बुज़ुर्गों की समस्याओं की ओर ध्यान दे सरकार

अ मरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 19 अगस्त 1988 को संयुक्त राष्ट्र में यह प्रस्ताव पेश किया कि बुजुर्गों की समर्पण भावना, उनकी उपलब्धियों और जीवन भर की सेवाओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए हर साल 21 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व बुजुर्ग अर्थात सीनियर सिटीज़न दिवस मनाया जाये।
अच्छी और सुलभ चिकित्सा, बीमारियों की रोकथाम और स्वस्थ जीवन शैली या लाइफस्टाइल अपनाने से अब रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ने से पिछले पचास सालों में औसत आयु अठारह साल बढ़ी है। अनुमान है कि कोई भी व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा 120 साल तक जीवित रह सकता है, उससे ऊपर की उम्र के उदाहरण कम ही होंगे।
उम्र पर संगत का असर
यह एक हकीकत है कि हमारी सोच, काम करने के तरीके और कोई भी फैसला करने में हमारी जो सोहबत है, जिनके साथ रोज़ाना का उठना-बैठना होता है और हम किसी भी मसले पर जिनसे सलाह-मशवरा करते हैं, उनकी बात पर न केवल ़गौर करते हैं, बल्कि मानते भी हैं, अब उसका नतीजा चाहे अच्छा हो या बुरा, बस मन को तसल्ली रहती है कि जो किया सोच समझकर किया, इसके आगे जो भाग्य में लिखा है, वही होगा जिस पर किसी का कोई वश नहीं ।
बुढ़ापे और जवानी का संगम
देखा गया है कि वरिष्ठ नागरिक या बुज़ुर्ग बनने की दहलीज़ पर अक्सर उन लोगों के साथ वक्त बिताना, उनसे अपनी हर बात कहना, जो अपने से आधी उम्र तक के होते हैं, अच्छा लगता है। यह बात और है कि वे आपको किस दृष्टि से देखते हैं लेकिन आप उन्हें अपना राज़दार समझने लगते हैं।
सत्तर से नब्बे साल से ज्यादा के लोग भी अपनी आयु वालों से कम और काफी कम उम्र के लोगों के साथ ज्यादा उठना-बैठना और वक्त बिताना पसंद करते हैं। उनके उम्रदराज होने का उनकी इस आदत का बहुत बड़ा योगदान होता है, चाहे इससे उनकी बदनामी या फजीहत ही क्यों न हो।
इस लिए उनको कई प्रकार के कटाक्षों का सामना भी करना पड़ सकता है लेकिन ऐसे लोगों पर कोई असर नहीं होता, वे इसे अपनी ज़िंदादिली मानते हुए उम्र को सही मायने में एक नम्बर की तरह लेते हुए जीते रहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अगर लंबी उम्र लिखवा कर लाए हैं तो उसे अपने युवा दोस्तों, परिवार के सदस्यों और अपनी जवानी के साथियों के साथ ही गुज़ारना बेहतर है।
वृद्धावस्था की परेशानियां
हमारे देश में जैसी सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था है, स्वास्थ्य सेवाओं की जो हालत है और आर्थिक रूप से या तो सरकार की पैंशन, अगर मिलती हो, बुज़ुर्ग होना अक्सर एक अभिशाप बन जाता है। इसीलिए ज्यादातर लोगों में आम तौर पर हरेक चीज़ की इच्छा हो सकती है लेकिन उम्र बढ़ने की नहीं। जो काम करता रहा, वह तब तक देता रहा, जब तक उसने काम करना बंद नहीं किया पर उसके बाद क्या, यह प्रश्न सामने आने पर उसकी मानसिकता ऐसी हो जाती है कि जीने को मन नहीं करता और बढ़ती उम्र बोझ लगने लगती है और जीवन एक अभिशाप की तरह गुज़रने लगता है।
वरिष्ठ नागरिकों के लिए कहने को तो सरकार अनेक योजनाएं और सुविधाएं गढ़ती रहती है लेकिन आज तक रेल में चढ़ना हो या सीढ़ियां उतरना हो या फिर अपने किसी अधिकार के लिए लड़ना हो तो उस समय उन्हें जितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, इसके एक दो नहीं, हज़ारों उदाहरण मिल जाएंगे। यह सरकार और समाज की कमी ही तो है कि बूढ़े होने पर कोई बीमा कम्पनी उसका बीमा नहीं करती, अगर अकेला रहता हो और बीमार पड़ जाए तो उसे डॉक्टर और अस्पताल निराश्रित  और बेसहारा मानकर दुर्गति करने से नहीं चूकते। सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
बढ़ती उम्र में चिकित्सा विज्ञान के अनुसार हमारे दिम़ाग का आकार सिकुड़ने लगता है, फेफड़ों का लचीलापन कम होते जाने से सांस लेने और छोड़ने में कष्ट होता है, हृदय कोशिकाओं में रुकावट पैदा होने से खून का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता, सिर से लेकर पैर तक किसी न किसी अंग में दर्द रहने लगता है और चलने-फिरने में तकलीफ  होती है, ऐसे में अगर रुपए पैसे की परेशानी हो जाए तो फिर दुखों के अम्बार लगने में समय नहीं लगता, इसलिए हमेशा अपने बुढ़ापे के लिए एक अच्छी खासी रकम बचा कर रखने में ही समझदारी है।
अंत में यह बात कही जा सकती है कि अगर किसी को छड़ी लेकर चलते देखो तो यह मत समझ लेना कि वह बेसहारा है, मोहताज है, बल्कि वह आत्म-निर्भर है। उसने किसी के कंधे का सहारा नहीं लिया, आश्रित नहीं बना, उसके चेहरे और हाथों की झुर्रियों का मतलब यह है कि यहां कभी मुस्कान रहती थी। अगर किसी ऐसे व्यक्ति को हंसा सको तो समझना कि ईश्वर के दर्शन हो गए। (भारत)