पेट्रोलियम संकट : आर्थिक संकट को और बड़ा करेगा!

सऊदी अरब के तेल ठिकाने पर हुए ड्रोन हमले से भारत की चिंताएं काफी बढ़ गई हैं। क्योंकि इस हमले में सऊदी अरब के तेल उत्पादन की मात्रा फि लवक्त केवल पचास फीसदी रह गई है। इस हमले के चलते कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दामों में पिछले एक सप्ताह में लगातार वृद्धि हो रही है। अकेले 16 सितंबर 2019 को ही कच्चे तेल के गलोबल मार्कर ब्रेन्ट की कीमतों में 20  फीसदी तथा अमरीकी मार्कर डब्लूटीआई की कीमतों में 16 फीसदी की तेजी देखी गयी। इस तरह सम्पूर्णता में कच्चे तेल की औसत अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 15  फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई। इस मामले की गंभीरता को इससे भी समझा जा सकता है कि 17 सितंबर 2019 को मुंबई स्टॉक एक्सचेंज 640 अंक लुढ़क गया। आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल और पेट्रो उत्पादों में काफी तेज बढ़ोतरी की संभावना जताई जा रही है। गोल्डमैन सैस के अनुमानों के मुताबिक कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें अभी 75 डालर प्रति बैरल तक जाएंगी।  भारतीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने हालांकि दावा किया है कि भारत में तेल आयात बदस्तूर जारी है और तेल रिफाइनिंग का काम भी सुचारू रूप से बना हुआ है। परंतु राजधानी दिल्ली में पेट्रोलियम की कीमतें चौदह पैसे प्रति लीटर तथा डीजल की पंद्रह पैसे प्रति लीटर 17 सितम्बर 2019 को बढ़ीं जो हाल के दिनों में हुई सबसे ज्यादा बढ़ोतरी है।  गौरतलब है कि सऊदी अरब के तेल ठिकाने पर हुई इस घटना को पहले दुर्घटना बताया गया, परंतु बाद में पता चला कि यह ड्रोन से हुआ हमला था। जिसे संभवत: ईरान ने अंजाम दिया है। जाहिर है कि घटना का यह रूप और ज्यादा गंभीर है जिससे खाड़ी के इलाके में भविष्य में तनाव और अशांति की आशंका ज्यादा बलवती हो चली है। इससे भविष्य में पेट्रो अर्थव्यवस्था यानी आयल इकोनामी को काफी बड़ा खतरा पैदा हो गया है। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि सऊदी अरब भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता देश है।
ईरान और वेनेज्युला पर विगत में लगे प्रतिबंधों की वजह से सऊदी अरब अभी भारत का सबसे महत्वपूर्ण तेल आपूर्तिकर्ता देश है। मालूम हो कि ईरान पर अमरीकी प्रतिबंधों की सऊदी अरब ने सबसे ज्यादा तरफदारी भी की थी। बहरहाल हमारे लिए सऊदी संकट इसलिए बड़ा है क्योंकि यह एक ऐसे समय पर घटा है जब भारतीय अर्थव्यवस्था के हालात ठीक नहीं चल रहे हैं। देश में साफ  तौर पर आर्थिक मंदी की स्थिति झलक रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अधिकारियों  के साथ लगातार बैठकें कर तीन बड़ी फेरबदल और राहत की घोषणाएं कर चुकी हैं। शुक्र बस इतना है कि इस मंदी में अभी तक देश की मुद्रास्फीति की स्थिति नियंत्रित है। परंतु खाड़ी के मौजूदा संकट से पेट्रोलियम की बढ़ने वाली कीमतें शायद ऐसा न रहने दें। गौरतलब  है कि भारत के 83 प्रतिशत कच्चे तेल की जरूरत विदेशी आयात पर निर्भर है। 
