दाल मूंग, पत्नी मूक अच्छी होती हैं

कहते हैं और सुना-पढ़ा भी है कि दाल मूंग और पत्नी मूक यानि गूंगी के बहुत फायदे होते हैं। मूंग की दाल हम भारतीयों में बहुत लोकप्रिय है। प्रत्येक भारतीय इसे बहुत चाव से खाता है। जो सच्चे भारतीय अर्थात् सच्चे राष्ट्रवादी हैं, वे और अधिक चाव से इसे खाते हैं। मूंग की दाल, तुलसी की तरह ही हमारी संस्कृति का हिस्सा है और ये दोनों हमारी राष्ट्रीय पहचान का अंग हैं। जहां तुलसी में अनेक औषधीय गुण होते हैं, वहीं मूंग की दाल में भी कई खुराकी तत्व मौजूद होते हैं। यह जल्दी पच जाती है अर्थात् यह दाल सुपाच्य होती है। किसी की किसी के साथ और किसी किस्म की दाल भले ही न गले। अपितु मूंग की दाल जल्दी गल जाती है, पक जाती है। किसी पति की अपनी झगड़ालू, लड़ाकू, मुंहफट, बड़बोली पत्नी से आसानी से दाल नहीं गलती है। किन्तु जिस भाग्यशाली पति की पत्नी मूक हो, उसकी अपनी पत्नी से दाल अवश्य गलती है यानि अच्छी-खासी पटती है। अगर मूंग की दाल में चावल मिलाकर खिचड़ी पकाई जाए तो बात सोने पर सुहागा जैसी हो जाती है। ऐसी पकी हुई खिचड़ी में अनेक पौष्टिक तत्व होते हैं। मूक पत्नी दाल मूंग की तरह बहुत अच्छी तो होती ही है। साथ में अगर वह बीधर भी हो, तब बेचैनी व परेशानी जैसी कोई बाधा सफल गृहस्थी जीवन में कतई उत्पन्न नहीं होती। शांति ही शांति होती है। जो बातूनी व मुंहफट पत्नियां होती हैं, वे अपने-अपने पति की कोई बात कम ही सुनती हैं, कहती ज्यादा हैं। वे बोलने का, लताड़ने-पछाड़ने का और गालियां व उलाहने देने का कोई भी सुनहरी मौका हाथ (जुबान) से जाने नहीं देतीं। जैसे नेता व नेत्रियां एक-दूसरे को चुन-चुन कर गालियां व ताने देते व देती हैं। ठीक इसी तरह बीवियां इतनी लम्बी-लम्बी गालियां देती हैं कि बेचारे शौहरों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। लगे हाथ  ऐसी बीवियां अपने शौहरों के परिजनों की भी चुनी हुई गालियों से अच्छी तरह खातिरदारी कर देती हैं। चुनाव के दौरान नेता लोग एक-दूसरे को देने के लिए गालियों का चुनाव धड़ल्ले से करते हैं। मतदाता तो चुनाव के दिन ही अपने मनपसंद उम्मीदवारों का चुनाव करते हैं और जो चुने हुए नेता लोगों की भलाई के लिए काम नहीं करते हैं, उन्हें फिर अगले चुनाव तक लोगों की जली-कटी सुननी पड़ती है। गालियां सुननी पड़ती हैं। मुंहफट तथा झगड़ालू पति अपनी सीधी-सादी, भोली-भाली पत्नियों के नाक में दम कर देते हैं। उनके मन का चैन छीन लेते हैं। उन्हें कुछ बोलने नहीं देते। बस, अपनी कहते हैं। धौंस व रुआब जमाते हैं। उनकी पत्नियां आहें भरती हुई मन ही मन कहती हैं, ‘काश! ये ‘मेरे’ सीधे-सादे होते। मूक होते।’
 जैसे मूंग में विटामिन ए., बी., सी., और ई. की भरपूर मात्रा होती है, उसी तरह मूक पत्नी में खामोशी, शांति, मौन आदि के विटामिन... सॉरी गुण भरपूर मात्रा में होते हैं। अगर मूंग की दाल में पोटैशियम, लोह तत्व, कैल्शियम की मात्रा बहुत होती है, तो मूक पत्नी में संयम, गम्भीरता वगैरह की मात्रा बहुत मात्रा में होती है। सेवा-भावना भी बहुत होती है। भड़काने  व धमकाने का काम भी वह नहीं करती है। पंचम स्वर में कुछ कहने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता, वह तो धीमे स्वर में भी कुछ नहीं कहती। बड़-बड़ करने की बात तो दूर रही, वह फुसफुसाती भी नहीं हैं। कड़वी व कठोर बातों का इस्तेमाल हथौड़े की चोटों सरीखा नहीं करती। कड़वी, तीखी तथा नुकीली व ज़हरबुझी बातों से हृदय में घाव नहीं करती है। सीना छलनी नहीं करती हैं। मूक महिला के साथ सात फेरे लेने से आदमी यानि पुरुष पुलिस, महिला मंडल, वकीलों, कचहरी आदि के चक्कर पे चक्कर लगाने से बच जाता है। ‘तलाकशुदा’ होने का मैडल गले में लटकाने से बच जाता है। एक-दूसरे को बुरा-भला कहने वाले, कटु व तीखी बातों से जमकर लड़ाई-झगड़ा करने वाले दम्पतियों में तलाक तक हो जाता है। मूक पत्नी मिलने पर ‘न होगा बांस, न बजेगी बांसुरी’ जैसी बात बन जाती है। शऱीफ व सुशील महिलाओं को भी मूक पुरुषों के साथ फेरे लेने चाहिए। वे बेहद सुखी रहेंगी।

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