सऊदी अरब क्या बदल पायेगा अपनी कट्टर छवि ?

इसमें कोई दो राय नहीं है कि सऊदी अरब दुनिया की तेल आधारित राजनीति और अर्थव्यवस्था में अपनी एक महत्वपूर्ण जगह रखता है, साथ ही सच्चाई यह भी है कि दुनिया के तमाम संगठनों की बागडोर अक्सर उन्हीं देशों के पास होती है, जो ताकत और पैसे में महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए जी-20 जैसे आर्थिक और कूटनीतिक रूप से ताकतवर देशों के संगठन की अध्यक्षता सऊदी अरब को हासिल होना, कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। लेकिन वैश्विक संगठनों की बाह्य छवि लोकतांत्रिक ही होती है। ऐसे में न चाहते हुए भी सऊदी अरब को अपनी छवि और आचरण से आने वाले दिनों में मुठभेड़ करनी होगी, सऊदी अरब पहला अरब मुल्क बना जिसे जी-20 की अध्यक्षता मिली है। इस बात को लेकर वहां जश्न का माहौल है। जी-20 की प्रेसिडेंसी उसे जापान से हासिल हुई है। राजधानी रियाद में 21-22 नवंबर 2020 को जी-20 की बैठक को कैसे शानदार तरीके से आयोजित करना है। यह किंगडम के लिए एक मेगा शो मनाने जैसा होगा। औरतों को कुछेक अधिकार देकर सऊद शाही शासन ने अपनी उदार छवि बनाने की चेष्टा की है। मगर, इसका जवाब विश्व समुदाय को देना बाकी है कि पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या की जांच के मामले में लीपा-पोती क्यों की गई? सऊदी अरब की जेलों में सैकड़ों की संख्या में सरकार से असहमत एक्टीविस्ट, बुद्धिजीवी, पत्रकार क्यों डाले गये हैं? पिछले दो वर्षों में अकादमिक क्षेत्र के नौ नामी-गिरामी लोगों को जेल में डालकर दहशत फैलाने की चेष्टा की गई है। इन तमाम बातों के बीच  सऊदी अरब में जी-20 शिखर सम्मेलन का होना कई सवालों को जन्म देगा। सऊदी प्रिंस मोहम्मद के सामने इस बात का दबाव बना रहेगा कि वे अपने अधिराज्य की दमनकारी छवि को कैसे दुरुस्त करें। मिडल ईस्ट और उत्तर अफ्रीका वाले इलाके में मानवाधिकार को देखने वाले एमनेस्टी इंटरनेशनल के क्षेत्रीय डायरेक्टर हेबा मोरायेफ  ने बयान दिया है कि विश्व नेता सऊदी अरब पर इस बात का दबाव बनाएं कि वहां रहने वाले लोगों को उनके हुकूक से वंचित न किया जाए। सऊदी अरब के लोगों को शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने, अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार तो मिलना ही चाहिए। जी-20 की अध्यक्षता भारत 2022 में करे, यह विषय भी अतीत में रहा है। 30 नवम्बर से 1 दिसम्बर 2018 तक अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनसआयर्स में जी-20 की शिखर बैठक थी। समापन वाले दिन पीएम मोदी का आग्रह था कि 2022 की शिखर बैठक भारत में हो ताकि देश की आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ की रौनक में चार चांद लग जाएं। इस वास्ते इटली को मनाना आवश्यक था। 2022 बैठक की बारी इटली की थी और इंडिया का टर्न 2021 में आ चुका था।जी-20 शिखर बैठक इस साल 2019 में जापान में हो चुकी है। सऊदी अरब को 2020 में इसे आयोजित करना है। लोचा, केवल भारत की वजह से था। इटली के प्रधानमंत्री जुसेपे कोंते इस वास्ते सहजता से कैसे राजी हो गये, जिसने भी सुना, हैरान हुआ। जुसेपे कोंते 30 अक्तूबर, 2018 को दिल्ली आये थे। उनकी उस यात्रा में भारत-इटली के बीच आर्थिक व टेक्नोलाजी के क्षेत्र में सहकार के बड़े-बड़े संकल्प किये गये थे। 29 और 30 अक्तूबर 2018 को पीएम मोदी को जापान में रहना था, मगर जुसेपे कोंते से मिलने की शिद्दत इतनी थी कि उस यात्रा को थोड़ा पीछे किया गया। सवाल यह है कि इटली को इतना आइने में उतारने की आवश्यकता क्यों थी? जो लोग लक्ष्य को समझ रहे हैं, उन्हें मालूम है कि त्रेता युग में अयोध्या से अधिक लंका कूटनीति का केंद्र था। सारे भेदिये, विभीषण वहीं मिले। इटली भी उसी तरह दूरगामी कूटनीति का हिस्सा है, जहां कांग्रेस अध्यक्ष की जड़ें हैं, जहां की अदालत में अगस्ता वेस्टलैंड के दस्तावेज़ हैं, जहां के नेता-नौकरशाह मुंह खोल दें, तो भारत की घरेलू राजनीति में हवा का रुख प्रभावित होता है।  ठीक वैसे ही जैसे यूएई के शासन प्रमुख शेख मुहम्मद बिन रशीद अल मक्तूम ने ‘आउट आफ  टर्न’ मोदी की मदद की। इटली का दिल जीतने के वास्ते यह उस रणनीति का हिस्सा था, जब भारतीय मछुआरों के हत्यारे दो इटैलियन मरीन को 2016 में उनके देश जाने देने और उन्हें लगातार बैंक गारंटी देते रहना है। ऐसे में प्रधानमंत्री जुसेपे कोंते कैसे पीएम मोदी की छोटी सी गुजारिश को मना करते।  क्या जी-20 का मंच अमरीका केन्द्रित होता गया है? यह सवाल गाहे-बगाहे चर्चा का विषय रहा है। यह ध्यान देने की बात है कि डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका की वजह से महिला अधिकार जी-20 के एजेंडे में शामिल हुआ। विकासशील देशों की महिलाओं को माइक्रो लोन की सुविधा मिले, यह भी इवांका की इच्छा से हैम्बर्ग में जी-20 की बैठक में रखा गया और जर्मन चांसलर आंगेला मैर्केल की सहमति के बाद, इस अवधारणा को आगे बढ़ा दिया गया। टेरर फंडिंग को रोकना भी अमरीका का आइडिया था, जिस वास्ते जी-20 के नेता सहमत हुए। मगर, पैरिस सम्मेलन में अमरीका, पर्यावरण प्रस्ताव न मानने से अड़ गया, तो लगा कि जी-20 संकट में है। लोगों के लिए भी अब देखना अजूबा नहीं रह गया कि जी-20 की मेज पर ‘रीयल डेमोक्रेट’ मानवाधिकारों का हनन करने वालों के साथ बैठते हैं। इनमें कैदियों को मार डालने का विश्व रिकार्ड बनाने वाले चीन के नेता शी भी होते हैं और ‘अमरीका फर्स्ट’ के निरंकुश नारे को साथ लिये चलने वाले ट्रंप भी होते हैं। ऐसे में इनमें से कौन है, जो सऊदी अरब से मानवाधिकार हनन का सवाल करेगा?

—इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर