छंटा हुआ अंधेरा

रोहन के मम्मी-पापा प्राय: उसे टोकते रहते थे मगर फिर भी न जाने क्यों रोहन अपने को रोक नहीं पाता था। सप्ताह में जिस दिन भी टेलीविज़न पर डरावनी फिल्म का प्रोग्राम आता तो वह जैसे टी.वी. से चिपक जाता था। उस प्रोग्राम में भूत-प्रेत विचित्र प्रकार के कारनामे किया करते थे—कभी हवा में तस्वीर उड़ने लग जाती, कभी पता ही न चल पाता कि घर में कहीं से खून बिखरा होता। घर के दरवाज़े खिड़कियां बेशक भीतर से सांकल भी लगी होती, स्वयं ही च्री-च्री की आवाज़ के साथ खुल जाते थे। कई बार इस प्रकार के दृश्य टी.वी. पर देखते हुए रोहन को डर भी लगता था, मगर घर में मम्मी-पापा की मौजूदगी उसे डर से बचा लेती थी। मम्मी तो ज्यादा नहीं टोकते थे, मगर पापा तो जैसे आग-बबूला हो जाते थे—‘अरे कोई अच्छा-सा सीरियल भी देख लिया कर। यूं ही वे सिर-पैर के प्रोग्राम देखता रहता है। लोग चांद के बाद मंगल पर भी पहुंच गए हैं और यह लोग विज्ञान के इस युग में भूत-प्रेतों की कहानियां दिखाते हैं। पापा को टी.वी. वालों पर भी खीज आती थी। मम्मी-पापा के रोकने के बावजूद भी शायद ही कभी रोहन ने इस प्रकार का सीरियल देखने से गुरेज किया हो। मगर सीरियल समाप्त होते ही अनायास उसे याद आया कि उसने तो आज होमवर्क भी नहीं किया था। कल तो फिजिक्स वाले सर ने कॉपियां चैक करनी थी। फिजिक्स वाले सर के पास कोई बहाना नहीं चलता। उनका तो सीधा उसूल है:या तो होमवर्क करके लाओ या फिर पिटाई करवाओ। उनका एक थप्पड़ ही पूरा जबड़ा हिलाकर रख देता था। लेकिन अब वह क्या करे। उसको तो नींद आने लगी थी। अचानक उसे ख्याल आया कि कोई बहाना बना ले तथा स्कूल न जाए। मगर फिर भी बहाना नहीं चलना था, क्योंकि प्रिंसीपल सर तब तक अर्जी स्वीकार नहीं करते जब तक कि उस पर पापा ने हस्ताक्षर न किये हों। खैर! और कोई चारा न देखकर वह होमवर्क करने बैठ गया। लेकिन उसे पढ़ते हुए थोड़ा ही समय हुआ था कि उसे यूं लगा जैसे कोई उनके कमरों के पर्दों को खींच रहा हो। उसने चौंककर एकदम पर्दों की ओर देखा। लेकिन वहां तो कोई भी न था। उसे लगा कि शायद उसे भ्रम हुआ कि किसी ने पर्दे खींचे हैं। वह पुन: अपना होमवर्क करने लगा। कॉपी पर लिखते हुए अचानक उसकी नज़र रोशनदान की ओर घूम गई तो वह भयभीत हो गया। उसे यूं लगा जैसे रोशनदान में से कोई भीतर झांक रहा हो। मारे डर के उसे कंपकंपी छूट गई थी। कहीं कोई भूत-प्रेत ही न आ गया हो। भूत-प्रेत तो कहीं से भी आ सकते हैं। उसने स्वयं एक सीरियल में देखा था कि किस प्रकार बंद दरवाज़ों तथा खिड़कियों में से भीतर आकर भूत उस घर की कीमती वस्तुएं तोड़ गया था। भूत के लिए कहीं भी आना-जाना कठिन कार्य न था। फिर उनके रोशनदान का तो शीशा भी टूटा हुआ था। मेरा डर के उसे