पैरा आर्चरी वर्ल्ड चैम्पियनशिप
हाथ रहित शीतल ने रचा इतिहास
शीतल देवी ने मात्र 18 वर्ष की आयु में इतिहास रच दिया है। वह पहली हाथ-रहित महिला हैं, जिन्होंने कंपाउंड आर्चरी के व्यक्तिगत वर्ग में विश्व चैंपियनशिप का स्वर्ण पदक जीता है। यह कारनामा उन्होंने ग्वांगजू में आयोजित पैरा वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप्स में 27 सितम्बर, 2025 को किया। जम्मू-कश्मीर की यह तीरंदाज़ प्रतियोगिता में एकमात्र प्रतिस्पर्धी है, जिसके हाथ नहीं हैं और निशाना लगाने के लिए वह अपने पैरों व ठोड़ी का प्रयोग करती हैं। गौरतलब है कि शीतल से पहले इस स्तर पर केवल एक हाथ-रहित आर्चर ने गोल्ड जीता है और वह अमरीका के मैट शुटज़मैन थे, जो 2022 दुबई वर्ल्ड चैंपियनशिप्स में पोडियम के टॉप पर खड़े हुए थे। शीतल ने इतिहास पुस्तकों में एक नया अध्याय उस समय जोड़ा, जब उन्होंने तुर्की की विश्व की नंबर 1 खिलाड़ी ओज्नुर करे गिरदी को 146-143 से पराजित करके गोल्ड हासिल किया।
इससे पहले शीतल ने मिश्रित टीम कंपाउंड में टोमन कुमार के साथ कांस्य पदक और महिला ओपन टीम मुकाबले में सरिता के साथ रजत पदक भी जीता था। टोमन कुमार ने पुरुषों के व्यक्तिगत कंपाउंड वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। इसी वर्ग में रजत पदक भारत के ही राकेश कुमार को मिला। लेकिन इस वर्ग में भारत क्लीन स्वीप न कर सका, क्योंकि कांस्य पदक के प्ले-ऑ़फ में श्याम सुंदर स्वामी ग्रेट ब्रिटेन के नाथन मैकक्वीन से हार गये। भारत ने दो स्वर्ण, दो रजत व एक कांस्य के साथ कुल पांच पदक जीते। शीतल बहुत संघर्षों के साथ इस म़ुकाम तक पहुंची हैं, जिसे समझने के लिए थोड़ा अतीत में जाने की आवश्यकता है। मान सिंह व शक्ति देवी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वह जल्द से जल्द स्पोर्ट्स फिजियोथैरेपिस्ट श्रीकांत अयंगर से यह जानना चाहते थे कि उनकी बेटी शीतल देवी प्रोस्थेटिक आर्म्स से किसी हद तक सामान्य जीवन व्यतीत कर पायेगी या नहीं।
यह 25 अगस्त 2021 की बात है, बेंग्लुरु शहर में, दोनों नई चूड़ियां भी लाये थे, शीतल के कृत्रिम अंगों पर पहनाने के लिए। अपने हाथों में चूड़ियों का सपना शीतल बचपन से देख रही थी। लेकिन अ़फसोस! लोईधार गांव (जम्मू के किश्तवार ज़िले में) की शीतल फोकोमेलिया के साथ पैदा हुई थीं, जोकि एक ऐसी दुर्लभ जन्मजात अपंगता है, जिसमें हाथ अविकसित रहते हैं। लेकिन दुखी करने वाली खबर मिली। प्रोस्थेटिक आर्म्स और सॉकेट्स फिट नहीं हुए और उन्हें तुरंत निकालना पड़ा। हर कोई उदास व निराश हो गया। उस रात परिवार का कोई सदस्य सो न सका। नींद प्रीति राय की भी उड़ गई थी। वह बेंग्लुरु-स्थित कहानी सुनाने वाले स्टार्टअप बीइंग यू की संस्थापक हैं। वह शीतल से 2021 में मिली थीं और उन्होंने अपने ऊपर यह ज़िम्मेदारी ले ली थी कि पैरा-आर्चर शीतल स्वयं अपने हाथों में चूड़ियां पहन सकेंगी और वह इस संदर्भ में उसकी मदद करेंगी।
शीतल ने बताया, ‘मुझे कितना बुरा लगा था, मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती। जब प्रोस्थेटिक आर्म्स को हटाया गया, तो मुझे लगा जैसे मेरे सपनों को मुझसे छीन लिया गया है। मैं कंगन इस उम्मीद में लेकर आयी थी कि मैं एक दिन उन्हें पहन सकूंगी। मुझे अपनी मां व बहन की तरह सामान्य जीवन चाहिए था। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मेरे पैरेंट्स और प्रीति दीदी मेरे साथ मज़बूत स्तंभ बनकर खड़े रहे और उस दुखद अनुभव से निकलने में मेरा सहयोग किया। मुझे खेल के मैदान में अपनी नई पहचान मिली, जब अयंगर के सुझाव पर मेरा पैरा आर्चरी से परिचय कराया गया।’ शुरू में शीतल को अपने पैरों से कमान उठाना बहुत कठिन लगा (यह तकनीक विख्यात हाथ-रहित तीरंदाज़ मैट शुटज़मैन से प्रेरित है)। तीर व कमान को हैंडल करना आसान नहीं था, लेकिन अपने कोचों अभिलाषा चौधरी व कुलदीप वेदवान की गाइडेंस में उन्होंने किसी तरह से यह कर दिखाया।
शीतल से कहा गया था कि वह तीन खेलों में कोशिश कर सकती हैं- तैराकी, दौड़ व तीरंदाज़ी लेकिन उन्होंने आर्चरी को चुना क्योंकि वह अपने घर के काम अपने पैरों से किया करती थीं। एक साल के भीतर ही शीतल ने दुनिया को दिखा दिया कि वह क्या कुछ करने की क्षमता रखती हैं। 2023 में चीन में अपने पहले पैरा एशियन गेम्स में उन्होंने दो स्वर्ण पदक व एक रजत पदक जीते और इसके बाद पैरा एशियन चैंपियनशिप्स में भी उन्होंने दो स्वर्ण पदक जीते। आज वह महिलाओं के ओपन कंपाउंड सेक्शन में विश्व की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में गिनी जाती हैं। शीतल टीचर बनना चाहती थीं। उन्होंने स्पोर्ट्स के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं था क्योंकि वह बचपन से ही अपंग थीं। अपने जीवन के पहले 14 वर्षों के दौरान शीतल का लक्ष्य किसी स्कूल में टीचर बनने का था। लेकिन चीज़ें तेज़ी से बहुत नाटकीय अंदाज़ में बदलीं, जब उनका परिचय पैरा आर्चरी से कराया गया।
सब किस्मत में लिखा था और वह अपनी कॅरियर चॉइस से प्रसन्न हैं। अब वह अपने किसान पैरेंट्स की आर्थिक मदद करने की स्थिति में है। शीतल कहती हैं, ‘अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने देश का प्रतिनिधित्व करने से बढ़कर कोई खुशी नहीं होती है। मैं अपंग व्यक्तियों से कहना चाहती हूं कि वह खुद को किसी से कमतर न समझें। शुरू में मुझे भी अच्छा नहीं लगता था कि लोग मुझे घूरते थे और मेरी अपंगता की हंसी उड़ाते थे। अब वही लोग मेरी तारीफ करते हैं और मेरी यात्रा को स्वीकार करते हैं।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर