बरकरार है प्रदूषण की समस्या 

देश में निरन्तर प्रदूषित होते पर्यावरण ने हवाओं की गुणवत्ता को इस सीमा तक प्रभावित किया है कि आने वाले समय में मनुष्य के लिए सांस लेना तक कठिन हो जाएगा। देश की राजधानी दिल्ली और इसके साथ सटे गुरुग्राम में चिरकाल से इस प्रकार की स्थिति को देखा, महसूस किया जा रहा है। अब इस मुद्दे को लेकर हुए एक ताज़ा सर्वेक्षण की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि देश भर में घोषित 287 प्रदूषित शहरों में से अकेले पंजाब के 21 शहरों को शुमार किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों में से उत्तर प्रदेश के 6 शहर आते हैं। रिपोर्ट ने देश का सर्वाधिक प्रदूषित केन्द्र झारखंड के झरिया को घोषित किया है। राजधानी दिल्ली को बेशक पिछले कुछ वर्षों से नाज़ुक लाल लकीर के घेरे में रखा गया है, और इस हेतु कई प्रकार के सुरक्षात्मक पगों की भी चर्चा यत्र-तत्र होती रहती है, परन्तु इस रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि दिल्ली में पिछले वर्ष प्रदूषण में कुछ सुधार हुआ है, और हवा की गुणवत्ता भी पहले से अंश-मात्र सुधरी है।
यह रिपोर्ट वर्ष 2018 की स्थितियों को लेकर है। इसके पूरे देश की वायु गुणवत्ता में इससे पूर्व के वर्ष यानि वर्ष 2017 के मुकाबले कुछ सुधार  हुआ है।  जहां तक पंजाब का संबंध है, इस रिपोर्ट सूचि में प्रदेश के 21 शहरों को लाल घेरे में रखा गया है। इन शहरों में से बेशक अमृतसर, लुधियाना, जालन्धर, खन्ना, मंडी गोबिन्दगढ़ आदि की वायु गुणवत्ता में थोड़ा सुधार दर्ज हुआ है, परन्तु पटियाला, संगरूर और डेरा बस्सी में प्रदूषण की मात्रा पहले से बढ़ी है। देश में स्वच्छता अभियान, कूड़ा प्रबन्धन और सफाई दिवसों के आयोजनों के ज़रिये बेशक प्रदूषण में सुधार हेतु यत्न किये जाते रहते हैं, परन्तु ऐसे अधिकतर प्रयास या तो सतही हो कर रह जाते हैं, अथवा कागज़ों पर प्रदेश के राजस्व कोष पर बोझ बढ़ाने का ही कारण बनते हैं। सरकारें ऐसे आयोजनों के ज़रिये स्वयं अपने हाथों से अपनी पीठ थपथपाने का ही प्रयास करती हैं जबकि वास्तविकता के धरातल पर कुछ ठोस परिणाम निकलते कभी दिखाई नहीं दिये। ग्रीन पीस इंडिया की इस रिपोर्ट पर विश्वास न करने का बेशक कोई ठोस कारण नहीं हो, परन्तु प्रदेश में अभी तक इस संदर्भ में जितने भी प्रयास हुए हैं, उनका कोई दृष्टव्य-प्रमाण सामने नहीं आया।
पंजाब के जिन 21 शहरों के नाम इस रिपोर्ट में उल्लिखित हुए हैं, उनमें से अमृतसर को प्रदेश का सर्वाधिक प्रदूषित केन्द्र माना गया है। इसके बाद लुधियाना, जालन्धर और अजनाला आते हैं जहां प्रदूषण के स्तर को गम्भीर माना गया है। लौह शहर गोबिन्दगढ़ और जलालाबाद इनसे भी बाद में आते हैं। पंजाब में नगर निगमों के ज़रिये कूड़े को अलग-अलग करके इनके प्रबन्धन की कई योजनाएं घोषित हुईं, और इनके प्रचार के लिए बड़े-बड़े पोस्टर-विज्ञापन भी