यदि कच्चे तेल की कीमतें बढें़गी तो भारत में मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी अवश्यंभावी है। भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास बताता है कि जब-जब पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ी हैं, तब-तब मुद्रास्फीति सीधे तौर पर प्रभावित हुई है। परंतु विगत एक दशक के दौरान भारत में तेजी की अर्थव्यवस्था ने पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ोतरी को झेल लिया था। लेकिन मौजूदा समय में पांच फीसदी की विकास दर तथा साफ -साफ दिख रही मंदी की स्थिति में पेट्रोलियम जनित मुद्रास्फीति करेले में नीम चढऩे जैसा होगा। मंदी व ऊंची मुद्रास्फीति का गठजोड़ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक खतरनाक होगा। वास्तव में भारत की अर्थव्यवस्था एक तरफ  पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर निर्भर है, तो दूसरी तरफ  यही पेट्रोलियम भारत की राजस्व उगाही का भी सबसे बड़ा स्रोत है ।  पेट्रोलियम उत्पादों पर लगे चार प्रमुख करों उत्पाद, सीमा शुल्क, वैट तथा प्रवेश शुल्क से केन्द्र व विभिन्न राज्य सरकारों को हर साल कुल मिलाकर करीब तीन लाख करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। जीएसटी की कथित महान कर व्यवस्था में पेट्रोलियम उत्पादों को इसीलिए शामिल  नहीं किया गया कि केन्द्र व राज्यों की आमदनी का यह सबसे बड़ा स्रोत कहीं बेमानी न हो जाए, क्योंकि अगर इस सऊदी संकट से आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो सरकार लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए उत्पाद व सीमा शुल्क में कमी लाने के लिए बाध्य होगी। अभी-अभी पिछले बजट में पेट्रोल की कीमतों में ढाई रुपये प्रति लीटर तथा डीजल की कीमतों में एक रुपये प्रति लीटर बढ़ोतरी की गई थी। ऐसे में यदि केन्द्र व राज्य सरकारें पेट्रोलियम पर आरोपित अपने करों में कटौती करती हैं तो मौजूदा मंदी के दौर में सरकारों की आमदनी का यह बड़ा जरिया भी हल्का हो जाएगा। 
जाहिर है इससे सरकार को अपने विकास व रोजमर्रा के खर्चों में हाथ खींचना होगा। भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्री ने मौजूदा संकट के बरक्श एक महत्वपूर्ण घोषणा की है कि वह रूस से कच्चे तेल के आयात को आने वाले दिनों में बढ़ायेंगे और भारत की खाड़ी के देशों पर आयात निर्भरता कम करेंगे। आर्कटिक क्षेत्र में स्थित रूसी पेट्रोलियम कंपनी वोस्टक और इस्टर्न कलस्टर आयल प्रोजेक्टस में भारत अपनी उत्पादन हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए समझौते की दिशा में कार्यरत है। भारत यहां से एक नये समुद्री रूट के जरिये कच्चा तेल आयात करने की सोच रहा है। इस बाबत दुनिया की सबसे बड़ी सूचीबद्ध पेट्रोलियम उत्पादक  कंपनी रोसनेफ्ट और भारत की पेट्रोलियम कंपनियों इंडियन आयल, ओएनजीसी विदेश में तथा भारत पेट्रोलियम की सहयोगी कंपनी बीपीआर के कंसोर्टियम के बीच अभी-अभी एक समझौता हुआ है।
इसके तहत भारत के कच्चे तेल के आयात का भौगोलिक ठिकाना अब पश्चिम के बजाए उत्तर की ओर रुख करने वाला है। कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत के लिए पेट्रोलियम दूर की ही कौड़ी रहा है। भारत की घरेलू तेल उत्खनन कंपनियों तथा एनइएलपी के तहत करीब दस चरणों में हुए सैकड़ों विदेशी निवेश करार के बावजूद देश में घरेलू हाइड्रोकार्बन का उत्पादन जरूरतों के सामने एक तरह से  आख मिचौनी ही खेलता रहा है । ये स्थितियां भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती तो हैं ही साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास के सामने भी एक बड़ी बाधा है। जल्द ही इसका कोई स्थाई हल खोजना पड़ेगा।

—इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर