खतरनाक मोड़ पर

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की यात्रा के दौरान दिल्ली में जो हिंसक घटनाक्रम घटित होना शुरू हुआ, उसने जहां विश्व भर में देश के प्रभाव को कम किया है, वहीं तीन दिन तक हालात पर काबू न रख पाने के कारण इन दंगों के दौरान लगभग दो दर्जन मौतें होने एवं सैकड़ों अन्य लोगों के घायल होने की घटनाओं ने स्थिति को और भी नाज़ुक एवं गम्भीर बना दिया है। नागरिकता संशोधन कानून बनने के बाद देश भर में इसके विरोध में जिस प्रकार के प्रदर्शन हुये, जिस प्रकार लोग गलियों-बाज़ारों में उतर आये, जिस प्रकार उन्होंने लम्बे-लम्बे धरने लगाये, उससे यह आशंका पैदा होना प्राकृतिक बात थी कि स्थिति किसी भी स्थान पर विस्फोट बन सकती है, खास तौर पर दो मास से दिल्ली में औरतों के नेतृत्व में चले शाहीन ब़ाग के धरने ने हालात को और भी नाज़ुक बना दिया था। जितनी बड़ी चुनौती बनी थी, सरकार उसका मुकाबला करने में पूर्णतया असमर्थ रही। देश भर में स्थान-स्थान पर होने वाले रोष प्रदर्शनों के दौरान उसने राजनीतिक दलों एवं अन्य महत्त्वपूर्ण संगठनों के साथ कोई सम्पर्क बनाने का यत्न नहीं किया। इसकी बजाय भाजपा के बड़े नेता किसी भी स्थिति में बने इस नये कानून के संबंध में पुनर्विचार न किये जाने के बयान देते रहे। इसके साथ ही कई नेताओं ने ऐसे उत्तेजक भाषण भी देने शुरू कर दिए जिनसे स्थिति के अधिक विस्फोटक होते जाने की आशंका बन गई थी। इन बयानों को किसी भी स्तर पर रोकने का यत्न नहीं किया गया। पिछले समय में प्राय: यह देखने में आया है कि भाजपा के कई गैर-ज़िम्मेदार नेता निरन्तर ऐसे बयान देते रहे हैं, जिनसे देश की साम्प्रदायिक स्थिति खराब होती रही है। ऐसे बयान भीड़ों को भड़काने का कारण ही बने हैं। पिछले कई वर्षों से बन रहे इस माहौल मेें देश भर में स्थान-स्थान पर भड़की हुई भीड़ों ने न केवल लोगों को मारा अपितु उनकी दुकानों, सरकारी सम्पत्ति एवं अन्य हर प्रकार की सम्पत्ति का नुकसान भी किया। यही कुछ देश की राजधानी दिल्ली में होते दिखाई दे रहा है। भीड़ें एकत्रित होकर लूट-मार भी करते दिखाई दीं, लोगों को बुरी तरह से मार-पीट करते भी दिखाई दीं, उनकी दुकानों, मकानों एवं अन्य संस्थानों को अग्नि-भेंट भी किया गया। उन्होंने भरी हुई दुकानों को लूट कर आग के हवाले किया। पुलिस तीन दिन तक प्रभावशाली एवं कठोर भूमिका अदा करने में नकाम रही। देश में सबसे बुरी बात यह हुई कि ये रक्तिम भिड़न्तें हिन्दू बनाम मुस्लिम साम्प्रदायिक दंगों के रूप में सामने आईं। अब पुलिस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है। दंगइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिये गये हैं। दंगइयों की ओर से पत्रकारों से भी मारपीट की गई है। लोगों को इस प्रकार के नारे लगाने के लिए विवश किया गया, जिससे कि माहौल और भी साम्प्रदायिक एवं विषाक्त हो चुका है। भाजपा के कपिल मिश्रा जैसे नेताओं ने अपने बयानों से आग पर पैट्रोल डालने का काम किया है। ऐसे घृणास्पद एवं उत्तेजक भाषणों से हिंसा में और भी वृद्धि हुई है। यहां तक कि अदालतों को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने तो यहां तक कह दिया है कि अब दिल्ली में किसी भी प्रकार 1984 के सिख नरसंहार जैसा माहौल बनने नहीं दिया जाएगा। पुलिस गश्त कर रही है। बहुत से इलाकों में स्कूल बंद कर दिये गये हैं। हम समझते हैं कि भाजपा के बड़े नेताओं ने चिरकाल से अपनाई गई नीति पर चलते हुए देश का भारी नुकसान कर दिया है, जिसकी क्षति-पूर्ति होना अत्याधिक कठिन है। इस देश को प्यार एवं आपसी सौहार्द से ही चलाया जा सकता है। किसी भी प्रकार की साम्प्रदायिक भावनाओं की अभिव्यक्ति इसके समूचे विकास को विपरीत मोड़ दे सकती है। नि:संदेह इस विभाजनकारी  राजनीति ने देश को एक खतरनाक मोड़ पर ला खड़ा किया है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द