जारी हुए परन्तु मुहल्लों और घरों से कूड़ा उठाने अथवा कूड़े को अलग-अलग करने की व्यवस्था का कोई ठोस प्रबन्ध सामने नहीं आया। पर्यावरण में प्रदूषण को बढ़ाने और वायु-गुणवत्ता के म्यार में कमी लाने में खराब सड़कों और इन पर चलने वाले वाहनों का भी बड़ा योगदान होता है। पंजाब के प्राय: हर बड़े शहर में सड़कों की दशा निरन्तर दयनीय बनी हुई है और सड़कों के नव-निर्माण तथा उनकी मुरम्मत हेतु किसी बड़ी योजना पर क्रियान्वयन की आशा भी निकट भविष्य में बनते दिखाई नहीं देती। केन्द्र सरकार की ओर से वर्ष 2019 में राष्ट्रीय धरातल पर बनी एन.सी.ए.पी. योजना के तहत शहरों और देहात में वातावरण में सुधार हेतु यत्न किये जाने थे। परन्तु यह योजना अभी तक चींटी की चाल ही चली है, और इससे कोई सार्थक परिणाम निकला हो, ऐसा कहीं दिखाई नहीं दिया है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी इस योजना में कुछ नये शहरों को शामिल किये जाने हेतु भरसक प्रयास किये, परन्तु इन प्रयासों पर भी बूर पड़ते दिखाई नहीं दिया। 
पर्यावरणीय प्रदूषण को बढ़ाने में रेत-बजरी के वैध-अवैध खनन और वृक्षों के अवैध कटान को भी उतना ही दोषी माना जाता है, परन्तु इधर पंजाब और हरियाणा में बड़े स्तर पर वृक्षों के कटान के समाचार आए हैं। अरावली की पहाड़ियों में आवासीय क्षेत्रों में विस्तार के दृष्टिगत पिछले दिनों बड़ी संख्या में वृक्षों के काटे जाने के समाचार प्रकाशित हुए थे। इस पहाड़ी क्षेत्र में वन क्षेत्र और जलीय क्षेत्र दोनों चिन्ताजनक स्थिति तक सिकुड़े हैं। इस मामले का त्रासद पक्ष यह भी है कि वन एवं प्रशासनिक अधिकारियों को इस स्थिति की जानकारी तक नहीं होती। प्रदेश के ताप विद्युत उत्पादन केन्द्र भी प्रदूषण को बढ़ाने का कारण बनते हैं। 
हम समझते हैं कि यह स्थिति राष्ट्र और मानवीय धरातल पर कदापि उचित नहीं है। ग्रीन पीस इंडिया की रिपोर्ट आशा की एक किरण को अवश्य दर्शाती है, परन्तु सरकारी और प्रशासनिक तौर पर जो निष्क्रियता दिखती है, उससे ऐसा नहीं लगता कि सुधार का यह पग आगे की ओर बढ़ेगा। वैश्विक धरातल पर भी पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम हेतु कुछ अधिक प्रयास होते दिखाई नहीं देते। राष्ट्रीय चरण पर भी स्थितियां अधिक श्रेयस्कर नहीं मानी जा सकतीं। ऐसे में, इस रिपोर्ट में दिखी प्रकाश-किरण को यदि आगे बढ़ाना है तो सरकारों को जहां इस संबंधी किसी ठोस नीति को निर्धारण करना होगा, वहीं प्रशासनिक तंत्र को इस पर अमल हेतु पूरी तरह से कमर कसना होगी। सामाजिक धरातल पर जागरूकता पैदा करना इससे भी ज़रूरी है। हम समझते हैं कि धरती पर मानवीय जीवन के हित में पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने हेतु सभी पक्षों को मिल कर यत्न करने होंगे, तभी सार्थक परिणामों को हासिल करने की स्थितियां बनेंगी। इसके लिए सामूहिकता के साथ यत्न करना बहुत ज़रूरी है।