समाज में पुनर्जागरण के प्रवर्तक महर्षि वाल्मीकि
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी का जीवन मानवता हेतु ऊंचा उठने की एक ऐसी मिसाल है, जो हर किसी को पौरुष के बल पर स्वयं को किसी भी हद तक ऊपर उठने की प्रेरणा देता है। एक दिव्य प्रेरणा के चलते उन्होंने ईश्वर की तपस्या का कठिन मार्ग अपनाया और अपने समूचे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। उनका यह बदलाव दुनिया के हर प्राणी मात्र के लिए सहज प्रेरणा है कि मनुष्य अपने कर्मों और दृढ़ मान्यताओं से स्वयं में किसी भी हद तक ऊपर उठ सकता है। रामायण के रचयिता, संस्कृत साहित्य के आदिकवि वाल्मीकि वह महाप्रभु हैं, जिन्होंने हिंदू धर्म और संस्कृति को कर्त्तव्य, नैतिकता, अनुशासन और आदर्श की शिक्षाएं दीं। उनके प्रकटोत्सव का धार्मिकता के साथ साथ बहुत ज्यादा सामाजिक महत्व भी है। महर्षि वाल्मीकि के जीवन की प्रेरणाओं का महत्व सबसे ज्यादा है।
हर साल महर्षि वाल्मीकि जयंती देश के ज्यादातर हिस्सों में खूब धूमधाम से मनायी जाती है। इस साल यह 7 अक्तूबर 2025 को मनाई जा रही है। इसी दौरान महर्षि वाल्मीकि जयंती से संबंधित पूजा, पाठ तथा विभिन्न कार्यक्रम सम्पन्न होंगे। महर्षि वाल्मीकि जयंती हम सबको अपने आपको किसी भी स्तर तक बदल सकने की क्षमता की प्रेरणा देती है। उनकी जयंती समाज में भाईचारा, सहअस्तित्व और सामाजिक न्याय की भावना को भी प्रोत्साहित करती है। वाल्मीकि जयंती के अवसर पर विशिष्ट वाल्मीकि मंदिरों में रामायण का पाठ, स्तुति गीत, भजन, ध्यान व पूजा अनुष्ठान के ज़रिये महर्षि वाल्मीकि को आदरपूर्वक याद किया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब भगवान राम ने सीता जी को बनवास भेजा था, तब वह महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही रही थीं या कहें कि उन्हें महर्षि वाल्मीकि ने ही आश्रय दिया था और उनके पुत्रों लव व कुश को शिक्षित, दीक्षित महर्षि वाल्मीकि ने ही किया था। इसी वजह से आज भी वाल्मीकि आश्रमों का बड़ा धार्मिक और सामाजिक महत्व है।
वाल्मीकि जयंती वह अवसर है, जो देश और समाज के सभी समुदायों को विभिन्न सामाजिक अभियानों और अपने सामाजिक उत्थान के लिए प्रेरित करता है। भारत में इस दिन सभी प्रदेशों में महर्षि वाल्मीकि जयंती के अनेकानेक कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं। महर्षि वाल्मीकि की धार्मिक, आध्यात्मिक पहचान को व्यक्त करने का वाल्मीकि जयंती सबसे उपयुक्त दिन होता है। इससे सामाजिक समरसता बढ़ती है और विभिन्न तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सार्वजनिक जीवन प्रेरित होता है। वाल्मीकि जयंती विभिन्न तरह की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के ज़रिये सम्पन्न होती है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा और अलंकरण गतिविधियां सम्पन्न होती हैं, विशेष रूप से वाल्मीकि मंदिरों को फूलों, दीपों और रंगोलियों से सजाया जाता है। महर्षि वाल्मीकि की विशेष आरती सम्पन्न होती है और उनकी स्तुति के गीत गाये जाते हैं। इस दिन रामायण का पाठ और भजन, कीर्तन भी होते हैं।
देश के कई भागों में इस दिन या एक दिन पूर्व महर्षि वाल्मीकि जी की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इस शोभायात्रा में महर्षि वाल्मीकि की मूर्ति, उनके जीवन से संबंधित झांकियां और कवि-पत्रक प्रदर्शित किये जाते हैं। इस दौरान गरीबों और ज़रूरतमंदों को भोजन वितरित किया जाता है तथा उन्हें कपड़े आदि का दान भी दिया जाता है। इस अवसर पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कवि सम्मेलन, नाटक, संगीत, नृत्य कार्यक्रम, बालकों द्वारा रामायण नाटक आदि का आयोजन होता है। विद्यालयों, आश्रमों और विभिन्न सामाजिक संगठनों के दफ्तरों में इस दिन महर्षि वाल्मीकि जी के शिक्षा देने वाले कई कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं। महर्षि वाल्मीकि के जीवन, उनकी प्रसिद्ध रचना रामायण आदि पर धार्मिक आख्यान भी प्रस्तुत किए जाते हैं। महर्षि वाल्मीकि के अनुयायी जप, तप और साधना के जरिये उनका स्मरण करते हैं और उनके प्रकटोत्सव पर व्रत रखकर संकल्प लेते हैं कि वे उनके कदमों पर चलेंगे।
वाल्मीकि जयंती के दिन अमृतसर के राम तीर्थ स्थल पर विशेष रूप से महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनायी जाती है। माना जाता है कि उनके इस आश्रम राम तीर्थ में वह न केवल तपस्वी जीवन में रहते थे बल्कि यहीं पर उन्होंने माता सीता जी को आश्रय दिया था। यहां आज उनकी 8 फीट ऊंची सोने की पट्टिका वाली मूर्ति सजी है और हर साल आश्विन पूर्णिमा की तिथि पर जब महर्षि वाल्मीकि जयंती सम्पन्न होती है, देश-विदेश से हजारों लोग यहां उनके दर्शन के लिए आते हैं। इसी तरह चेन्नई में तिरुवन्मियूर वाल्मीकि मंदिर के बारे में माना जाता है कि यह 1300 साल पुराना मंदिर है। इस तरह पूरे देश में महर्षि वाल्मीकि जयंती उनके आदर्शों के अनुकरण की भावना से ही मनायी जाती है।
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