ठंडा पसीना आने लगा था। मगर फिर भी यह हिम्मत करके उठा तथा बाहर वाले कमरे की लाईट जला दी। उसने सहमे हगुए रोशनदान की ओर देखा। मगर वहां तो कोई भी न था। उसने मन ही मन स्वयं को दिलासा दिया कि वह तो बेवजह ही डर रहा था। रोशनदान में तो कई भी नहीं झांक रहा था। यूं सोचते हुए अनायास ही उसकी नज़र ऊपर की ओर चली गई तो उसकी तो मानो चीख ही निकल गी थी। रोशनदान में से बड़ी-बड़ी आंखों तथा लम्बे-लम्बे दांतों वाला एक चेहरा उसकी ओर देख रहा था।  मारे डर के रोहन चीख पड़ा—‘मम्मी’ उसकी चीख सुनकर मम्मी झट से उसके कमरे में चली आई—‘क्या हुआ रोहन, चीख क्यों रहे हो?’ मगर रोहन तो झट से मम्मी से लिपट गया था। ‘क्या हुआ? डर क्यों गया? मम्मी ने फिर पूछा। मारे डर के कुछ देर तक तो रोहन कुछ बोल ही न पाया। फिर उसने कांपती आवाज़ में कहा—‘मम्मी, रोशनदान में से भूत झांक रहा था।’ ‘खांक झांक रहा था’, उसकी बात सुनते ही मम्मी ने थोड़ा गुस्से में कहा—‘टी.वी. में ऊल-जुलूस देखता रहता है, तब तो किसी की बात नहीं सुनता... अब डर लग रहा है... चल उधर कमरे में सो जा...’। रोहन चुपचाप मम्मी के साथ दूसरे कमरे में चला गया। अब और कोई चारा भी तो न था उसके पास। मारे डर के वह अभी भी कांप रहा था। ऐसी अवस्था में वह कैसे पढ़ सकता था। इसलिए वह मम्मी वाले कमरे में जाकर सो गया। मगर रात भर उसे अजीब से डरावने सपने आते रहे। कभी लगता कि चलते हुए किसी ने उसकी बाजू पकड़ कर जोर से झटका दिया हो। कभी लगता कोई उसके बिस्तर के पास खड़ा जोर-जोर से हंस रहा हो। इस घटना को कई दिन हो गए थे। मगर उस दिन के पश्चात् फिर से रोहन के साथ पहले जैसा कुछ नहीं घटा था। उस दिन स्कूल में किसी विद्वान व्यक्ति ने लैक्चर दिया था। अंध-विश्वास की बातें करते हुए उन्होंने कहा था कि विज्ञान के इस युग में आजकल भी लोग वहमों तथा भ्रमों में जकड़े हुए हैं। उन्होंने भूत-प्रेतों के बारे में भी बात की थी। उन्होंने कहा था कि भूत-प्रेत का कोई अस्तित्व नहीं यह तो मात्र मन का भ्रम होता है। रोहन मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ कि वैज्ञानिक जानकारी के कारण उसने अपने डर पर नियंत्रण कर लिया था और यह भी प्रमाणित हो गया था कि भूत-प्रेत मात्र मन का वहम होता है। वास्तव में उनका कोई अस्तित्व नहीं होता।  रोहन ने मन ही मन यह निश्चय भी कर लिया था कि आज के पश्चात् वह ऐसे बिना सिर-पैर के तथा वास्तविकता से कोसों दूर सीरियल नहीं देखा करेगा। अब तो यह वैज्ञानिक सोच को विकसित करने वाले तथा ज्ञान में वृद्धि करने वाले प्रोग्रामों को ही प्राथमिकता देगा ताकि अज्ञानता से भरे उसके अंधकारमय जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैल सके।

 मो. 98153-59222