मोटर वाहन कानून पर हाहाकार

नए मोटर वाहन अधिनियम लागू होने के साथ मचा हुआ हाहाकार आप सारे देश में देख सकते हैं। हालांकि इस पर दो राय अवश्य हैं। एक पक्ष का मानना है कि भारी संख्या में बिगड़ैल बाइक और मोटर वाहन चालकों को सुधारने यानी यातायात नियमों का पालन कराने का अब यही विकल्प बचा है कि उनसे ज्यादा जुर्माना वसूल किया जाए। वो कचहरी का चक्कर काटें तभी सुधरेंगे। दूसरा पक्ष कहता है कि यातायात नियमों के पालन के लिए पूरी सख्ती हो, लेकिन इतना अधिक जुर्माना कतई नहीं होना चाहिए। हमने ऐसी कई खबरें देखीं जिनमें जुर्माना की राशि सुनकर सिर में चक्कर आ जाए। एक थ्रीव्हीलर का जुर्माना 37 हजार रुपया। एक ट्रक का तो 2 लाख तक का जुर्माना कट गया। जिस दिन से नया कानून लागू हुआ यातायात पुलिस इस तरह सड़कों पर उतरी मानो इसके पहले कोई कानून था ही नहीं। आपकी गाड़ी रोकी और कागजात मांगे, जितने नहीं हैं सबको मिलाकर एकमुश्त चालान कट गया। हंगामा मचने के बाद केन्द्रीय भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितीन गडकरी का बयान आया कि कानून का उद्देश्य भारी जुर्माना वसूलना नहीं, बल्कि लोगों को यातायात नियमों का पालन करवाना है ताकि सड़क दुर्घटनाएं कम हो सकें।  गडकरी की बात को हम अतार्किक नहीं कह सकते। लेकिन पुलिस भी तो इस उद्देश्य को समझे। वैसे यहां दो बातें हैं। इस कानून को लागू करने के लिए हर राज्य में जिले-जिले पुलिस की बैठक होनी चाहिए थी जिसमें यह बताया जाता कि आपका दायित्व यही है कि लोग यातायात नियमों का पालन करें, केवल धड़ाधड़ चालान रसीद से मोटी राशि वसूलनी नहीं। वैसे यह कहना आसान है लेकिन इसे व्यवहार में पालन कराना कठिन। आखिर पुलिस किसको डांटकर, समझाकर छोड़ दे और किसे जुर्माना की रसीद काटकर थमाये।  हां, इसमें अपना विवेक इस्तेमाल करने की आवश्यकता है। किंतु पुलिस विवेक इस्तेमाल नहीं कर रही। जहां सीसीटीवी कैमरे हैं वहां सीधे कागजात जब्ती, जुर्माना की रसीद और जहां नहीं हैं वहां ले देकर मामला रफा-दफा करना। यही चल रहा है। जिस पर 2000 का जुर्माना लगा है वह चाहता है कि 200 लेकर पुलिस वाले छोड़ दें। इसमें दोनों पक्ष खुश लेकिन सरकार को गालियां अवश्य मिल रहीं हैं। हालांकि सभी को यह पता नहीं कि कानून केन्द्र ने अवश्य बनाया है, पर इसे लागू राज्यों को करना है।  इस कानून की धारा 200 में 24 मामलों में राज्यों को जुर्माना राशि कम-ज्यादा करने का भी अधिकार है। ऐसे मामले जिनका चालान पुलिस को दिया जा सकता है उनमें बदलाव राज्य सरकारें कर सकतीं हैं। जो वसूली हो रही है, वह राज्य सरकार के खजाने में ही जाएगी। आखिर कानून व्यवस्था के साथ परिवहन विभाग राज्यों के जिम्मे हैं।  भारत का यातायात परिदृश्य जितना बुरा है उसका अनुभव हम आए दिन करते हैं। सड़क पर बहुत सारे लोग ऐसे फर्राटा भरते हैं मानो वे कार या बाइक रेस में भाग ले रहे हों और एक सेकेंड में भी पराजित हो सकते हैं। गति सीमा, लेन का बंधन, किसी का पालन करना ही नहीं है। ऐसे लोग सड़क पर अपने और दूसरों के लिए काल बनकर चलते हैं। वे कभी अपनी जान गंवा सकते हैं, दूसरों की जान ले सकते हैं। गाड़ी चला रहे हैं और मोबाइल पर बात कर रहे हैं। इसमें ध्यान भटकने का पूरा खतरा है। लोग घरों में तो शांत रहते हैं लेकिन सड़क पर उतरते ही उनका व्यवहार अजीब तरीके से बदल जाता है। भारत में 2018 में 4 लाख 46 हजार सड़क दुर्घटनाएं हुई जिनमें 1 लाख 49 हजार लोगों ने अपनी जान गंवा दी। यह बात ठीक है कि हमारे देश में बिगड़ैल चालकों को रास्ते पर लाना आसान नहीं है। सड़क पर अपने वाहन चलाने से आतंक पैदा करने की बात तो है ही यदि लोग बाइक चलाते समय हेल्मेट तक पहनने और मोटरगाड़ी में बैठने पर सीट बेल्ट तक बिना जुर्माना के भय से बांधने को तैयार नहीं हैं तो क्या किया जाए, इसमें एक रास्ता यही नजर आता है कि जुर्माना की राशि को बढ़ा दिया जाए जिसके भय से ये यातायात और सुरक्षा अनुशासन का पालन करें। यह भी सही है जहां भी जुर्माना राशि बढ़ाई गई, उसका थोड़ा असर हुआ है। राजधानी दिल्ली में उसका असर दिखने लगा है। प्रदूषण केन्द्रों पर वाहनों की कतारें बता रहीं थी कि कानून को किस तरह ठेंगा दिखाया जा रहा था। इस तरह इन्श्योरेंस एजेंटाें का भी काम बड़ा हुआ है। किंतु यह एक पक्ष है जिसे हम नकार नहीं सकते। इसका दूसरा पक्ष यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जर्माना या सजा अंतिम विकल्प होना चाहिए। जुर्माना ऐसा हो जिसे वहन किया जा सके। इसके साथ नियम तोड़ने या सुरक्षा तंत्र न अपनाने वालों को परेशान करने के कई विकल्प अपनाए जा सकते हैं। मसलन, आप तेजी से भाग रहे हैं तो थोड़ा जुर्माना कर दिया जाए और उनको एक घंटे, दो घंटे रोक दिया जाए। उनको यह भी सजा दी जाए कि अगले कुछ दिन अपने निकटतम थाने में जाकर हाजरी लगाओ। ये सब तरीके कामयाब होने वाले हैं। वैसे भी नियम तोड़ने वाले को जब्त दस्तावेज छुड़ाने और जुर्माना भरने ट्रैफिक पुलिस के साथ कोर्ट जाना होगा। हालांकि इस दिशा में कोई राज्य सरकार पहल नहीं कर रही है। किंतु गुजरात सरकार के बाद ऐसे मामलों में जुर्माना घटाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ी है, जिनमें राज्य सरकार के पास उन अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार है, जो स्पॉट पर ही जुर्माना लेकर व्यक्ति को जाने दे सकते हैं। यह उचित भी है। हां, नशा करके गाड़ी चलाने वालों के साथ किसी तरह की मुरव्वत नहीं होनी चाहिए। ये अपने साथ समाज के दुश्मन हैं। 

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