काश, सरकारों को  हमारे आंसू नज़र आएं

तीन महीने पहले पीछे जाया जाए तो करतारपुर गलियारे को तय समय पर पूरा करके 9 नवम्बर को खोल दिया गया था। 3 नवम्बर 2019 को मीडिया की आंख के साथ पूरी दुनिया ने देखा और पढ़ा था कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि पाकिस्तान सिख यात्रियाें को स्वागत करने पर उनकी सेवा के लिए पूरी तरह तैयार है। दुनिया ने देखा कि दो हज़ार मजदूरों और इंजीनियरों ने तीन शिफ्टों में दिन-रात काम करके बाबा गुरु नानक के दरबार को सजाया।
9 नवम्बर को दुनिया का सबसे बड़ा दरबार खुल गया है और भारत और पाकिस्तान दोनों पंजाब के पुत्र इक्ट्ठे एक स्थान पर ज़मीन पर बैठे। कोई बड़ा-छोटा और कोई दुश्मन नहीं था। सब बाबा के दरबार में आकर एकजुट हो गये। बाबा के दरबार में 72 वर्षों की दुश्मनी पर रोज़-रोज़ की जंग की तकलीफ और सारे जख्म भी भुला दिये। लेकिन क्या किया जाये राजनीतिज्ञों का कि बाबा के दरबार के बाहर निकलते ही फिर उसी स्थान पर वापिस आकर खड़े हो जाते हैं जहां उनको नहीं होना चाहिए। सवाल यह है कि क्याें हमारे राजनीतिज्ञ गलत पोजीशन छोड़ने को तैयार नहीं होते? क्यों अपनी नीतियों को अच्छी नहीं करना चाहते?
एक फरवरी को मुझे अपनी माता जी के साथ भारत जाने का मौका मिला। हम बाघा और अटारी को देखकर हैरान थे कि हमारे दोनों के अलावा कोई भी पाकिस्तान और भारत नहीं जा रहा था। चार या पांच भारतीय थे जो पाकिस्तान से भारत वापिस जा रहे थे। मुझे पत्रकार होने के नाते पाकिस्तान में बहुत कुछ कहा गया और समझाने की कोशिश की गई कि भारत के हालात ठीक नहीं, ‘आप न जाएं’। लेकिन मुझे अपने एक दोस्त की बेटी के विवाह में अमृतसर में शामिल होना था और उत्तर प्रदेश के ज़िला सहारनपुर में अपने परिवार को मिलना था, क्योंकि मेरे परिवार में दो मृत्यु हो गई थी। आप यह जानकर हैरान होंगे कि तीन या चार वर्ष के बाद हमें परिवार के साथ मिलने का मौका मिला और हम भी सारे डर और खौफ को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़े और अपने नानके (भारत) पहुंचे। मेरी माता जी चल-फिर नहीं सकते, उनकी दाईं टांग का तीन वर्ष पहले आप्रेशन हुआ था। शुगर और हार्ट के मरीज़ भी हैं। दोस्त की बेटी का 18 जनवरी को विवाह था। परंतु मेरी माता की दोनों आंखों का आप्रेशन था इसी वजह से हम थोड़े लेट हो गये लेकिन अमृतसर पहुंचने की अरदास थी, इसीलिए हम पहुंच गये। हमने अमृतसर की धरती को सलाम करते हुए ढूंढते-ढूंढते अपने दोस्त के घर पहुंचे। पंजाब के सारे निवासी अच्छी तरह जानते हैं कि जब बेटी का विवाह हो तो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। हम भी खाली हाथ नहीं गये। बेटी को पाकिस्तान की ओर से सुहाग जोड़ा दिया और दुआएं दीं। हमारे अन्य भी बहुत दोस्त पाकिस्तान से भारत जाना चाहते थे लेकिन डर के मारे नहीं जा सके। 
किसे मां दा पुत्तर न मरे...
कोई जीऊंदे जी न बिछड़े...
कोई परदेसी न हौवे...
काश एह लोहे दी दीवार नरम हो जावे...
मैनें तो अपनी माता की दुआएं सुन ली... पता नहीं किसी सरकार ने सुनी हैं कि नहीं। पता नहीं कोई क्या समझेगा? मुझे इसके बारे कुछ नहीं पता। बस इतना याद था कि ज़मीन की कोई सरकार सुने न सुने ऊपर बैठी सबसे बड़ी सरकार हमारी ओर हमारे जैसे बंदों की अरदास जरूर सुनेगी। जिस तरह करतारपुर गलियारा खोला है, उसी तरह बाघा भी खुलेगा। दोस्ती भी होगी, बातचीत भी होगी, जितना मर्जी खून बहा लो, नफरत भी जरूर खत्म होगी, मेरी एक दोस्ती हम सभी परिवार को मिला सकती है और दोनों देशाें की दोस्ती लाखों और करोड़ों बिछड़े हुए को मिला सकती है।
हम जब भारत गये थे और वापसी पर आकर पता लगा कि भारत पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिन्द्र सिंह की पत्नी परनीत कौर ने 150 सिख औरतों के साथ गुरुद्वारा बाबा गुरुनानक के दर्शन किए। पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के स. इन्द्रजीत सिंह ने प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया। इस मौके पंजाब की बेटी ने जो कुछ कहा, वह समझने और सुनने के काबिल था। काश बड़े देश की बड़ी सरकार बड़े दिल के साथ बड़े फैसले करे।  हो सके तो आवाज़ को सुनो। बाघा और अटारी को भी खोलें। आज भारत पंजाब की बेटियां पाकिस्तान की तारीफ कर रही हैं। हमारे प्रधानमंत्री बार-बार कह रहे हैं, ‘पाकिस्तान में आपका स्वागत है’। आप चाहें तो वह समय भी आ सकता है कि पाकिस्तानी पंजाब की बेटियां भी बिना किसी सुरक्षा और अटारी या अमृतसर आकर भारत की तारीफ कर सके। काश कोई कहने वाला हो, भारत में आपका स्वागत है।’