संसद में हंगामे

महामारी के दौरान संसद के मानसून अधिवेशन का समय बहुत कम रखा गया था। यह समय 14 सितम्बर से एक अक्तूबर तक निर्धारित किया गया था अर्थात् बिना किसी अवकाश के यह मात्र 18 दिनों के लिए संसद का अधिवेशन बुलाया गया था। इस दौरान 11 अध्यादेशों सहित 23 विधेयक पेश किये जाने तय किये गये थे। स्वीकृत होने के बाद 11 बिलों ने अध्यादेशों का स्थान लेना है। 
सदन में कृषि से संबंधित तीन अध्यादेश भी पेश किए गये। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य कर्मियों को बचाने का विधेयक भी पेश किया गया तथा एक वर्ष के लिए सांसदों के वेतन में 30 प्रतिशत की कटौती भी इनमें शामिल है, परन्तु जो हालात बन रहे हैं, उनके दृष्टिगत संसद का अधिवेशन निर्धारित समय से पहले ही खत्म होने की सम्भावना है। एक ओर कोरोना का कहर, दूसरी ओर चीन से तनाव एवं तीसरी ओर डावांडोल होती आर्थिकता आदि देश के समक्ष बड़ी चुनौतियां हैं। चाहे संसद की पूरी साफ-सफाई की जा रही है। सांसदों एवं सम्बद्ध कर्मचारियों के परीक्षण भी किये जा चुके हैं। इस आधार पर कुछ सांसदों को अधिवेशन में न आने के निर्देश भी जारी किये गये हैं। पिछले दिनों पंजाबी भाषा के संबंध में भी विचार-चर्चा चली। फिल्म जगत में नशे के मुद्दे के बारे में भी बहस हुई है। भिन्न-भिन्न पार्टियों के नेताओं की ओर से एक-दूसरे की आलोचना करने के अतिरिक्त हंगामे भी हुये हैं। टैक्स बिल में रिटर्न दाखिल करने और आधार कार्ड को पैन कार्ड के साथ जोड़ने की व्यवस्था को लेकर भी बात हुई है। चीन के साथ सीमा विवाद एवं तनाव को लेकर भी बहस हुई है। सरकार ने यह भी दावा किया है कि चाहे जी.एस.टी. कर वसूली में 29.1 प्रतिशत की कमी आई है परन्तु इसके बावजूद प्रदेश सरकारों को उनके हिस्से की अदायगी की जाएगी। परन्तु संसद में इन सब मामलों से अधिक कृषि से सम्बद्ध पेश किये गये विधेयक चर्चा का विषय बने रहे हैं, जिनके दोनों सदनों में पारित होने पर भारी हंगामे भी हुये हैं। इनका संबंध कृषि एवं किसानों के साथ है जो आज भी आर्थिक दृष्टिकोण से देश की रीढ़ की हड्डी हैं। इन विधेयकों के विरुद्ध संसद के साथ-साथ सड़कों पर भारी प्रदर्शन हो रहे हैं। अकाली नेता हरसिमरत कौर बादल का केन्द्रीय मंत्रिमंडल से त्याग-पत्र भी इसी क्रम का एक हिस्सा है। चाहे संसद में प्रधानमंत्री एवं केन्द्रीय मंत्रियों ने इस संबंध में विस्तृत स्पष्टीकरण भी दिये हैं तथा इनको लेकर किसान वर्ग को विश्वास दिलाया है, परन्तु किसान वर्ग अभी तक पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुआ। इन विधेयकों को लेकर लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी हंगामे हुये हैं। सदन इन विधेयकों को लेकर जंग का मैदान बनता हुआ नज़र आया था। 
इन हंगामों को लेकर भिन्न-भिन्न पार्टियों के 8 सांसदों को निलम्बित करने की घोषणा की गई थी जिससे कटुता और भी बढ़ गई दिखाई देती है। इस कार्रवाई के पक्ष में तथा विरोध में निरन्तर बयान भी दिये जा रहे हैं। ये सदस्य कृषि संबंधी विधेयकों पर ज़ुबानी मतदान के स्थान पर सदन में मतदान कराये जाने हेतु बज़िद थे जिसके कारण टकराव वाला बड़ा घटनाक्रम घटित हुआ। इससे सदन की मर्यादा भंग हुई है। चाहे सदन की कार्रवाई और भी सीमित कर दी गई है परन्तु संसद में उठा यह विवाद शीघ्रता से हल होने वाला नहीं है। आगामी समय में इसके और भी उग्र होने की सम्भावनाएं दिखाई दे रही हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द