शिव महिमा बेलपत्र की

भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र का प्रयोग अद्वितीय है। हमारे धार्मिक गंरथों  में बिल्वपत्र के वृक्ष को श्रीवृक्ष भी कहा गया है। मान्यता यह भी है कि इसकी जड़ में महादेव का वास है। तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी हों तो उसे त्रिदेव का स्वरूप मानते हैं। बेलपत्र के बारे में एक किवदंती यह भी है कि एक बार मां पार्वती ने अपनी उंगलियों से अपने  ललाट पर आया पसीना पोछकर उसे फेंक दिया। मां के पसीने की कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं। कहते हैं कि उसी से बेलवृक्ष उत्पन्न हुआ। इसके पेड़ भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाइलैंड में उगते हैं। धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण ज्यादातर इन पेड़ों को मंदिरों के आसपास ही लगाया जाता है। शिवपुराण में वर्णित है कि घर पर बेल का वृक्ष लगाने से भी अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा तो यहां तक जाता है कि जिस स्थान पर यह पौधा या वृक्ष होता है, वह काशी तीर्थ के समान पवित्र और पूजनीय स्थल हो जाता है। इसका प्रभाव यह होता है कि घर का हर सदस्य यशस्वी तथा तेजस्वी बनता है तथा ऐसे परिवार में सभी सदस्यों के बीच प्रेम भाव रहता है। घर में किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती। एक बात यह भी है कि प्रदूषण की मार झेलते शहरों में वातावरण को शुद्ध बनाए रखने के लिए बिल्वपत्र का वृक्ष महत्वपूर्ण है। यह वृक्ष अपने आसपास के वातावरण को शुद्ध तथा पवित्र बनाए रखता है। इस  पेड़ के प्रभाव के कारण आसपास साँप, विषैले जीव-जन्तु भी नहीं आते । यदि कोई शव बिल्वपत्र के पेड़ की छाया से होकर श्मशान ले जाया जाता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस पेड़ को रोज पानी देने से पितरों को शांति मिलती है तथा पितृदोष से भी मुक्ति मिलती है।बेलपत्र तोड़ने के नियमों को ध्यान में रखते हुए पूजा करना ही श्रेष्ठ होता है। टूटे हुए बिल्वपत्र यदि अच्छी अवस्था में हों तो एक से अधिक बार भी शिवपूजा में उपयोग कर सकते हैं। ध्यान में यह रखें कि सूखे या टूटे तथा गले हुए पत्ते ना हों। आचार्य चरक तथा कई आयुर्वेदिक पद्धतियों में बेल को पाचन के लिए औषधि माना गया है। पेट के रोगों, आंतों से संबंधित परेशानियाें, पुरानी पेचिश, दस्त तथा बवासीर में बेल बहुत उपयोगी है। इससे आंतों की कार्यक्षमता के साथ भूख खुलती है तथा इंद्रियों को बल मिलता है । एक मजेदार बात यह भी है कि बेल फल का गूदा डिटर्जेंट का काम भी करता है जो कपड़े धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह चूने के प्लास्टर के साथ मिलाया जाता है जो कि जलअवरोधक का काम करता है और मकान की दीवाराें तथा सीमेंट में भी जोड़ा जाता है। कई चित्रकार अपने जलरंगों में बेल को मिलाते हैं जो कि चित्रों पर एक सुरक्षात्मक परत लगाता है।