किसान के हित में सिद्ध होंगे केन्द्रीय कानून  

किसान को छोड़कर देश का हर तबका अपने द्वारा तैयार किए गए उत्पाद का दाम खुद तय करता है। वाहन बनाने वाली कम्पनियां उसका दाम भी तय करती हैं कि वे कितने में बेचेंगी तो उनकी लागत के बाद तय मुनाफा निकल आएगा। कमोबेश सारे उत्पादक ही तय करते हैं कि उनके उत्पाद की कीमत क्या होगी लेकिन बेचारा किसान जो पैदा करता है, उसकी कीमत कोई और यानी सरकारें, समितियां आदि तय करती हैं। किसान की दुश्वारी यहीं नहीं खत्म होती। अपने उत्पाद को बेचने की तय कीमत भी उसे नहीं मिलती। कई बार वह अपने उत्पाद को औने-पौने दामों में बेचने को विवश होता है। अपर्याप्त सरकारी खरीद, दलालों का दलदल और भंडारण की किल्लत से उसकी फसलों की लागत भी नहीं निकल पाती है। किसानों की इन समस्याओं को दूर करने के लिए लंबे अरसे से मांग की जा रही है। अब  केन्द्र सरकार ने कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा), मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता और कृषि सेवा पर अध्यादेश जारी किया है। इससे किसानों को राज्य के भीतर या बाहर कहीं भी अपनी पसंद के बाज़ार, संग्रह केंद्र, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज और कारखाने को अपनी उपज बेचने की छूट मिल गई है। मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश किसानों को कृषि व्यवसाय से जुड़ी कम्पनियों, थोक व्यापारी और निर्यातकों के साथ पहले से तय कीमतों पर अपनी उपज की बिक्र ी का करार करने की छूट देता है। कहीं भी उपज बेचने की छूट के साथ अनुबंध खेती की अनुमति किसानों के कल्याण में सोने पर सुहागा साबित हो सकती है। हमारे किसान न केवल अपनी उपज का लाभकारी मूल्य हासिल करने में समर्थ होंगे बल्कि उन्नत खेती की ओर भी अग्रसर हो सकेंगे। एक ऐसे समय में जब खेती देश की अर्थव्यवस्था की बड़ी संबल बनते दिख रही है तो ये बहुप्रतीक्षित कदम किसानों की तकदीर संवारने में निर्णायक साबित हो सकते हैं। किसान सक्षम होंगे तो ग्रामीण क्र यशक्ति बढ़ेगी जो देश के उद्योगों की मांग-आपूर्ति में उत्प्रेरक का काम करेगी। 
हालांकि देश में कृषि विशेषज्ञों का एक ऐसा भी वर्ग है जो मानता है कि सरकार के इस कदम का बहुत प्रभावी असर नहीं दिखेगा। वे इसके साथ अन्य कदमों को उठाए जाने की दरकार बताते हैं। कृषि क्षेत्र में तस्वीर बदल देने वाले तीन कदम उठाए गए हैं। इसको लेकर कुछ विशेषज्ञ बहुत आश्वस्त भले न हों लेकिन इस बहुप्रतीक्षित मांग के पूरा होने का सकारात्मक असर ज़रूर दिखेगा। अब इन कदमों और इनके असर के बारे में यह जानना ज़रूरी है। 
पहले कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम में सुधार पर गौर करें। इससे किसान अपनी उपज को जहां उसे उचित और लाभकारी मूल्य मिले, वहां बेच सकते हैं। इस विषय में चार बड़े सुधार किए गए हैं। पहला, अब तक कृषि उत्पादों को केवल स्थानीय अधिसूचित मंडी के माध्यम से ही बेचने की अनुमति थी। अब किसी भी मंडी, बाज़ार, संग्रह केन्द्र्र, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज, कारखाने आदि में फसलों को बेचने के लिए किसान स्वतंत्र हैं। इससे किसानों का स्थानीय मंडियों में होने वाला शोषण कम होगा और फसलों की अच्छी कीमत मिलने की संभावना बढ़ेगी। अब किसानों के लिए पूरा देश एक बाज़ार होगा। दूसरा, मंडियों में केवल लाइसेंस धारक व्यापारियों के माध्यम से ही किसान अपनी फसल बेच सकते थे। अब मंडी व्यवस्था के बाहर के व्यापारियों को भी फसलाें को खरीदने की अनुमति होगी। इससे मंडी के आढ़तियों या व्यापारियों द्वारा समूह बनाकर किसानों के शोषण करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा। अधिक संख्या में व्यापारी किसानों की फसल खरीद सकेंगे जिससे उनमें आपस में किसान को अच्छा मूल्य देने के लिए प्रतिस्पर्धा होगी। तीसरा, मंडी के बाहर फसलों का व्यापार वैध होने के कारण मंडी व्यवस्था के बाहर भी फसलों के व्यापार और भंडारण संबंधित आधारभूत संरचना में निवेश बढ़ेगा। चौथा, अब अन्य राज्यों में उपज की मांग, आपूर्ति और कीमतों का आर्थिक लाभ किसान स्वयं या किसान उत्पादक संगठन बनाकर उठा सकते हैं। किसानों को स्थानीय स्तर पर अपने खेत से ही व्यापारी को फसल बेचने का अधिकार होगा। इससे किसान का मंडी तक फसल ढोने का भाड़ा भी बचेगा। 
अनुबंध खेती की बात करें। यह कदम फसल की बुआई से पहले किसान को अपनी फसल को मानकों और तय कीमत के अनुसार बेचने का अनुबंध करने की सुविधा प्रदान करता है। इससे किसान एक तो फसल तैयार होने पर सही मूल्य न मिलने के जोखिम से बच जाएंगे, दूसरे उन्हें खरीदार ढूंढने के लिए कहीं जाना नहीं होगा। किसान सीधे थोक और खुदरा विक्र ेताओं, निर्यातकों, प्रसंस्करण उद्योगों आदि के साथ उनकी आवश्यकताओं और गुणवत्ता के अनुसार फसल उगाने के अनुबंध कर सकते हैं। इसमें किसानों की जमीन के मालिकाना अधिकार सुरक्षित रहेंगे और उसकी मर्जी के खिलाफ फसल उगाने की कोई बाध्यता भी नहीं होगी। इसमें फसल खराब होने के जोखिम से भी किसान का बचाव होगा। किसान खरीदार के जोखिम पर अधिक जोखिम वाली फसलों की खेती भी कर सकता है। 
अंत में आवश्यक वस्तु अधिनियम पर गौर करें। इससे अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, आलू और प्याज सहित सभी कृषि खाद्य पदार्थ अब नियंत्रण से मुक्त होंगे। इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा नहीं लगेगी। 
किसान को आर्थिक रूप से मज़बूत करने के लिए केंद्र सरकार ने सही कदम उठाया है। कोरोना संकट के वक्त मंडियों में खरीद की व्यवस्था बेहतर रही। अब ये नए अध्यादेश नए रास्ते लेकर आए हैं। हम कभी सोच नहीं सकते थे कि कारखाने तक फसल पहुंचा सकेंगे पर अब ऐसा होने वाला है। (अदिति)