पंजाब का राजनीतिक भटकाव

सुखपाल सिंह खैहरा पंजाब एकता पार्टी के अध्यक्ष हैं। उनकी ओर से कुछ महीने पहले विधानसभा की सदस्यता से दिया गया अपना त्याग-पत्र वापिस ले लेने से पंजाब के राजनीतिक माहौल में एक हलचल पैदा हो गई है। अकाली दल, भाजपा एवं आम आदमी पार्टी की ओर से खैहरा की कटु आलोचना की गई है। खैहरा ने स्वयं ही विधानसभा की सदस्यता से त्याग-पत्र दिया था। इससे पूर्व वह आम आदमी पार्टी के एक बड़े नेता के तौर पर सक्रिय रहे थे। विगत विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी दूसरे स्थान पर रही तथा शिरोमणि अकाली दल तीसरे स्थान पर आया। इसलिए आम आदमी पार्टी की ओर से खैहरा को विपक्षी दल का नेता बनाया गया था परन्तु पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की प्रारम्भ से ही जिस प्रकार की राजनीतिक कार्यप्रणाली रही है, उससे पंजाब में पार्टी की छवि का निरन्तर क्षरण होता रहा है। एक समय ऐसा भी था जब इस पार्टी को एक तीसरे विकल्प के रूप में देखा जाने लगा था। लोगों ने इस पर अपनी आशाएं टिका दी थीं। एक बार तो ऐसा प्रतीत होना लगा था जैसे प्रदेश में इस नई पार्टी ने एक क्रांति की शुरुआत कर दी है, परन्तु जिस प्रकार का प्रदर्शन इस पार्टी के राष्ट्रीय नेता करते रहे, और जिस प्रकार का तानाशाहीपूर्ण रवैया अरविंद केजरीवाल ने अपनाया, उससे नये बने पार्टी कार्यकर्ताओं एवं बहुत से अन्य लोगों का इस पार्टी से मोह भंग होता चला गया। इसलिए पंजाब में सरकार बनाने की आशाएं लगाए बैठी यह पार्टी सिमट कर कांग्रेस से भी कहीं पीछे चली गई। दूसरे स्थान पर रही इस पार्टी के नेताओं में तालमेल की कमी भी बनी रही। अरविंद केजरीवाल एवं उनके साथियों ने पंजाब शाखा के प्रति अतीव उपेक्षापूर्ण एवं लापरवाही वाला रवैया धारण किये रखा। अरविंद केजरीवाल के रवैये एवं नीतियों के कारण ही यह पार्टी दो-फाड़ हो गई। कुछ विधायक पूरी तरह से निराश एवं उदास हो गये। कुछ ने अन्य दलों से नाता जोड़ने को अधिमान दिया। सुखपाल सिंह खैहरा ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर एक नई पार्टी बना ली, परन्तु समय के व्यतीत होते जाने के साथ वह अपना प्रभाव नहीं बना सके अपति लोकसभा के चुनावों में इस पार्टी के उम्मीदवारों को निराशाजनक पराजय का मुंह देखना पड़ा। यही हाल शेष बची आम आदमी पार्टी का हुआ दिखाई देने लगा। चाहे आज भी बड़ी संख्या में लोग प्रदेश सरकार की नीतियों से निराश एवं हताश नज़र आते हैं, परन्तु अकाली दल की पिछली कारगुज़ारी को देखते हुए अभी तक भी उन्होंने उसे कोई विशेष समर्थन नहीं दिया। पंजाब में पिछले दिनों सम्पन्न हुए चार विधानसभा सीटों के उप-चुनावों के दौरान मुख्य मुकाबला कांग्रेस एवं अकाली दल-भाजपा के बीच ही बना दिखाई दिया है। इस समय प्रदेश का राजनीतिक माहौल अत्याधिक बेचैनीपूर्ण एवं निराशापूर्ण बना दिखाई देता है। किसी भी पक्ष पर जन-विश्वास बना दिखाई नहीं देता। कल इन विधानसभा उप-चुनावों का परिणाम क्या सामने आयेगा, इस संबंध में भी विश्वास के साथ कोई दावा नहीं किया जा सकता। हम उत्पन्न हुई इस राजनीतिक स्थिति को प्रदेश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण समझते हैं। प्रदेश के सामूहिक विकास के पथ पर जड़ता उत्पन्न हो गई प्रतीत होती है। प्रदेश सरकार के आर्थिक तंगी में घिरे होने के कारण विकास के अधिकतर कार्य एक प्रकार से ठप्प हो गए प्रतीत होते हैं।  इसी काल के दौरान सुखपाल सिंह खैहरा के अपने विधानसभा क्षेत्र की सदस्यता से दिये गये त्याग-पत्र को वापिस लिये जाने  के समाचार ने खैहरा के प्रभाव को और भी कम किया है। वह हमेशा अपनी ओर से लिये गये किसी भी स्टैंड पर डटे रहने का दावा करते रहे हैं। पंजाब की बेहतरी के लिए वह पदों को ठुकराने की बात भी करते रहे हैं, परन्तु उनकी ओर से पहले लिये गये स्टैंड से पीछे हटने में जहां उनकी भीतरी लड़खड़ाहट दिखाई देती है, वहीं उनका राजनीतिक कद भी कम हुआ है। एक प्रकार से प्रदेश की सियासत में अधिक गंदलापन दिखाई देने लगा है। राजनीतिज्ञों के बलबूते पर पंजाब अपने पांवों पर कब एवं किस सीमा तक खड़ा हो सकेगा, इस संबंध में संशय और भी बढ़ते हुये दिखायी देते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द