बहुत कठिन है डगर कोरोना के मरघट की

रवीन्द्र बाबू ने कभी ‘अकेला चलो रे’ का संदेश दिया था। उसकी आवाज़ आज चारों ओर गूंजती है। ‘सुनो’, तेरे साथ कोई भी न आये, फिर भी तुझे अकेला चलना है। तेरे रास्ते में बिजलियां गिरें, तूफान आये, फिर भी तुझे चलना है।’ लेकिन चलना कहां है? पुलिस वाला बेंत बरसाते हुए, या महामारी के निरंतर बढ़ते हुए संक्रमण के आंकड़े पूछते हैं, बंधु चले कहां। अकेला चलने के लिये नहीं कहा, अकेले घर में बंद होकर जीने के लिये कहा है। कैसे बताएं उन्हें कि दिन-रात अपने स्वनिर्वासन में आइने में अपने चेहरे का सामना करना कितना कठिन होता है। मेकअप रहित चेहरा आपको मोहभंग की स्थिति में पहुंचा देता है।
अब कैसे करें उसके गुलो रुखसार की बातें, कंटीले नैनों का ज़िकर! उसकी फैली हुई कमर देखकर उसे डाइटिंग की सलाह तो दी जा सकती है, लेकिन उसकी उपमा बरसाती हुई सर्पीली कमर से नहीं दी जा सकती।
सारा दिन बात करने के लिये हैं भी क्या? महामारी विश्वव्यापी हो रही थी, हम सोचते थे हमारा राष्ट्र पकड़ में नहीं आयेगा, राष्ट्र फंसा तो सोचते थे  हमारे राज्य, हमारे शहर हमारे मोहल्ले पर उसकी फांस और फंदे नहीं आयेंगे। अब मौत के कदमों की आहट करीबी होती है। मीडिया के खबरची हर क्षण उसकी खबरों को और भी भयानक बना देते हैं। लीजिये अब दिन-प्रतिदिन सद्गृहस्थ बनने का वक्त आ गया। अब घर वाली को भी यही संदेश मिला है, इसलिए वह अपने राम को अनुशासन का महत्व समझा रही है। इस महामारी में स्वच्छ तो रहना ही होगा। अकेलेपन को झेलते हुए उनकी कमर का दर्द जाग उठा, घुटने पीड़ा देने लगे हैं। बैठे-बैठे अपच से अर्जीण हो गया। खट्टी डकाराें के इलाज के लिए अब तो पड़ोस के सर्वज्ञाता भी अपनी खिड़की का पल्ला नहीं खोलते। अब हकीम से कर्ता तक सब रोल हमें ही करने होंगे। देसी नुस्खों से मालिश तक के सब गुर सीखने होंगे। माहौल असाधारण है, और स्वनिर्वासन है। इसलिए घराें में सफाई का महत्व समझिए। हम सहधर्मी हैं और सहयोगी भी। प्रगतिशील घोषित थे और नारी समानाधिकार और सशक्तिकरण के बहुत बड़े पैरोकार। इसलिए अब घर में पोचा लगाने में मदद करनी है। जल में फिनाइल के मिश्रण का पोचा लगाइए। हम आज तक अपने महिमामण्डन के लिये न जाने कितनी तस्वीरें व्ह्टसअप और फेसबुक पर डालते हैं, कृप्या अपने फर्श पर पोचा लगाने के रमदान की तस्वीरें भी डाल दीजिये। ऐसे ही बहुत से अन्य पीड़ित पतियाें की लाइक आप को मिल जाएंगे। एक पीड़ित पति संगठन बनाने की पे्ररणा भी आप को मिलेगी। अभी तो फिलहाल अपने आपको नारी समानाधिकार का हामी प्रगतिशत पति कहकर सामाजिक मीडिया पर अपना महिमामण्डन कर लो।
जब से महामारी की इस भयानवी पद्चाप के साथ हमारा आत्मनिर्वासन करके किवाड़ों के पीछे हुआ है हमारी तो छ: की छ: इन्द्रियां जाग उठी हैं। छत से मुंडेरों पर हमें कौओं और कबूतरों के साथ नये-नये पंछियों की प्रजातियां नज़र आने लगी। हम कोयल की कुहक सुनने की उम्मीद में छत के एक कोने में बैठे हैं, ताकि बच्चाें की चिल्लओं और बेगम साहिबा के उपालम्यों से छुटकारा मिले। कोयल की रुठी हुई आवाज़ हमें सुनाई नहीं दी, हां इस बीच हमें अपनी ही आवाज़ अधिक कर्कश सुनाई देने लगी। आज तक अपनी ही आवाज़ के इश्क में गिरफ्तार रहे। सदा सोचते थे, हमसे अच्छा न कोई सोचता है, और न कोई बोलता है। अब अकेले हुए तो इस विश्वास का भ्रम खुलता नज़र आने लगा। हमें ही क्याें लगता है इस भ्रम में तो हमारी पूरी दुनिया पूरी सदी गिरफ्तार हो गई थी। अब रहस्यमय दैनिक शक्ति का कुल्हाड़ा पड़ा, तो कांपता हुआ आदमी तंत्र-मंत्र गृह नक्षत्र नज़मियों और खाल फेंकने वालों का सहारा लेता नज़र आता है। कभी सोये हुए भाग्य को थाली बजा कर वापिस बुलाता है और उसे दूसरों का सम्मान बताता है। कभी घर की बत्ती बुझा कर मोमबत्ती जला अंधेरे से हटने की गुजारिश करता है। अरे यह अंधेरा तो एक न एक दिन छूट ही जायेगा, चाहे उसकी कितनी ही बड़ी कीमत क्याें न चुकानी पड़े। लेकिन मनों पर छाये अंधेरों को दूर कौन करेगा?वह स्वच्छ निर्मल आकाश भी नहीं कि जिसमें एक नई चमक लेकर उभरता हुआ चांद हमें उस वातावरण का आभास देता है कि जिसे पाने के लिए पर्यावरण प्रदूषण के नाम पर हमने करोड़ों रुपये व्यय कर दिये थे।
जानते हैं कि यह कठिन वक्त गुज़र जायेगा तो यह निर्मल आकाश यह चमकता हुआ चांद हमसे विदा ले लेगा। डरे हुए घराें के किवाड़ खुल जायेंगे। नये वक्त का जश्न मनाते हुए पुराने मसीहा अपने मास्क उतार मुखौटे पहन चले आयेंगे, आपके लिये चिंता भरे संभाषणों के साथ कि बहुत कठिन रही डगर कोरोना पनघट की। उसे और कठिन बनाया मास्क से लेकर सब्जी बेचने वालों ने दुगने-चौगुने दाम लेकर।
अब वक्त बदल गया है। आइए, इस आकाश को फिर गंदला करें। चांद को उड़ती धूल में खो जाने दो। नव निर्माण को शुरू करना है। धनराशियां आबंटित करो, सर्वहारा के नाम पर हमारी जेबों के लिए। इन महाबलियों को नये समाज को पुराने तेवर देने का यह मंत्र फूंकना है। बस महामारी टलने का इंतज़ार कीजिये।