड़ा मंदिर) कहते हैं। बृहदेश्वर मंदिर पहला ‘जीवित’ मंदिर है, जिसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज का टैग मिला, लगभग 40 वर्ष पहले। वर्तमान दशक में इस आर्किटेक्चरल शाहकार के लिए मणिरत्नम की पोंनियिन सेल्वन (पीएस) फिल्मों के कारण दिलचस्पी की नई लहर देखने को मिल रही है। 
दरअसल, पीएस फ्रैंचाइज़ी भारत के पहले राजवंश- चोल को समर्पित है। चोल साम्राज्य 11वीं शताब्दी तक दक्षिण व पूर्वी भारत तक तो फैला हुआ ही था, लेकिन साथ ही इसमें मालदीव व इंडोनेशिया के भी काफी हिस्से शामिल थे। चोल भारत के केवल सबसे मज़बूत राजवंश ही नहीं थे बल्कि वह अपने प्रेरणादायक आर्किटेक्चर के लिए भी विख्यात थे। बृहदेश्वर मंदिर इस विरासत का जीता जागता सबूत है। इस मंदिर का निर्माण चोल राजाओं में सबसे विख्यात राजा, राजा चोल ने कराया था और इसे बनने में 8 वर्ष का समय लगा। यह 1010 सीई (सामान्य युग) में मुकम्मल हुआ था।
इस मंदिर को बनाने में कुल 60,000 टन ग्रेनाइट लगा। इतिहासकार व आर्किटेक्टस असमंजस में हैं कि इस ग्रेनाइट को ट्रांसपोर्ट कैसे किया गया था, जबकि ग्रेनाइट का ज्ञात निकटतम स्रोत लगभग 60 किमी के फासले पर है। यह मंदिर अपने गुम्बद के लिए विख्यात है, जो लगभग 80 टन का है और एक ही ब्लॉक से तराशा गया है। इसके अतिरिक्त मंदिर के प्रवेशद्वार पर नंदी की मूर्ति भी शोस्टोपर है, जो 6 फीट लम्बी व 13 फीट ऊंची है और वह भी एक ही ब्लॉक से तराशी गई है। मंदिर में सुंदर नक्काशी व शिलालेख हैं। हालांकि मंदिर में दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय सूरज के उगने के साथ ही है, लेकिन जब शाम को सूरज डूब रहा हो तब भी मंदिर बहुत शानदार दिखता है।
राजा चोल के बेटे राजेंद्र चोल-1 ने 1014 में गद्दी संभाली और चोल साम्राज्य को अतिरिक्त मज़बूत किया। उन्हें गंगईकोंडा चोल का खिताब मिला (यानी गंगा को लाने वाला) जब उन्होंने एक महत्वपूर्ण युद्ध में पाल को पराजित करके अपने राज्य का उत्तर में विस्तार किया। राजेंद्र चोल-1 ने 1025 में नई राजधानी स्थापित की और बृहदेश्वर नाम से ही एक अन्य मंदिर का निर्माण कराया। गंगईकोंडा चोलपुरम अब एक सोता हुआ गांव है, जो थंजावुर से लगभग 90 मिनट के फासले पर है। इस गांव के महान चोल मंदिर के भी दर्शन अवश्य करने चाहियें। यह 180 फीट ऊंचा है। मेरी राय है कि गंगईकोंडा चोलपुरम की यात्रा शाम के समय करनी चाहिए जब सूरज डूब रहा हो। 
हज़ार बरस से अधिक का समय गुज़र गया है, लेकिन आज भी चोल विरासत थंजावुर को परिभाषित कर रही है। थंजावुर अनुभव का अंत बृहदेश्वर मंदिर से नहीं हुआ। चोल के बाद नायकों व थाजवुर मराठों ने अपनी छाप छोड़ी। थंजावुर तमिलनाडु का सांस्कृतिक व आर्किटेक्चरल हब है, जो राज्य के मंदिरों, कर्नाटिकी संगीत, भरतनाट्यम व व्यंजनों के चर्चित प्रतीकों को आपस में जोड़ता है। एशिया के सबसे पुराने पुस्तकालय में से एक सरस्वती महल की स्थापना 16वीं शताब्दी में नायकों ने की थी और इसे सर्फोजी-2 का संरक्षण प्राप्त रहा, जोकि अंतिम महान थंजावुर मराठा राजा थे। इस पुस्तकालय में अनेक दुर्लभ पांडुलिपियां हैं और शाही रसोई की पाक कला का विस्तृत विवरण भी है। मेरी राय में आप किसी थंजावुर वीणा बनाने वाले के पास भी जाएं, जो हाथ से वीणा बनाते हैं और एक वीणा बनाने में लगभग 15 दिन का समय लगता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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