सराहनीय कदम

अब केन्द्र सरकार द्वारा 312 सिखों के नाम काली सूची से हटाये जाने के ऐलान का बड़ा स्वागत हुआ है। लगभग गत 35 वर्षों से केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने ऐसी सूचियां बनाने का कार्य जारी रखा हुआ है। इसलिए अलग-अलग देशों में भारतीय उच्चायुक्तों द्वारा भेजी जाती सूचनाओं को ही आधार बनाया जाता रहा है। समय-समय पर होती घटनाओं के आधार पर ही यह सूचियां बड़ी होती गईं। कनिष्क विमान हादसा और पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के मारे जाने के बाद भी इन सूचियों में नामों का इजाफा किया जाता रहा। परन्तु इसके साथ ही समय-समय पर इनमें संशोधन भी किया जाता रहा है। इसलिए भी भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों की रिपोर्टों को ही आधार बनाया जाता रहा है। परन्तु इन सूचियों में मौजूद नामों का विवरण कभी पूरे विस्तार से सामने नहीं आया, न ही इनमें शामिल किए गए नामों के कारणों संबंधी कभी सही उत्तर मिल सका है। शिरोमणि अकाली दल द्वारा भी यह मामला समय-समय पर केन्द्र के पास उठाया जाता रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय केन्द्र में सुखदेव सिंह ढींडसा के मंत्री होते हुए भी इसकी चर्चा बनीं रही थी। अब बयान की गई काली सूची में अधिकतर वह नाम ही शामिल रहे हैं, जो आपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख विरोधी दंगों के विरुद्ध रोष प्रकट करते रहे हैं और कुछ नाम विदेशों में खालिस्तान की लहर से जुड़े व्यक्तियों के नाम भी इस सूची में शामिल हैं। 80-90 के दशक में बहुत से लोगों ने अलग-अलग देशों में राजनीतिक शरण ली थी, इसलिए इनके द्वारा कई ढंग-तरीके भी अपनाये गये थे। परन्तु उनमें से अधिकतर के नाम काली सूची में शामिल होने के कारण वह भारत में नहीं आ सकते थे और न ही यहां अपने समाज से जुड़ सकते थे। समय बीतने से हालात बदलते गए। इन काली सूचियों के नामों की चर्चा होती रही। इनको जांचा-परखा भी जाता रहा। अलग-अलग समय पर बहुत सारी पार्टियों द्वारा केन्द्र सरकार पर इन सूचियों को खत्म करने के लिए भी जोर डाला जाता रहा। यहां तक कि कुछ समय पूर्व कैप्टन अमरेन्द्र सिंह भी केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को इन सूचियों संबंधी मिलकर आए थे। काफी समय बीतने और हालात सुधरने के कारण प्रत्येक स्तर पर जांच-पड़ताल करने के बाद पहले बनाई गई काली सूची में से 312 सिखों के नाम निकाल दिए गए हैं। हम केन्द्र सरकार के इस कदम की प्रशंसा करते हैं, जिसने ऐसा साहसिक और स्पष्ट कदम उठाया है। सिख क्षेत्रों में भी इसकी बड़ी प्रशंसा हुई है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह, सुखबीर सिंह बादल, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष भाई गोबिंद सिंह लौंगोवाल, प्रो. कृपाल सिंह बडूंगर के अलावा अन्य बहुत सारे अलग-अलग वर्गों के सिख नेताओं ने इस ऐलान का स्वागत किया है। हम यह महसूस करते हैं कि ऐसा किये जाने से हालात में और भी सुधार आयेगा और धरती से तीन दशक से भी अधिक समय तक बिछड़े लोगों के लिए यह एक बड़ी भावुक राहत होगी। पंजाब लगभग दो दशक तक जिस काले दौर से गुजरा था, उसकी याद आज भी ताज़ा है। उसकी पीठ पर लगे घाव आज भी भरे नहीं जा सके। इसलिए अभी और भी कदम उठाने की ज़रूरत होगी। विशेष तौर पर ’84 के सिख विरोधी दंगों के लिए गत लम्बे समय से न्याय के लिए संघर्ष किया जाता रहा है। इस दौर में पंजाब का हर पक्ष से जो बड़ा नुक्सान हुआ था, उसकी पूर्ति के लिए भी बड़े कदमों की ज़रूरत है। केन्द्र द्वारा उठाया गया यह कदम राज्य के माहौल को खुशगवार बनाने में सहायक होगा। ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द