टके-सा जवाब तो मिला है चीन को!

आजकल भारत और चीन के बीच में लद्दाख सीमा को लेकर जो विवाद तथा संघर्ष चल रहा है और दोनों देशों ने भारी संख्या में अपनी अपनी सेनाएं तथा गोला बारूद और लड़ाई का सामान इकट्ठा कर रखा है, उससे सारी दुनिया इसलिए चिंतित है कि कहीं एशिया की परमाणु अस्त्रों से युक्त इन दो महा-शक्तियों में युद्ध ही न छिड़ जाए। नि:संदेह इन दोनों देशों समेत सारा विश्व कोरोना वायरस महामारी के कारण मंदी से जूझ रहा है और सारे संसार के देशों की तरह इन दो देशों में भी आर्थिक स्थिति खस्ता हालात में है लेकिन इसके बावजूद दोनों देश अपने अपने राष्ट्रीय स्वयं अभिमान की रक्षा हेतु अगर युद्ध करने पर उतारू हो जाते हैं तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। चीन पहले भी कई बार वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर चुका है जिसे भारत ने बड़ी शालीनता से चीनी सेना की गलतफहमी की बात मान कर अनदेखा कर दिया। दोनों देशों की सेनाओं में डोकलाम में भी संघर्ष होता लेकिन जैसे कैसे बातचीत के द्वारा उसे निपटा दिया गया। लेकिन कुछ समय पहले चीनी सैनिक लद्दाख के हमारे क्षेत्र में घुस आए और हमारे निहत्थे सैनिकों को काफी नुकसान पहुंचाया। सीमा विवाद को निपटाने के लिए दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों तथा विदेश मंत्रियों की रूस की राजधानी मास्को में बातचीत भी हुई जिसमें दोनों देशों में बातचीत के द्वारा विवाद को निपटाने और अपनी अपनी सेनाओं को अपने अपने क्षेत्र में पीछे की तरफ  ले जाकर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ले जाने की सहमति भी हुई लेकिन इसके बावजूद चीन लद्दाख से उत्तराखंड तक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर युद्ध का सामान आदि भारी मात्रा में इकट्ठा करके भारत को डराने की कोशिश कर रहा है। एक तरफ  वह बातचीत के द्वारा सीमा विवाद को हल करने की बात कहता है, और दूसरी तरफ  अपनी सैनिक शक्ति वास्तविक नियंत्रण रेखा पर और मजबूत कर रहा है। ऐसी स्थिति में उस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में बयान देते हुए कहा है कि चीन ने लद्दाख क्षेत्र में हमारे 38000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल कब्जा कर रखा है और 1963 में पाकिस्तान ने पीओके का 5000 वर्ग किलोमीटर इलाका चीन को दे दिया था। असल में चीन एक झगड़ालू, महत्वाकांक्षी, साम्राज्यवादी तथा आर्थिक और सैनिक दृष्टि से ताकतवर होने के कारण अहंकारी हो गया है और विश्व की सुपर पावर अमरीका समेत और कई देशों को समय-समय पर धमकी देता रहता है। यही कुछ आजकल वह भारत के साथ भी कर रहा है लेकिन चीन को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि 2020 का भारत 1962 वाला भारत नहीं है, जब उसने हमें पराजित करके हमारी 90000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया था जो कि अभी तक भी वापिस नहीं कर रहा। कई वर्षों से दोनों देशों में सीमा विवाद को हल करने के लिए कई स्तरों पर बातचीत हो चुकी है जिसको आधार बनाकर चीन भारत के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाता रहा है और चीन पर हमारी ज़रूरतें पूरा करने के लिए निर्भरता इसलिए बढ़ती गई क्योंकि चीनी वस्तुएं सस्ती होती हैं। चीन सुपर पावर बनना चाहता है। इसके वुहान शहर में एक प्रयोगशाला में कोरोना वायरस की खोज की गई। इससे पहले कि इसके फलस्वरूप इसके अपने देश में भारी तबाही मचे, इसने इसका तो प्रबंध कर लिया जिससे कोरोना वायरस की वजह से वुहान तथा चीन के अन्य शहरों में इससे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ परंतु इसने विश्व स्वास्थ्य संगठन को या अन्य किसी देश को इस महामारी के बारे में सूचना नहीं दी जिसके कारण आज संसार के करोड़ों लोग इस महामारी से संक्रमित हैं और कई लाख लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। अब यह जगत विदित हो चुका है की कोरोना को संसार में फैला कर तबाही मचाने का जिम्मेदार चीन ही है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद कोरोना वायरस से जनमानस की सबसे ज्यादा तबाही हुई है जिसको लेकर विश्व के अधिक से अधिक देश चीन के खिलाफ  होते जा रहे हैं और उसकी बहुत बदनामी हो रही है। इससे दुनिया का ध्यान हटाने के लिए चीन ने भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर तनाव बढ़ा दिया है। चीन के वैज्ञानिकों ने यह मान लिया है और विश्व को बता दिया है की कोरोना वायरस का अविष्कार चीन के वुहान शहर में ही हुआ था।  चीन यह कभी नहीं चाहता कि भारत आर्थिक तथा सैनिक दृष्टि से उसकी बराबरी करें। यही कारण है कि वह पाकिस्तान को भारत के खिलाफ  सभी प्रकार की सहायता देता रहता है। इतना ही नहीं इसने भारत को समुद्र के रास्ते भी चारों तरफ घेरने के लिए प्रबंध करने शुरू कर दिए है। चीन की कार्यशैली यह है कि यह विभिन्न देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए आर्थिक सहायता देता है। जब यह देश ऋण का पैसा वापस नहीं कर पाते तो वह उन्हें भारत के खिलाफ  उकसाता है और उनके प्राकृतिक साधनों का या बंदरगाहों का दुरुपयोग करता है। इस लिस्ट में नेपाल अभी-अभी शामिल हुआ है। असल में देखा जाए तो चीन विश्वास के काबिल नहीं है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने चीन के साथ मित्रता का हाथ बढ़ाया था। दोनों देशों ने पंचशील पर हस्ताक्षर भी किए थे जिसके मुताबिक दोनों देश एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, आपसी समस्याओं को बातचीत के द्वारा हल करने की कोशिश करेंगे। उन दिनों में दोनों देशों में संबंध इतने नज़दीकी हो गए थे की भारत में ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ के नारे लगते थे लेकिन हमें पता नहीं था कि वह भारत पर हमला करने की तैयारी कर रहा था।  भारत ने बहुत सारी चाइनीस ऐप बंद कर दी हैं जिन वस्तुओं को हम चीन से मंगवाते हैं उन्हें अपने देश में बनाने की तैयारी करके आत्म-निर्भर होने की कोशिश कर रहे हैं। विदेशी कम्पनियों ने चीन में अपना कारोबार बंद करने की घोषणा की हुई  है। 

-मो: 94163-59045