बासमती में मंदी को रोकने हेतु सरकार किसानों की सहायता करे

जिन किसानों ने पूसा बासमती 1509 किस्म की काश्त की है, उन्होंने कटाई शुरू कर दी है और कुछ किसान माझा की मंडियों में या हरियाणा में बेचने के लिए फसल ले जा रहे हैं, जहां उनको 1800-2000 रुपये प्रति क्ंिवटल मूल्य मिल रहा है। यह मूल्य गत वर्ष के मुकाबले लगभग 1000 रुपये प्रति क्ंिवटल कम  है। उत्पादकों में हाहाकार मची हुई है। पूसा बासमती-1509 कम समय में पकने वाली किस्म है। यह 115-120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म के प्रसिद्ध चावलों के ब्रीडर तथा निर्देशक आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली डा. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि इस किस्म से अच्छा उत्पादन तथा गुणवत्ता वाली फसल लेने के लिए इसे जुलाई के अंत में लगाना चाहिए। जब यह मौनसून की बारिशों से ही पक जाती है और इस तरह पानी की बचत होती है। पकने के समय ठंड पड़ने से इसमें बासमती के सभी गुण भी आ जाते हैं। निर्यातक इसे पीबी 1121 के लेबल से निर्यात करते हैं। 
स्टेट अवार्डी तथा राज्य सरकार के साथ चावलों का कृषि करमन पुरस्कार प्राप्त करने वाले आईसीएआर-आईएआरआई तथा पीएयू से सम्मानित प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका कहते हैं कि राज्य सरकार ने फसली-विभिन्ता लाने के पक्ष से किसानों को बासमती के काश्त करने हेतु उत्साहित किया, जिसके बाद 6.60 लाख हैक्टेयर रकबा बासमती की काश्त में आ गया जबकि गत वर्ष 6.29 लाख हैक्टेयर रकबा था। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख कर मध्य प्रदेश द्वारा उस प्रदेश में पैदा की जाने वाली बासमती को जीआई देने का विरोध किया ताकि पंजाब में बासमती की काश्त बढ़ सके। अब पंजाब सरकार को किसानों की मदद के लिए आगे आना चाहिए ताकि उनको बासमती का उचित मूल्य मिल जाये। पंजाब मंडी बोर्ड द्वारा लिये जा रहे 4.5 प्रतिशत मार्किट फीस तथा ग्रमीण विकास फंड आदि निर्यातकों को माफ कर देने चाहिए। इसके अलावा आढ़ती 2.5 प्रतिशत आढ़त तथा 2 प्रतिशत मासिक ब्याज किसानों से ले रहे हैं। इस तरह किसानों का शोषण हो रहा है। 
आल इंडिया राईस एक्सपोर्टज़र् एसोसिशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के सुझाव के अनुसार किसानों का शोषण बंद करने हेतु सरकार को यह कर देना चाहिए कि सिर्फ 2500-2800 रुपये की कीमत पर खरीदी गई बासमती ही निर्यात हो सकेगी। किसानों को जो वर्तमान मूल्य मिल रहा है, उससे काश्त के खर्चे भी पूरे नहीं होते। धान की एमएसपी 1880 रुपये प्रति क्ंिवटल तथा बासमती का इससे भी कीमत पर बिकना किसानों को बहुत बड़ा घाटा है। व्यापारी किसानों को इसलिए कम कीमत दे रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि किसान इसका भंडारण नहीं कर सकते। 
आढ़ती भी अब किसानों को कज़र्ा देने से पीछे हट रहे हैं। ऐसे अवसर पर किसानों के पास अन्य कोई विकल्प न हो और सरकार भी उनकी मदद के लिए न आए तो व्यापारी इकट्ठे होकर किसानों को कम कीमत देकर उनको लूटने का प्रयास करते हैं। शुरू-शुरू में दो-तीन दिन किसानों को पूसा बासमती-1500 का 2200 रुपये प्रति क्ंिवटल तक मूल्य मिला। जब व्यापारियों ने देखा कि इस किस्म की काश्त में रकबा अधिक है तो उन्होंने इसका लाभ उठाना शुरू कर दिया। बासमती की काश्त में कुल रकबे का लगभग 40 प्रतिशत (2.64 लाख हैक्टेयर) रकबा अकेली पूसा बासमती-1509 की काश्त में है।  
कृषि तथा किसान भलाई विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार ेएरी कहते हैं कि वह आल इंडिया राईस एक्सपोर्टरज़र् एसोसिएशन से तालमेल करेंगे ताकि व्यापारी किसानों को उचित मूल्य दें। अब जब पंजाब में गुणवत्ता वाली फसल पैदा की गई है और हानिकारक रसायनों से मुक्त है तो काश्तकार को उचित मूल्य मिलना चाहिए, जो व्यापारी तथा सरकार दोनों का दायित्व बनता है। 
उधर थोड़े समय में (123 दिनों) पकने वाली धान की पीआर-126 किस्म एमएसपी से कम 1200-1500 रुपये प्रति क्ंिवटल मंडियों में बिक रही है। आढ़ती एसोसिशन के सचिव हरबंस लाल का कहना है कि इस किस्म में 8-10 प्रतिशत चावलों का कोना काला हो जाता है और इस किस्म के चावलों की वसूली 60-63 प्रतिशत है, जबकि सामान्य दूसरी किस्मों की 65-68 प्रतिशत होती है। इस तरह इस किस्म के चावलों की वसूली दूसरी अन्य किस्मों से 45 प्रतिशत कम है। आढ़तियों की मांग है कि नयी किस्मों की एमएसपी तय करते समय व्यापारियों को साथ लेकर उस किस्म संबंधी व्यापारियों का दृष्टिकोण लेकर ही कीमत का निर्णय होना चाहिए। इससे किसानों को अपनी बिजाई योजना बनाने हेतु भी योग्य नेतृत्व मिलेगा।