चुनाव वायदे से भागी कैप्टन सरकार
जालन्धर, 18 नवम्बर ( मेजर सिंह ) : फरवरी 2017 के चुनावों से पहले कांग्रेस ने चुनाव घोषणा पत्र में बड़ा वायदा किया था कि सत्ता में आने के बाद अकाली-भाजपा सरकार के समय तीन निजी थर्मल प्लांट कम्पनियों से किए एकतरफा व गलत समझौतों का पुन: निरीक्षण कर नए सिरे से समझौते सहीबंद किए जाएंगे परन्तु सत्ता में आते ही कैप्टन सरकार की नज़र इन निजी कम्पनियों की ओर इतनी मेहरबान हो गई कि निरीक्षण कर समझौते द्वारा हज़ारों करोड़ों रुपए का डाला बोझ उतारने की बात तो दूर बल्कि अब समझौतों में अस्पष्ट छोड़ी मुद्दों के सहारे कानूनी दांवपेज निकाल कर यह कम्पनियां हज़ारों करोड़ रुपए और वसूल कर रही हैं तथा सीधी-सादी बनी सरकार हज़ारों करोड़ रुपए उक्त कम्पनियों को देकर बिजली दरें बढ़ाकर लोगों का कचूमर निकालने पर तुली है। ताज़ा मिसाल है कि पंजाब पावर निगम ने लार्सन एंड टरबो द्वारा चलाए जा रहे नाभा पावर लिमिटेड निजी थर्मल को 421 करोड़ रुपए व तलवंडी साबो थर्मल चला रहे वेदांता ग्रुप को 1002 करोड़ रुपए की राशि दी है। निगम अधिकारियों का कहना है कि कोयले की धुलाई के 2012-13 से 2019 तक के खर्चे के यह पैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर दिए गए हैं। आगे से 1420 करोड़ रुपए का यह बोझ निगम ने उपभोक्ताओं पर लादने के लिए रैगुलेटरी कमिशन को बिजली दरें बढ़ाने के लिए पत्र लिख दिया है। पावर निगम अधिकारियों का कहना है कि इस तरह आने वाले दिनों में पंजाब में प्रति यूनिट 10-12 पैसे बिजली दरें और बढ़ने जा रही हैं। पंजाब के लोगों का खैहड़ा 1420 करोड़ रुपए देकर ही नहीं छूटना, बल्कि सरकारी अधिकारियों के अनुसार कोयला धुलाई का खर्चा समझौते व रहते अगले 21 वर्षों में 12 हज़ार करोड़ रुपए निजी कम्पनियों को और देने पड़ते हैं। अधिक बिजली पैदा करने के नाम पर पंजाब लाई यह निजी बिजली कम्पनियां 21 वर्ष और पंजाब के लोगों को बिजली के करंट लगाती रहेंगी।
समझौते बेईमानी का शिकार पंजाब
निजी थर्मल कम्पनियों के साथ हुए समझौते में कोयला धुलाई के खर्चों बारे रोष रूप में भी कुछ भी नहीं था लिखा। पावर निगम के अधिकारियों ने कम्पनियों के धुलाई के खर्चे के बिल यह कह कर रद्द कर दिए कि यह खर्चा भी शेष खर्चों में ही शामिल है तथा कम्पनियों ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर अस्पष्ट मद्दां के हवाले से 1420 करोड़ का खर्चा लेने का फैसला करवा लिया है। निगम के गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि जैसे ले देकर कम्पनियों वाले समझौते में अस्पष्ट मद्दां डलवा गए थे, उसी गुरमंत्र से पावर निगम की अदालती पैरवाई ढीली कर केस जीत लिया है। हैरानी की बात यह है कि पावर निगम ने अदालत के फैसले पर नज़रसानी या चुनौती देने वाली याचिका दायर करने की जगह झटपट कम्पनियों को 1420 करोड़ रुपए तार कर बिजली दरें बढ़ाने के लिए रैगुलेटरी कमिशन पत्र लिख दिया। सवाल यह उठ रहा है कि अरबों रुपए का बोझ पंजाब पर डालने वाले समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों को क्यों जवाबदेह नहीं बनाया जा रहा, दूसरा 7 अगस्त को उच्च अदालत के हुए फैसले को चुनौती देने की जगह अदायगी करने की जल्दी किस लिए की जा रही है। उक्त दोनों कम्पनियों का कोयला धुलाई का खर्चा ही प्रति वर्ष 500 करोड़ रुपए बनता है। देश में सभी राज्यों से अधिक महंगी बिजली होने के बावजूद पंजाब पावर निगम 30 हज़ार करोड़ रुपए की ऋणी है। जांच तो इस बात की भी होनी चाहिए कि महंगे मूल्य बिजली बेच कर फिर भी लगातार घाटा क्यों दिखाया जा रहा है। कांग्रेस के कई नेता इस बात को लेकर सरकार के साथ खफा भी बताए जाते हैं कि चुनावों दौरान किए वायदे अनुसार निजी थर्मल प्लांटों के समझौतों में हुए बड़े घोटाले का पर्दाफाश क्यों नहीं किया गया।