सार्वजनिक सम्पत्ति की तोड़-फोड़ क्यों ?

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र के  मायने ‘लोगों की, लोगों द्वारा, लोगों के लिए’ बनाई गई सरकार से है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो लोकतन्त्र में जो भी कानून बनाए जाते हैं, उनमें लोकहित सर्वोपरि होता है। हमारे संविधान ने हमें अनेक अधिकार प्रदान किए हैं जो हमारे सर्वांगीण विकास हेतु आवश्यक होने के साथ ही हमारी स्वतन्त्रता के द्योतक भी हैं। इनमें से एक प्रमुख अधिकार है निजी विचारों की अभिव्यक्ति। बोलने का, लिखने का, जनसमूह में भाषण या अन्य किसी माध्यम द्वारा अपनी बात रखने का अधिकार। जब भी विधायिका कोई कानून बनाती है तो उसके पक्ष या विपक्ष में अपनी राय प्रकट करने का अधिकार भी भारतीय नागरिकों को निश्चित रूप से मिला है। किंतु अक्सर देखा गया है कि कई बार कुछ असामाजिक तत्व अपने इस अधिकार का दुरुपयोग करते हुए सीमाओं का अतिक्रमण करने पर आमदा हो जाते हैं। इस का ताज़ा उदाहरण है हाल ही में  ‘ नागरिकता संशोधन कानून’ के विरोध में उठा बवाल।
जैसे ही इस कानून को लेकर विरोध के स्वर उठे, असामाजिक तत्व भी सक्रिय हो उठे। कहीं वाहन जला दिए गए, कहीं पुलिस चौकियां रोष का निशाना बनीं, कहीं पथराव में मानवता त्रस्त हुई, कहीं मैट्रो, रेल व हवाई सेवाएं प्रभावित हुईं तो कहीं जनता को नैटवर्क सुविधाओं से वंचित होना पड़ा। देश के किसी भी हिस्से में जब भी कभी जनजीवन अस्त- व्यस्त होता है तो इसका असर पूरे देश पर पड़ता है। वैसे भी देश पहले से ही मंहगाई, बेरोज़गारी, अर्थ-व्यवस्था की मंदी आदि की मार से त्रस्त है और ऐसे में जब देश का विरोधी स्वर हिंसात्मक हो उठे, सार्वजनिक संपत्ति की तोड़-फोड़ व आगज़नी की घटनाएं होने लगें तो यह निश्चित रूप से ही गंभीर चिंता व मनन  का विषय बन जाता है।
सार्वजनिक सम्पदा से आशय है देश की सम्पत्ति जिसमें पूरे देश, पूरे समाज की सहभागिता है। यह किसी  व्यक्ति  विशेष की निजी सम्पत्ति नहीं है जिस पर उसका एकल आधिपत्य हो। विभिन्न प्रकार के कराधान से एकत्रित राशि से नागरिकों के हितार्थ सार्वजनिक सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं ताकि नागरिकों का जीवन सरल व सुविधाजनक हो सके। इस सम्पत्ति को नष्ट करने का सीधा-सीधा अर्थ तो यही हुआ न कि पेड़ की जिस शाखा पर बैठे हैं उसी को काट डालें। पेड़ को जो क्षति पहुंची सो पहुंची, पर क्या अपेक्षाकृत भुगतान हमें नहीं करना पड़ा?  नष्ट करना ही तो उन बुराइयों को करो जो आज भी देश की जड़ों को खोखला कर रही हैं। अगर जलाना ही है तो उन कुरीतियों, उन दुष्कृत्यों को जलाओ जो देश की गौरव आभा को मलिन करते हैं।

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