कानून की विश्वसनीयता 

गत दिनों केन्द्र सरकार द्वारा देश की अलग-अलग जेलों में गत अढ़ाई-तीन दशक से बंद सिख कैदियों को रिहा करने और मुख्यमंत्री स. बेअंत सिंह बम कांड में दोषी बलवंत सिंह राजोआणा को सुनाई गई फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने के कुछ दिन बाद पंजाब सरकार की सिफारिश पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा मानवतावादी और सहानुभूति के आधार पर पांच पुलिस कर्मचारियों को माफी देने की पंजाब सरकार की अपील को केन्द्र सरकार ने मान लिया है। इसके साथ ही यह समाचार भी मिले हैं कि पंजाब के मुख्यमंत्री ने गृह मंत्री को दर्जनों ही अन्य उन पुलिस कर्मचारियों को माफी देने के लिए भी लिखा है, जिन्होंने पंजाब में आतंकवाद के काले दौर के दौरान अनेक युवाओं को झूठे पुलिस मुकाबले दिखाकर मार दिया था। उस समय अनेक ऐसे समाचार भी आए थे कि बहुत सारे पुलिस कर्मचारियों ने फिरौतियां लेने के लिए युवाओं को उठा लिया था, जिनका बाद में कुछ पता नहीं चला था। उस समय पुलिस द्वारा की जाती ऐसी धक्केशाही के विरुद्ध यदि कोई आवाज़ भी उठाता था, तो उसको भी पकड़ लिया जाता था। ऐसा कुछ ही मानवाधिकारों के बारे में कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालड़ा के साथ हुआ था। जिन्होंने पुलिस द्वारा हज़ारों ही लाशें लावारिस करार देकर उनको जला दिये जाने का मामला सामने लाया था। खालड़ा लगातार ऐसे तथ्य खंगाल रहे थे। उस दौर में ऐसा कुछ करना खतरे वाला कार्य था, जिसकी खालड़ा ने परवाह नहीं की थी। उनका अपहरण कर लिया गया और बाद में उनके बारे में कुछ भी पता नहीं चला था। उस लम्बे चले काले दौर में जिन अभिभावकों के बच्चे झूठे पुलिस मुकाबलों में मार दिए गए थे, उन तथ्यों की सच्चाई को सामने लाने में कुछ मानवाधिकार संगठनों और प्रभावित युवाओं के अभिभावकों तथा रिश्तेदारों द्वारा न्याय लेने के लिए कानून का सहारा लिया गया था। यह व्यक्ति और संस्थाएं दशकों से भारतीय संविधान के अनुसार न्याय लेने के लिए संघर्षरत रही थीं। लम्बी और कठिन प्रक्रिया के बाद देश की अदालतों ने तथ्यों के विस्तार पर विचार करते हुए कुछ दर्जन पुलिस कर्मचारियों तथा अधिकारियों को दोषी ठहराया था। बहुत सारे मामलों में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इन कर्मचारियों को मिली सजा पर मोहर लगाई थी। जिन पांच पुलिस कर्मचारियों को रिहा करने का ऐलान किया गया है, उनके नाम भी अब तक गुप्त रखे गए हैं, परन्तु उच्च न्यायालय द्वारा अन्य जिन पुलिस कर्मचारियों को सजाओं का भागीदार बनाया गया है, उनको भी पंजाब सरकार की सिफारिश पर रिहा करने की प्रक्रिया शुरू करने और उनके रिहा होने की सम्भावना ने देश की समूची न्यायिक प्रक्रिया को ही धीमा करके रख दिया है। नि:संदेह ऐसी कार्रवाई कानून का मजाक उड़ाने के समान होगी। जिन व्यक्तियों के साथ घोर अन्याय होता है और जिसके लिए दोषियों को सज़ाएं मिलती हैं, उनको बिना किसी आधार पर रिहा करने को भारतीय संविधान का अपमान करने के समान ही कहा जा सकता है। इससे जन-मानस में समूची कानूनी प्रक्रिया के प्रति अविश्वास पैदा होगा, इसके साथ ही अपने ढंग-तरीकों से अदालतों की धज्जियां उड़ाने के लिए पंजाब सरकार भी जन-कटघरे में आ खड़ी हुई है, जिसकी यह कार्रवाई समूचे तंत्र की विश्वसनीयता के लिए बेहद नुक्सानदायक साबित होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द